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यूहन्ना total 21 अध्याय

यूहन्ना

यूहन्ना अध्याय 18
यूहन्ना अध्याय 18

यीशु का बंदी बनाया जाना
(मत्ती 26:47-56; मरकुस 14:43-50; लूका 22:47-53)

1

2 यीशु यह कहकर अपने शिष्यों के साथ छोटी नदी किद्रोन के पार एक बगीचे में चला गया। धोखे से उसे पकड़वाने वाला यहूदा भी उस जगह को जानता था क्योंकि यीशु वहाँ प्रायः अपने शिष्यों से मिला करता था।

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3 इसलिये यहूदा रोमी सिपाहियों की एक टुकड़ी और महायाजकों और फरीसियों के भेजे लोगों और मन्दिर के पहरेदारों के साथ मशालें दीपक और हथियार लिये वहाँ आ पहुँचा।

4

5 फिर यीशु जो सब कुछ जानता था कि उसके साथ क्या होने जा रहा है, आगे आया और उनसे बोला, “तुम किसे खोज रहे हो?” उन्होंने उसे उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।” यीशु ने उनसे कहा, “वह मैं हूँ।” (तब उसे धोखे से पकड़वाने वाला यहूदा भी वहाँ खड़ा था।)

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6 जब उसने उनसे कहा, “वह मैं हूँ,” तो वे पीछे हटे और धरती पर गिर पड़े।

7

8 इस पर एक बार फिर यीशु ने उनसे पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?” वे बोले, “यीशु नासरी को।” यीशु ने उत्तर दिया, “मैंने तुमसे कहा, वह मैं ही हूँ। यदि तुम मुझे खोज रहे हो तो इन लोगों को जाने दो।”

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9 यह उसने इसलिये कहा कि जो उसने कहा था, वह सच हो, “मैंने उनमें से किसी को भी नहीं खोया, जिन्हें तूने मुझे सौंपा था।”

10 फिर शमौन पतरस ने, जिसके पास तलवार थी, अपनी तलवार निकाली और महायाजक के दास का दाहिना कान काटते हुए उसे घायल कर दिया। (उस दास का नाम मलखुस था।)

11 फिर यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख! क्या मैं यातना का वह प्याला न पीऊँ जो परम पिता ने मुझे दिया है?”

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यीशु का हन्ना के सामने लाया जाना
(मत्ती 26:57-58; मरकुस 14:53-54; लूका 22:54)

12 फिर रोमी टुकड़ी के सिपाहियों और उनके सूबेदारों तथा यहूदियों के मन्दिर के पहरेदारों ने यीशु को बंदी बना लिया।

13 और उसे बाँध कर पहले हन्ना के पास ले गये जो उस साल के महायाजक कैफा का ससुर था।

14 यह कैफा वही व्यक्ति था जिसने यहूदी नेताओं को सलाह दी थी कि सब लोगों के लिए एक का मरना अच्छा है।

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पतरस का यीशु को पहचानने से इन्कार
(मत्ती 26:69-70; मरकुस 14:66-68; लूका 22:55-57)

15 शमौन पतरस तथा एक और शिष्य यीशु के पीछे हो लिये। महायाजक इस शिष्य को अच्छी तरह जानता था इसलिए वह यीशु के साथ महायाजक के आँगन में घुस गया।

16 किन्तु पतरस बाहर द्वार के पास ही ठहर गया। फिर महायाजक की जान पहचान वाला दूसरा शिष्य बाहर गया और द्वारपालिन से कह कर पतरस को भीतर ले आया।

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17 इस पर उस दासी ने जो द्वारपालिन थी कहा, “हो सकता है कि तू भी यीशु का ही शिष्य है?”

18 पतरस ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”

19 क्योंकि ठंड बहुत थी दास और मन्दिर के पहरेदार आग जलाकर वहाँ खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ वहीं खड़ा था और ताप रहा था। महायाजक की यीशु से पूछताछ
(मत्ती 26:59-66; मरकुस 14:55-64; लूका 22:66-71)
फिर महायाजक ने यीशु से उसके शिष्यों और उसकी शिक्षा के बारे में पूछा।

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20 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “मैंने सदा लोगों के बीच हर किसी से खुल कर बात की है। सदा मैंने आराधनालयों में और मन्दिर में, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठे होते हैं, उपदेश दिया है। मैंने कभी भी छिपा कर कुछ नहीं कहा है।

21 फिर तू मुझ से क्यों पूछ रहा है? मैंने क्या कहा है उनसे पूछ जिन्होंने मुझे सुना है। मैंने क्या कहा, निश्चय ही वे जानते हैं।”

22

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23 जब उसने यह कहा तो मन्दिर के एक पहरेदार ने, जो वहीं खड़ा था, यीशु को एक थप्पड़ मारा और बोला, “तूने महायाजक को ऐसे उत्तर देने की हिम्मत कैसे की?”

24 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने कुछ बुरा कहा है तो प्रमाणित कर और बता कि उसमें बुरा क्या था, और यदि मैंने ठीक कहा है तो तू मुझे क्यों मारता है?”

25 फिर हन्ना ने उसे बंधे हुए ही महायाजक कैफा के पास भेज दिया। पतरस का यीशु को पहचानने से फिर इन्कार
(मत्ती 26:71-75; मरकुस 14:69-72; लूका 22:58-62)

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26 जब शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था तो उससे पूछा गया, “क्या यह सम्भव है कि तू भी उसका एक शिष्य है?” उसने इससे इन्कार किया। वह बोला, “नहीं मैं नहीं हूँ।”

27 महायाजक के एक सेवक ने जो उस व्यक्ति का सम्बन्धी था जिसका पतरस ने कान काटा था, पूछा, “बता क्या मैंने तुझे उसके साथ बगीचे में नहीं देखा था?”

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28 इस पर पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया। और तभी मुर्गे ने बाँग दी। यीशु का पिलातुस के सामने लाया जाना
(मत्ती 27:1-2, 11-31; मरकुस 15:1-20; लूका 23:1-25)
फिर वे यीशु को कैफा के घर से रोमी राजभवन में ले गये। सुबह का समय था। यहूदी लोग राजभवन में नहीं जाना चाहते थे कि कहीं अपवित्र* अपवित्र यहूदी यह मानते थे कि किसी गैर यहूदी के घर में जाने से उनकी पवित्रता नष्ट हो जाती है। देखें यूहन्ना 11:55 न हो जायें और फ़सह का भोजन न खा सकें।

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29 तब पिलातुस उनके पास बाहर आया और बोला, “इस व्यक्ति के ऊपर तुम क्या दोष लगाते हो?”

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31 उत्तर में उन्होंने उससे कहा, “यदि यह अपराधी न होता तो हम इसे तुम्हें न सौंपते।” इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, “इसे तुम ले जाओ और अपनी व्यवस्था के विधान के अनुसार इसका न्याय करो।” यहूदियों ने उससे कहा, “हमें किसी को प्राणदण्ड देने का अधिकार नहीं है।”

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32 (यह इसलिए हुआ कि यीशु ने जो बात उसे कैसी मृत्यु मिलेगी, यह बताते हुए कही थी, सत्य सिद्ध हो।)

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34 तब पिलातुस महल में वापस चला गया। और यीशु को बुला कर उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”

35 यीशु ने उत्तर दिया, “यह बात क्या तू अपने आप कह रहा है या मेरे बारे में यह औरों ने तुझसे कही है?”

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36 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या तू सोचता है कि मैं यहूदी हूँ? तेरे लोगों और महायाजकों ने तुझे मेरे हवाले किया है। तूने क्या किया है?”

37 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस जगत का होता तो मेरी प्रजा मुझे यहूदियों को सौंपे जाने से बचाने के लिए युद्ध करती। किन्तु वास्तव में मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।”

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38 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “तो तू राजा है?” यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इसी प्रयोजन से मैं इस संसार में आया हूँ कि सत्य की साक्षी दूँ। हर वह व्यक्ति जो सत्य के पक्ष में है, मेरा वचन सुनता है।” पिलातुस ने उससे पूछा, “सत्य क्या है?” ऐसा कह कर वह फिर यहूदियों के पास बाहर गया और उनसे बोला, “मैं उसमें कोई खोट नहीं पा सका हूँ

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39 और तुम्हारी यह रीति है कि फ़सह पर्व के अवसर पर मैं तुम्हारे लिए किसी एक को मुक्त कर दूँ। तो क्या तुम चाहते हो कि मैं इस ‘यहूदियों के राजा’ को तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?”

40 एक बार वे फिर चिल्लाये, “इसे नहीं, बल्कि बरअब्बा को छोड़ दो।” (बरअब्बा एक बाग़ी था।)