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व्यवस्थाविवरण total 34 अध्याय
व्यवस्थाविवरण
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
1 “हे गगन, सुन मैं बोलूँगा, पृथ्वी मेरे मुख से सुन बात।
2 बहसेंगे वर्षा सम मेरे उपदेश, हिम—बिन्दु सम बहेगी पृथ्वी पर वाणी मेरी, कोमल घासों पर वर्षा की मन्द झड़ी सी, हरे पौधों पर वर्षा सी।
3 परमेश्वर का नाम सुनाएगी मैं कहूँगा, कहो यहोवा महान है।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
4 “वह (यहोवा) हमारी चट्टान है — उसके सभी कार्य पूर्ण हैं! क्यों? क्योंकि उसके सभी मार्ग सत्य हैं! वह विश्वसनीय निष्पाप परमेश्वर, करता जो उचित और न्याय है।
5 तुम लोगों ने दुर्व्यवहार किया उससे अतः नहीं उसके जन तुम सच्चे। आज्ञा भंजक बच्चों से तुम हो, तुम एक दुष्ट और भ्रष्ट पीढ़ी हो।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
6 चाहिए न वह व्यवहार तुम्हारा यहोवा को, तुम मूर्ख और बुद्धिहीन जन हो। योहवा परम पिता तुम्हारा है, उसने तुमको बनाया, उसने निज जन के दृढ़ बनाया तुमको।
7 “याद करो बीते हुए दिनों को सोची बीती पीढ़ीयों के वर्षों को, पूछो वृद्ध पिता से, वही कहेंगे पूछो अपने प्रमुखों से; वही कहेंगे।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
8 सर्वोच्च परमेश्वर न राष्ट्रों को अपने देश दिए, निश्चित यह किया कहाँ ये लोग रहेंगे, तब अन्यों का देश दिया इस्राएल—जन को।
9 योहवा की विरासत है उसके लोग; याकूब (इस्राएल) यहोवा का अपना है
10 “यहोवा ने याकूब (इस्राएल) को पाया मरू में, सप्त, झंझा—स्वरित उजड़ मरुभूमि में योहवा ने याकूब को लिया अंक में, रक्षा की उसकी, यहोवा ने रक्षा की, मानों वह आँखों की पुतली हो।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
11 यहोवा ने फैलाए पर, उठा लिया इस्राएलियों को, उस उकाब—सा जो जागा हो अपनी नीड़ में, और उड़ता हो अपने बच्चे के ऊपर, उनको लाया यहोवा अपने पंखों पर।
12 अकेले यहोवा ले आया याकूब को, कोई देवता विदेशी उसके पास न थे।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
13 यहोवा ने चढ़ाया याकूब को पृथ्वी के ऊंचे स्थानों पर, याकूब ने खेतों की फसलें खायीं, यहोवा ने याकूब को पुष्ट किया चट्टानों के मधु से, दिया तेल उसको वज्र—चट्टानों से,
14 मक्खन दिया झुण्डों से, दूध दिया रेवड़ों से, माँस दिया मेमनों का, मेढ़ों का और बाशान जाति के बकरों का अच्छे—से—अच्छा गेहूँ, लाल अंगूरी पीने को दी अंगूरों की मादकता।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
15 “किन्तु यशूरून मोटा हो, सांड सा लात मारता, (वह बड़ा हुआ और भारी भी वह था।) अभिजात, सुपोषित छोड़ा उसने अपने कर्ता यहोवा को अस्वीकार किया अपने रक्षक शिला परमेश्वर को,
16 ईर्ष्यालु बनाया यहोवा को, अन्य देव पूजा कर! उसके जन ने; क्रुद्ध किया परमेश्वर को निज मूर्तियों से जो घृणित थीं परमेश्वर को,
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
17 बलि दी दानवों को जो सच्चे देव नही उन देवों को बलि दी उसने जिसका उनको ज्ञान नहीं। नये—नये थे देवता वे जिन्हें न पूजा कभी तुम्हारे पूर्वजों ने,
18 तुमने छोड़ा अपने शैल यहोवा को भुलाया तुमने अपने परमेश्वर को, दी जिसने जिन्दगी।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
19 “यहोवा ने देखा यह, इन्कार किया जन को अपना कहने से, क्रोधित किया उसे उसके पुत्रों और पुत्रियों ने!
20 तब यहोवा ने कहा, ‘मैं इनसे मुँह मोडूँगा! मैं देख सकूँगा—अन्त होगा क्या उनका। क्यों? क्योंकि भ्रष्ट सभी उनकी पीढ़ियाँ हैं। वे हैं ऐसी सन्तान जिन्हें विश्वास नहीं हैं!
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
21 मूर्तियों की पूजा करके उन्होंने मुझमें ईर्ष्या उत्पन्न की वे मूर्तियाँ ईश्वर नहीं हैं। तुच्छ मूर्तियों को पूज कर उन्होंने मुझे क्रुद्ध किया है! अब मैं इस्राएल को बनाऊँगा ईर्ष्यालु। मैं उन लोगों का उपयोग करूँगा, जो गठित नहीं हुये हैं राष्ट्र मैं। मैं करूगाँ प्रयोग मूर्ख राष्ट्र का और लोगों से उन पर क्रोध बरसाऊँगा।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
22 क्रोध हमारा सुलगा चुका आग कहीं, मेरा क्रोध जल रहा निम्नतम शेओल तक, मेरा क्रोध नष्ट करता फसल सहित भूमि को, मेरा क्रोध लगाता आग पर्वतों की जड़ों में!
23 “ ‘मैं इस्राएलियों पर विपत्ति लाऊँगा, मैं अपने बाण इन पर चलाऊँगा।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
24 वे भूखे, क्षीण और दुर्बल होंगे, जल जायेंगे जलती गर्मी में वे और होगा भंयकर विनाश भेजूँगा मैं वन—पशुओं को भक्षण करने उनका धूलि रेंगते विषधर भी उनके संग होंगे,
25 तलवारें सड़कों पर उनको सन्तति मिटा देगी, घर के भीतर रहेगा आतंक का राज्य, सैनिक मारेंगे युवकों और कुमारियों को ये शिशुओं और श्वेतकेशी वृद्धों को मारेंगे,
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
26 “ ‘मैं कहूँगा, इस्राएलयों को दूर उड़ाऊँगा। विस्मृत करवा दूँगा इस्राएलियों को लोगोंसे!
27 मुझे भय था कि, शत्रु कहेंगे उनके क्या इस्राएल के शत्रु कह सकते हैं: समझ फेर से हमने जीता है, “अपनी शक्ति से, यहोवा ने किया नहीं इसको।’ ”
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28 “इस्राएल के शत्रु मूर्ख राष्ट्र हैं वे समझ न पाते कुछ भी।
29 यदि शत्रु समझदार होत तो इसे समझ पाते, और देखते अपना अन्त भविष्य में
30 एक कैसे पीछा करता सहस्र को? कैसे दो भगा देते दस सहस्र को? यह तब होता जब शैल यहोवा देता उनको, उनके शत्रुओं को, और परमेश्वर उन्हें बेचता गुलामों सा।
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31 शैल शत्रुओं को नहीं हमारे शैल यहोवा सदृश हमारे शत्रु स्वयं देख सकते इस सत्य को।
32 सदोम और अमोरा की दाखलताओं के समान कड़वे हैं उनके गुच्छे अंगूर के। उनके अंगूर विषैले होते हैं उनके अंगूरों के गुच्छे कडुवे होते।
33 उनकी दाखमधु साँपों के विष जैसी है और क्रूर कालकूट अस्प नाम का।
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34 यहोवा ने कहा, “मैं उस दण्ड से रक्षा करता हूँ। मैं अपने वस्तु भण्डार में बन्द किया!’
35 केवल मैं हूँ देने वाला दण्ड मैं ही देता लोगों को अपराधों का बदला, जब उनका पग फिसल पड़ेगा अपराधों में, क्यों? क्योंकि विपत्ति समय उनका समीप है और दण्ड समय उनका दौड़ा आएगा।’
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
36 “यहोवा न्याय करेगा अपने जन का। वे उसके सेवक हैं, वह दयालु होगा। वह उसके बल को मिटा देगा वह उन सभी स्वतन्त्र और दासों को होता देखेगा असहाय।
37 पूछेगा वह तब, ‘लोगों के देवता कहाँ हैं? वह है चट्टान कहाँ, जिसकी शरण गए वे?
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
38 लोगों के ये देव, बलि की चर्बी खाते थे, और पीते थे मदिरा, मदिरा की भेंट की। अतः उठें ये देव, मदद करें तेरी करें तुम्हारी ये रक्षा!
39 देखो, अब केवल मैं ही परमेश्वर हूँ। नहीं अन्य कोई भी परमेश्वर मैं ही निश्चय करता लोगों को जीवित रखूँ या मारूँ। मैं लोगों को दे सकता हूँ चोट और ठीक भी रख सकत हूँ। और न बचा सकता कोई किसी को मेरी शक्ति के बाहर।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
40 आकाश को हाथ उठा मैं वचन देता हूँ। यदि यह सत्य है कि मैं शाश्वत हूँ। तो यह भी सत्य कि सब कुछ होगा यही!
41 मैं तेज करूँगा अपनी बिजली की तलवार। उपयोग करूँगा इसका मैं शत्रुओं को दण्डित करने को। मैं दूँगा वह दण्ड उन्हें जिसके वे पात्र हैं।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
42 मेरे शत्रु मारे जाऐंगे, बन्दी होंगे। रंग जाएंगे बाण हमारे उनके रक्त से। तलवार मेरी पार करेगी उनके सैनिक सिर को।’
43 “होगा हर्षित सब संसार परमेश्वर के लोगों से क्यों? क्योंकि वह उनकी करता है सहायता सेवकों के हत्यारों को वह दण्ड दिया करता है। देगा वह दण्ड शत्रु को जिसके वे पात्र हैं। और वह पवित्र करेगा अपने धरती जन को।”
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मूसा लोगों को अपना गीत सिखाता है 44 मूसा आया और इस्राएल के सभी लोगों को सुनने के लिये यह गीत पूरा गाया। नून का पुत्र यहोशू मूसा के साथ था।
45 जब मूसा ने लोगों को यह उपदेश देना समाप्त किया
46 तब उसने उनसे कहा, “तुम्हें निश्चय करना चाहिए कि तुम उन सभी आदेशों को याद रखोगे जिसे मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ और तुम्हें अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि इन व्यवस्था के आदेशों का वे पूरी तरह पालने करें।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
47 यह मत समझो कि ये उपदेश महत्वपूर्ण नहीं हैं! ये तुम्हारा जीवन है! इन उपदेशों से तुम उस यरदन नदी के पार के देश में लम्बे समय तक रहोगे जिसे लेने के लिये तुम तैयार हो।”
मूसा नबो पर्वत पर 48 यहोवा ने उसी दिन मूसा से बातें कीं। यहोवा ने कहा,
49 “अबारीम पर्वत पर रजाओ। यरीहो नगर से होकर मोआब प्रदेश में नबो पर्वत पर जाओ। तब तुम उस कनान प्रदेश को देख सकते हो जिसे मैं इस्राएल के लोगों को रहने के लिए दे रहा हूँ।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
50 तुम उस पर्वत पर मरोगे। तुम वैसे ही अपने उन लोगों से मिलोगे जो मर गए हैं जैसे तुम्हारे भाई हारून होर पर्वत पर मरा और अपने लोगों में मिला।
51 क्यों? क्योंकि जब तुम सीन की मरुभूमि में कादेश के निकट मरीबा के जलाशयों के पास थे तब मेरे विरुद्ध पाप किया था और इस्राएल के लोगों ने उसे वहाँ देखा था। तुमने मेरा सम्मान नहीं किया और तुमने यह लोगों को नहीं दिखाया कि मैं पवित्र हूँ।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 32
52 इसलिए अब तुम अपने सामने उस देश को देख सकते हो किन्तु तुम उस देश मे जा नहीं सकते जिसे मैं इस्राएल के लोगों को दे रहा हूँ।”