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अय्यूब total 42 अध्याय

अय्यूब

अय्यूब अध्याय 10
अय्यूब अध्याय 10

1 {अय्यूब का परमेश्‍वर से विनती }“मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्रता पूर्वक कुड़कुड़ाऊँगा; और मैं अपने मन की कड़वाहट के मारे बातें करूँगा।

2 मैं परमेश्‍वर से कहूँगा, मुझे दोषी न ठहरा*; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मुझसे मुकद्दमा लड़ता है?

अय्यूब अध्याय 10

3 क्या तुझे अंधेर करना, और दुष्टों की युक्ति को सफल करके अपने हाथों के बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है?

4 क्या तेरी देहधारियों की सी आँखें हैं? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है?

5 क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, या तेरे वर्ष पुरुष के समयों के तुल्य हैं,

अय्यूब अध्याय 10

6 कि तू मेरा अधर्म ढूँढ़ता, और मेरा पाप पूछता है?

7 तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ*, और तेरे हाथ से कोई छुड़ानेवाला नहीं!

8 तूने अपने हाथों से मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तो भी तू मुझे नाश किए डालता है।

अय्यूब अध्याय 10

9 स्मरण कर, कि तूने मुझ को गुँधी हुई मिट्टी के समान बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा?

10 क्या तूने मुझे दूध के समान उण्डेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया?

11 फिर तूने मुझ पर चमड़ा और माँस चढ़ाया और हड्डियाँ और नसें गूँथकर मुझे बनाया है।

अय्यूब अध्याय 10

12 तूने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करुणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रक्षा हुई है।

13 तो भी तूने ऐसी बातों को अपने मन में छिपा रखा; मैं तो जान गया, कि तूने ऐसा ही करने को ठाना था।

14 कि यदि मैं पाप करूँ, तो तू उसका लेखा लेगा; और अधर्म करने पर मुझे निर्दोष न ठहराएगा।

अय्यूब अध्याय 10

15 यदि मैं दुष्टता करूँ तो मुझ पर हाय! और यदि मैं धर्मी बनूँ तो भी मैं सिर न उठाऊँगा, क्योंकि मैं अपमान से भरा हुआ हूँ और अपने दुःख पर ध्यान रखता हूँ।

16 और चाहे सिर उठाऊँ तो भी तू सिंह के समान मेरा अहेर करता है*, और फिर मेरे विरुद्ध आश्चर्यकर्मों को करता है।

अय्यूब अध्याय 10

17 तू मेरे सामने अपने नये-नये साक्षी ले आता है, और मुझ पर अपना क्रोध बढ़ाता है; और मुझ पर सेना पर सेना चढ़ाई करती है।

18 “तूने मुझे गर्भ से क्यों निकाला? नहीं तो मैं वहीं प्राण छोड़ता, और कोई मुझे देखने भी न पाता।

19 मेरा होना न होने के समान होता, और पेट ही से कब्र को पहुँचाया जाता।

अय्यूब अध्याय 10

20 क्या मेरे दिन थोड़े नहीं? मुझे छोड़ दे, और मेरी ओर से मुँह फेर ले, कि मेरा मन थोड़ा शान्त हो जाए

21 इससे पहले कि मैं वहाँ जाऊँ, जहाँ से फिर न लौटूँगा, अर्थात् अंधियारे और घोर अंधकार के देश में, जहाँ अंधकार ही अंधकार है;

22 और मृत्यु के अंधकार का देश जिसमें सब कुछ गड़बड़ है; और जहाँ प्रकाश भी ऐसा है जैसा अंधकार।”