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प्रेरितों के काम total 28 अध्याय

प्रेरितों के काम

प्रेरितों के काम अध्याय 24
प्रेरितों के काम अध्याय 24

फेलिक्स के सामने पौलुस 1 पाँच दिन के बाद हनन्याह महायाजक कई प्राचीनों और तिरतुल्लुस नामक किसी वकील को साथ लेकर आया; उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलुस पर दोषारोपण किया।

2 जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उस पर दोष लगाकर कहने लगा, “हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिये कितनी बुराइयाँ सुधरती जाती हैं।

प्रेरितों के काम अध्याय 24

3

4 इसको हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साथ मानते हैं। परन्तु इसलिए कि तुझे और दुःख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले।

5 क्योंकि हमने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियों में बलवा करानेवाला, और नासरियों के कुपंथ का मुखिया पाया है।

प्रेरितों के काम अध्याय 24

6 उसने मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा*, और तब हमने उसे बन्दी बना लिया। [हमने उसे अपनी व्यवस्था के अनुसार दण्ड दिया होता;

7 परन्तु सैन्य-दल के सरदार लूसियास ने आकर उसे बलपूर्वक हमारे हाथों से छीन लिया,

8 और इस पर दोष लगाने वालों को तेरे सम्मुख आने की आज्ञा दी।] इन सब बातों को जिनके विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू स्वयं उसको जाँच करके जान लेगा।”

प्रेरितों के काम अध्याय 24

9 यहूदियों ने भी उसका साथ देकर कहा, ये बातें इसी प्रकार की हैं।

फेलिक्स के सम्मुख पौलुस का बचाव 10 जब राज्यपाल ने पौलुस को बोलने के लिये संकेत किया तो उसने उत्तर दिया: “मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षों से इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूँ।,

11 तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में आराधना करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए।

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12 उन्होंने मुझे न मन्दिर में, न आराधनालयों में, न नगर में किसी से विवाद करते या भीड़ लगाते पाया;

13 और न तो वे उन बातों को, जिनके विषय में वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे सामने उन्हें सच प्रमाणित कर सकते हैं।

14 परन्तु यह मैं तेरे सामने मान लेता हूँ, कि जिस पंथ को वे कुपंथ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपने पूर्वजों के परमेश्‍वर* की सेवा करता हूँ; और जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी हैं, उन सब पर विश्वास करता हूँ।

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15 और परमेश्‍वर से आशा रखता हूँ जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा। (दानि. 12:2)

16 इससे मैं आप भी यत्न करता हूँ, कि परमेश्‍वर की और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे।

17 बहुत वर्षों के बाद मैं अपने लोगों को दान पहुँचाने, और भेंट चढ़ाने आया था।

18 उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में, बिना भीड़ के साथ, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया। परन्तु वहाँ आसिया के कुछ यहूदी थे - और उनको उचित था,

प्रेरितों के काम अध्याय 24

19 कि यदि मेरे विरोध में उनकी कोई बात हो तो यहाँ तेरे सामने आकर मुझ पर दोष लगाते।

20 या ये आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के सामने खड़ा था, तो उन्होंने मुझ में कौन सा अपराध पाया?

21 इस एक बात को छोड़ जो मैंने उनके बीच में खड़े होकर पुकारकर कहा था, ‘मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे सामने मुकद्दमा हो रहा है’।”

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22 फेलिक्स ने जो इस पंथ की बातें ठीक-ठीक जानता था, उन्हें यह कहकर टाल दिया, “जब सैन्य-दल का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूँगा।”

23 और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को कुछ छूट में रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रों में से किसी को भी उसकी सेवा करने से न रोकना।

24 {पौलुस की फेलिक्स और उसकी पत्‍नी से बातचीत } कुछ दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्‍नी द्रुसिल्ला* को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उससे सुना।

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25 जब वह धार्मिकता और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा कर रहा था, तो फेलिक्स ने भयभीत होकर उत्तर दिया, “अभी तो जा; अवसर पा कर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।”

26 उसे पौलुस से कुछ धन मिलने की भी आशा थी; इसलिए और भी बुला-बुलाकर उससे बातें किया करता था।

27 परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरकियुस फेस्तुस, फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्दी ही छोड़ गया।