पवित्र बाइबिल

ऐसी तो रीड वर्शन (ESV)
विलापगीत
1. {#1एक व्यक्ति द्वारा अपनी यातनाओं पर विचार } [QS]मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसने बहुतेरी यातनाएँ भोगी है; [QE][QS2]यहोवा के क्रोध के तले मैंने बहुतेरी दण्ड यातनाएँ भोगी है! [QE]
2. [QS]यहोवा मुझको लेकर के चला [QE][QS2]और वह मुझे अन्धेरे के भीतर लाया न कि प्रकाश में। [QE]
3. [QS]यहोवा ने अपना हाथ मेरे विरोध में कर दिया। [QE][QS2]ऐसा उसने बारम्बार सारे दिन किया। [QE]
4. [QS]उसने मेरा मांस, मेरा चर्म नष्ट कर दिया। [QE][QS2]उसने मेरी हड्डियों को तोड़ दिया। [QE]
5. [QS]यहोवा ने मेरे विरोध में, कड़वाहट और आपदा फैलायी है। [QE][QS2]उसने मेरी चारों तरफ कड़वाहट और विपत्ति फैला दी। [QE]
6. [QS]उसने मुझे अन्धेरे में बिठा दिया था। [QE][QS2]उसने मुझको उस व्यक्ति सा बना दिया था जो कोई बहुत दिनों पहले मर चुका हो। [QE]
7. [QS]यहोवा ने मुझको भीतर बंद किया, इससे मैं बाहर आ न सका। [QE][QS2]उसने मुझ पर भारी जंजीरें घेरी थीं। [QE]
8. [QS]यहाँ तक कि जब मैं चिल्लाकर दुहाई देता हूँ, [QE][QS2]यहोवा मेरी विनती को नहीं सुनता है। [QE]
9. [QS]उसने पत्थर से मेरी राह को मूंद दिया है। [QE][QS2]उसने मेरी राह को विषम कर दिया है। [QE]
10. [QS]यहोवा उस भालू सा हुआ जो मुझ पर आक्रमण करने को तत्पर है। [QE][QS2]वह उस सिंह सा हुआ हैं जो किसी ओट में छुपा हुआ हैं। [QE]
11. [QS]यहोवा ने मुझे मेरी राह से हटा दिया। [QE][QS2]उसने मेरी धज्जियाँ उड़ा दीं। [QE][QS2]उसने मुझे बर्बाद कर दिया है। [QE]
12. [QS]उसने अपना धनुष तैयार किया। [QE][QS2]उसने मुझको अपने बाणों का निशाना बना दिया था। [QE]
13. [QS]मेरे पेट में बाण मार दिया। [QE][QS2]मुझ पर अपने बाणों से प्रहार किया था। [QE]
14. [QS]मैं अपने लोगों के बीच हंसी का पात्र बन गया। [QE][QS2]वे दिन भर मेरे गीत गा—गा कर मेरा मजाक बनाते है। [QE]
15. [QS]यहोवा ने मुझे कड़वी बातों से भर दिया कि मैं उनको पी जाऊँ। [QE][QS2]उसने मुझको कड़वे पेयों से भरा था। [QE]
16. [QS]उसने मेरे दांत पथरीली धरती पर गडा दिये। [QE][QS2]उसने मुझको मिट्टी में मिला दिया। [QE]
17. [QS]मेरा विचार था कि मुझको शांति कभी भी नहीं मिलेगा। [QE][QS2]अच्छी भली बातों को मैं तो भूल गया था। [QE]
18. [QS]स्वयं अपने आप से मैं कहने लगा था, “मुझे तो बस अब और आस नहीं है कि [QE][QS2]यहोवा कभी मुझे सहारा देगा।” [QE]
19. [QS]हे यहोवा, तू मेरे दुखिया पन याद कर, [QE][QS2]और यह कि कैसा मेरा घर नहीं रहा। [QE][QS2]याद कर उस कड़वे पेय को और उस जहर को जो तूने मुझे पीने को दिया था। [QE]
20. [QS]मुझको तो मेरी सारी यातनाएँ याद हैं [QE][QS2]और मैं बहुत ही दु:खी हूँ। [QE]
21. [QS]किन्तु उसी समय जब मैं सोचता हूँ, तो मुझको आशा होने लगती हैं। [QE][QS2]मैं ऐसा सोचा करता हूँ: [QE]
22. [QS]यहोवा के प्रेम और करुणा का तो अत कभी नहीं होता। [QE][QS2]यहोवा की कृपाएं कभी समाप्त नहीं होती। [QE]
23. [QS]हर सुबह वे नये हो जाते हैं! [QE][QS2]हे यहोवा, तेरी सच्चाई महान है! [QE]
24. [QS]मैं अपने से कहा करता हूँ, “यहोवा मेरे हिस्से में है। [QE][QS2]इसी कारण से मैं आशा रखूँगा।” [QE][PBR]
25. [QS]यहोवा उनके लिये उत्तम है जो उसकी बाट जोहते हैं। [QE][QS2]यहोवा उनके लिये उत्तम है जो उसकी खोज में रहा करते हैं। [QE]
26. [QS]यह उत्तम है कि कोई व्यक्ति चुपचाप यहोवा की प्रतिक्षा करे कि [QE][QS2]वह उसकी रक्षा करेगा। [QE]
27. [QS]यह उत्तम है कि कोई व्यक्ति यहोवा के जुए को धारण करे, [QE][QS2]उस समय से ही जब वह युवक हो। [QE]
28. [QS]व्यक्ति को चाहिये कि वह अकेला चुप बैठे ही रहे [QE][QS2]जब यहोवा अपने जुए को उस पर धरता है। [QE]
29. [QS]उस व्यक्ति को चाहिये कि यहोवा के सामने वह दण्डवत प्रणाण करे। [QE][QS2]सम्भव है कि कोई आस बची हो। [QE]
30. [QS]उस व्यक्ति को चाहिये कि वह आपना गाल कर दे, उस व्यक्ति के सामने जो उस पर प्रहार करता हो। [QE][QS2]उस व्यक्ति को चाहिये कि वह अपमान झेलने को तत्पर रहे। [QE]
31. [QS]उस व्यक्ति को चाहिये वह याद रखे कि यहोवा किसी को भी [QE][QS2]सदा—सदा के लिये नहीं बिसराता। [QE]
32. [QS]यहोवा दण्ड देते हुए भी अपनी कृपा बनाये रखता है। [QE][QS2]वह अपने प्रेम और दया के कारण अपनी कृपा रखता है। [QE][PBR]
33. [QS]यहोवा कभी भी नहीं चाहता कि लोगों को दण्ड दे। [QE][QS2]उसे नहीं भाता कि लोगों को दु:खी करे। [QE]
34. [QS]यहोवा को यह बातें नहीं भाती है: [QE][QS2]उसको नहीं भाता कि कोई व्यक्ति अपने पैरों के तले धरती के सभी बंदियों को कुचल डाले। [QE]
35. [QS]उसको नहीं भाता है कि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को छले। [QE][QS2]कुछ लोग उसके मुकदमें में परम प्रधान परमेश्वर के सामने ही ऐसा किया करते है। [QE]
36. [QS]उसको नहीं भाता कि कोई व्यक्ति अदालत में किसी से छल करे। [QE][QS2]यहोवा को इन में से कोई भी बात नहीं भाती है। [QE]
37. [QS]जब तक स्वयं यहोवा ही किसी बात के होने की आज्ञा नहीं देता, [QE][QS2]तब तक ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है कि कोई बात कहे और उसे पूरा करवा ले। [QE]
38. [QS]बुरी—भली बातें सभी परम प्रधान परमेश्वर के मुख से ही आती हैं। [QE]
39. [QS]कोई जीवित व्यक्ति शिकायत कर नहीं सकता [QE][QS2]जब यहोवा उस ही के पापों का दण्ड उसे देता है। [QE]
40. [QS]आओ, हम अपने कर्मो को परखें और देखँ, [QE][QS2]फिर यहोवा के शरण में लौट आयें। [QE][PBR]
41. [QS]आओ, स्वर्ग के परमेश्वर के लिये हम हाथ उठायें [QE][QS2]और अपना मन ऊँचा करें। [QE]
42. [QS]आओ, हम उससे कहें, “हमने पाप किये हैं और हम जिद्दी बने रहे, [QE][QS2]और इसलिये तूने हमको क्षमा नहीं किया। [QE]
43. [QS]तूने क्रोध से अपने को ढांप लिया, [QE][QS2]हमारा पीछा तू करता रहा है, [QE][QS2]तूने हमें निर्दयतापूर्वक मार दिया! [QE]
44. [QS]तूने अपने को बादल से ढांप लिया। [QE][QS2]तूने ऐसा इसलिये किया था कि कोई भी विनती तुझ तक पहुँचे ही नहीं। [QE]
45. [QS]तूने हमको दूसरे देशों के लिये ऐसा बनाया [QE][QS2]जैसा कूड़ा कर्कट हुआ करता हैं। [QE]
46. [QS]हमारे सभी शत्रु [QE][QS2]हमसे क्रोध भरे बोलते हैं। [QE]
47. [QS]हम भयभीत हुए हैं हम गर्त में गिर गये हैं। [QE][QS2]हम बुरी तरह क्षतिग्रस्त है! हम टूट चुके हैं!” [QE]
48. [QS]मेरी आँखों से आँसुओं की नदियाँ बही! [QE][QS2]मैं विलाप करता हूँ क्योंकि मेरे लोगों का विनाश हुआ है! [QE]
49. [QS]मेरे नयन बिना रूके बहते रहेंगे! [QE][QS2]मैं सदा विलाप करता रहूँगा! [QE]
50. [QS]हे यहोवा, मैं तब तक विलाप करता रहूँगा [QE][QS2]जब तक तू दृष्टि न करे और हम को देखे! [QE][QS]मैं तब तक विलाप ही करता रहूँगा [QE][QS2]जब तक तू स्वर्ग से हम पर दृष्टि न करे! [QE]
51. [QS]जब मैं देखा करता हूँ जो कुछ मेरी नगरी की युवतियों के साथ घटा [QE][QS2]तब मेरे नयन मुझको दु:खी करते हैं। [QE]
52. [QS]जो लोग व्यर्थ में ही मेरे शत्रु बने है, [QE][QS2]वे घूमते हैं मेरी शिकार की फिराक में, मानों मैं कोई चिड़िया हूँ। [QE]
53. [QS]जीते जी उन्होंने मुझको घड़े में फेंका [QE][QS2]और मुझ पर पत्थर लुढ़काए थे। [QE]
54. [QS]मेरे सिर पर से पानी गुज़र गया था। [QE][QS2]मैंने मन में कहाँ, “मेरा नाश हुआ।” [QE]
55. [QS]हे यहोवा, मैंने तेरा नाम पुकारा। [QE][QS2]उस गर्त के तल से मैंने तेरा नाम पुकारा। [QE]
56. [QS]तूने मेरी आवाज़ को सुना। [QE][QS2]तूने कान नहीं मूंद लिये। [QE][QS2]तूने बचाने से और मेरी रक्षा करने से नकारा नहीं। [QE]
57. [QS]जब मैंने तेरी दुहाई दी, उसी दिन तू मेरे पास आ गया था। [QE][QS2]तूने मुझ से कहा था, “भयभीत मत हो।” [QE]
58. [QS]हे यहोवा, मेरे अभियोग में तूने मेरा पक्ष लिया। [QE][QS2]मेरे लिये तू मेरा प्राण वापस ले आया। [QE]
59. [QS]हे यहोवा, तूने मेरी विपत्तियाँ देखी हैं, [QE][QS2]अब मेरे लिये तू मेरा न्याय कर। [QE]
60. [QS]तूने स्वयं देखा है कि शत्रुओं ने मेरे साथ कितना अन्याय किया। [QE][QS2]तूने स्वयं देखा है उन सारे षड़यंत्रों को [QE][QS2]जो उन्होंने मुझ से बदला लेने को मेरे विरोध में रचे थे। [QE]
61. [QS]हे यहोवा, तूने सुना है कि वे मेरा अपमान कैसे करते हैं। [QE][QS2]तूने सुना है उन षड़यंत्रों को जो उन्होंने मेरे विरोध में रचाये। [QE]
62. [QS]मेरे शत्रुओं के वचन और विचार [QE][QS2]सदा ही मेरे विरुद्ध रहे। [QE]
[QS2]63. देखो यहोवा, चाहे वे बैठे हों, चाहे वे खड़े हों, [QE][QS2]कैसे वे मेरी हंसी उड़ाते हैं! [QE]
64. [QS]हे यहोवा, उनके साथ वैसा ही कर जैसा उनके साथ करना चाहिये! [QE][QS2]उनके कर्मो का फल तू उनको दे दे! [QE]
65. [QS]उनका मन हठीला कर दे! [QE][QS2]फिर अपना अभिशाप उन पर डाल दे! [QE]
66. [QS]क्रोध में भर कर तू उनका पीछा कर! [QE][QS2]उन्हें बर्बाद कर दे! हे यहोवा, आकाश के नीचे से तू उन्हें समाप्त कर दे! [QE][PBR]
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एक व्यक्ति द्वारा अपनी यातनाओं पर विचार 1 मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसने बहुतेरी यातनाएँ भोगी है; यहोवा के क्रोध के तले मैंने बहुतेरी दण्ड यातनाएँ भोगी है! 2 यहोवा मुझको लेकर के चला और वह मुझे अन्धेरे के भीतर लाया न कि प्रकाश में। 3 यहोवा ने अपना हाथ मेरे विरोध में कर दिया। ऐसा उसने बारम्बार सारे दिन किया। 4 उसने मेरा मांस, मेरा चर्म नष्ट कर दिया। उसने मेरी हड्डियों को तोड़ दिया। 5 यहोवा ने मेरे विरोध में, कड़वाहट और आपदा फैलायी है। उसने मेरी चारों तरफ कड़वाहट और विपत्ति फैला दी। 6 उसने मुझे अन्धेरे में बिठा दिया था। उसने मुझको उस व्यक्ति सा बना दिया था जो कोई बहुत दिनों पहले मर चुका हो। 7 यहोवा ने मुझको भीतर बंद किया, इससे मैं बाहर आ न सका। उसने मुझ पर भारी जंजीरें घेरी थीं। 8 यहाँ तक कि जब मैं चिल्लाकर दुहाई देता हूँ, यहोवा मेरी विनती को नहीं सुनता है। 9 उसने पत्थर से मेरी राह को मूंद दिया है। उसने मेरी राह को विषम कर दिया है। 10 यहोवा उस भालू सा हुआ जो मुझ पर आक्रमण करने को तत्पर है। वह उस सिंह सा हुआ हैं जो किसी ओट में छुपा हुआ हैं। 11 यहोवा ने मुझे मेरी राह से हटा दिया। उसने मेरी धज्जियाँ उड़ा दीं। उसने मुझे बर्बाद कर दिया है। 12 उसने अपना धनुष तैयार किया। उसने मुझको अपने बाणों का निशाना बना दिया था। 13 मेरे पेट में बाण मार दिया। मुझ पर अपने बाणों से प्रहार किया था। 14 मैं अपने लोगों के बीच हंसी का पात्र बन गया। वे दिन भर मेरे गीत गा—गा कर मेरा मजाक बनाते है। 15 यहोवा ने मुझे कड़वी बातों से भर दिया कि मैं उनको पी जाऊँ। उसने मुझको कड़वे पेयों से भरा था। 16 उसने मेरे दांत पथरीली धरती पर गडा दिये। उसने मुझको मिट्टी में मिला दिया। 17 मेरा विचार था कि मुझको शांति कभी भी नहीं मिलेगा। अच्छी भली बातों को मैं तो भूल गया था। 18 स्वयं अपने आप से मैं कहने लगा था, “मुझे तो बस अब और आस नहीं है कि यहोवा कभी मुझे सहारा देगा।” 19 हे यहोवा, तू मेरे दुखिया पन याद कर, और यह कि कैसा मेरा घर नहीं रहा। याद कर उस कड़वे पेय को और उस जहर को जो तूने मुझे पीने को दिया था। 20 मुझको तो मेरी सारी यातनाएँ याद हैं और मैं बहुत ही दु:खी हूँ। 21 किन्तु उसी समय जब मैं सोचता हूँ, तो मुझको आशा होने लगती हैं। मैं ऐसा सोचा करता हूँ: 22 यहोवा के प्रेम और करुणा का तो अत कभी नहीं होता। यहोवा की कृपाएं कभी समाप्त नहीं होती। 23 हर सुबह वे नये हो जाते हैं! हे यहोवा, तेरी सच्चाई महान है! 24 मैं अपने से कहा करता हूँ, “यहोवा मेरे हिस्से में है। इसी कारण से मैं आशा रखूँगा।” 25 यहोवा उनके लिये उत्तम है जो उसकी बाट जोहते हैं। यहोवा उनके लिये उत्तम है जो उसकी खोज में रहा करते हैं। 26 यह उत्तम है कि कोई व्यक्ति चुपचाप यहोवा की प्रतिक्षा करे कि वह उसकी रक्षा करेगा। 27 यह उत्तम है कि कोई व्यक्ति यहोवा के जुए को धारण करे, उस समय से ही जब वह युवक हो। 28 व्यक्ति को चाहिये कि वह अकेला चुप बैठे ही रहे जब यहोवा अपने जुए को उस पर धरता है। 29 उस व्यक्ति को चाहिये कि यहोवा के सामने वह दण्डवत प्रणाण करे। सम्भव है कि कोई आस बची हो। 30 उस व्यक्ति को चाहिये कि वह आपना गाल कर दे, उस व्यक्ति के सामने जो उस पर प्रहार करता हो। उस व्यक्ति को चाहिये कि वह अपमान झेलने को तत्पर रहे। 31 उस व्यक्ति को चाहिये वह याद रखे कि यहोवा किसी को भी सदा—सदा के लिये नहीं बिसराता। 32 यहोवा दण्ड देते हुए भी अपनी कृपा बनाये रखता है। वह अपने प्रेम और दया के कारण अपनी कृपा रखता है। 33 यहोवा कभी भी नहीं चाहता कि लोगों को दण्ड दे। उसे नहीं भाता कि लोगों को दु:खी करे। 34 यहोवा को यह बातें नहीं भाती है: उसको नहीं भाता कि कोई व्यक्ति अपने पैरों के तले धरती के सभी बंदियों को कुचल डाले। 35 उसको नहीं भाता है कि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को छले। कुछ लोग उसके मुकदमें में परम प्रधान परमेश्वर के सामने ही ऐसा किया करते है। 36 उसको नहीं भाता कि कोई व्यक्ति अदालत में किसी से छल करे। यहोवा को इन में से कोई भी बात नहीं भाती है। 37 जब तक स्वयं यहोवा ही किसी बात के होने की आज्ञा नहीं देता, तब तक ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है कि कोई बात कहे और उसे पूरा करवा ले। 38 बुरी—भली बातें सभी परम प्रधान परमेश्वर के मुख से ही आती हैं। 39 कोई जीवित व्यक्ति शिकायत कर नहीं सकता जब यहोवा उस ही के पापों का दण्ड उसे देता है। 40 आओ, हम अपने कर्मो को परखें और देखँ, फिर यहोवा के शरण में लौट आयें। 41 आओ, स्वर्ग के परमेश्वर के लिये हम हाथ उठायें और अपना मन ऊँचा करें। 42 आओ, हम उससे कहें, “हमने पाप किये हैं और हम जिद्दी बने रहे, और इसलिये तूने हमको क्षमा नहीं किया। 43 तूने क्रोध से अपने को ढांप लिया, हमारा पीछा तू करता रहा है, तूने हमें निर्दयतापूर्वक मार दिया! 44 तूने अपने को बादल से ढांप लिया। तूने ऐसा इसलिये किया था कि कोई भी विनती तुझ तक पहुँचे ही नहीं। 45 तूने हमको दूसरे देशों के लिये ऐसा बनाया जैसा कूड़ा कर्कट हुआ करता हैं। 46 हमारे सभी शत्रु हमसे क्रोध भरे बोलते हैं। 47 हम भयभीत हुए हैं हम गर्त में गिर गये हैं। हम बुरी तरह क्षतिग्रस्त है! हम टूट चुके हैं!” 48 मेरी आँखों से आँसुओं की नदियाँ बही! मैं विलाप करता हूँ क्योंकि मेरे लोगों का विनाश हुआ है! 49 मेरे नयन बिना रूके बहते रहेंगे! मैं सदा विलाप करता रहूँगा! 50 हे यहोवा, मैं तब तक विलाप करता रहूँगा जब तक तू दृष्टि न करे और हम को देखे! मैं तब तक विलाप ही करता रहूँगा जब तक तू स्वर्ग से हम पर दृष्टि न करे! 51 जब मैं देखा करता हूँ जो कुछ मेरी नगरी की युवतियों के साथ घटा तब मेरे नयन मुझको दु:खी करते हैं। 52 जो लोग व्यर्थ में ही मेरे शत्रु बने है, वे घूमते हैं मेरी शिकार की फिराक में, मानों मैं कोई चिड़िया हूँ। 53 जीते जी उन्होंने मुझको घड़े में फेंका और मुझ पर पत्थर लुढ़काए थे। 54 मेरे सिर पर से पानी गुज़र गया था। मैंने मन में कहाँ, “मेरा नाश हुआ।” 55 हे यहोवा, मैंने तेरा नाम पुकारा। उस गर्त के तल से मैंने तेरा नाम पुकारा। 56 तूने मेरी आवाज़ को सुना। तूने कान नहीं मूंद लिये। तूने बचाने से और मेरी रक्षा करने से नकारा नहीं। 57 जब मैंने तेरी दुहाई दी, उसी दिन तू मेरे पास आ गया था। तूने मुझ से कहा था, “भयभीत मत हो।” 58 हे यहोवा, मेरे अभियोग में तूने मेरा पक्ष लिया। मेरे लिये तू मेरा प्राण वापस ले आया। 59 हे यहोवा, तूने मेरी विपत्तियाँ देखी हैं, अब मेरे लिये तू मेरा न्याय कर। 60 तूने स्वयं देखा है कि शत्रुओं ने मेरे साथ कितना अन्याय किया। तूने स्वयं देखा है उन सारे षड़यंत्रों को जो उन्होंने मुझ से बदला लेने को मेरे विरोध में रचे थे। 61 हे यहोवा, तूने सुना है कि वे मेरा अपमान कैसे करते हैं। तूने सुना है उन षड़यंत्रों को जो उन्होंने मेरे विरोध में रचाये। 62 मेरे शत्रुओं के वचन और विचार सदा ही मेरे विरुद्ध रहे। 63 देखो यहोवा, चाहे वे बैठे हों, चाहे वे खड़े हों, कैसे वे मेरी हंसी उड़ाते हैं! 64 हे यहोवा, उनके साथ वैसा ही कर जैसा उनके साथ करना चाहिये! उनके कर्मो का फल तू उनको दे दे! 65 उनका मन हठीला कर दे! फिर अपना अभिशाप उन पर डाल दे! 66 क्रोध में भर कर तू उनका पीछा कर! उन्हें बर्बाद कर दे! हे यहोवा, आकाश के नीचे से तू उन्हें समाप्त कर दे!
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