पवित्र बाइबिल

बाइबल सोसाइटी ऑफ इंडिया (BSI)
2 इतिहास
1. जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअद्दान था, जो यरूशलेम की थी।
2. उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया।
3. जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था।
4. परन्तु उसने उनके लड़के वालों को न मारा क्योंकि उसने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए, जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।
5. और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियों और बिन्यामीनियों को इकट्ठा कर के उन को, पितरों के घरानों के अनुसार सहस्रपतियों और शतपतियों के अधिकार में ठहराया; और उन में से जितनों की अवस्था बीस वर्ष की अथवा उस से अधिक थी, उनकी गिनती कर के तीन लाख भाला चलाने वाले और ढाल उठाने वाले बड़े बड़े योद्धा पाए।
6. फिर उसने एक लाख इस्राएली शूरवीरों को भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा।
7. परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साथ जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्थात एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता।
8. यदि तू जा कर पुरुषार्थ करे; और युद्ध के लिये हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहायता करने और गिरा देने दोनों में परमेश्वर सामथीं है।
9. अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है।
10. तब अमस्याह ने उन्हें अर्थात उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया था, अलग कर दिया, कि वे अपने स्थान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित हो कर अपने स्थान को लौट गए।
11. परन्तु अमस्याह हियाव बान्ध कर अपने लोगों को ले चला, और लोन की तराई में जा कर, दस हजार सेईरियों को मार डाला।
12. और यहूदियों ने दस हजार को बन्धुआ कर के चट्टान की चोटी पर ले गए, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए।
13. परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साथ युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों पर टूट पड़े, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली।
14. जब अमस्याह एदोनियों का संहार कर के लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता कर के खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दण्डवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा।
15. तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उसने उसके पास एक नबी भेजा जिसने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है?
16. वह उस से कह ही रहा था कि उसने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कह कर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी।
17. तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति ले कर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था, यों कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें।
18. इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला।
19. तू कहता है, कि मैं ने एदोमियों को जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है! अपने घर में रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा।
20. परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे।
21. तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया।
22. और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपने अपने डेरे को भागा।
23. तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्र था, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए।
24. और जितना सोना चान्दी और जितने पात्र परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन में जितना खजाना था, उस सब को और बन्धक लोगों को भी ले कर वह शोमरोन को लौट गया।
25. यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा।
26. आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?
27. जिस समय अमस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़ कर फिर गया था उस समय से यरूशलेम में उसके विरुद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतों ने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला।
28. तब वह घोड़ों पर रख कर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई।
Total 36 अध्याय, Selected अध्याय 25 / 36
1 जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअद्दान था, जो यरूशलेम की थी। 2 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया। 3 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था। 4 परन्तु उसने उनके लड़के वालों को न मारा क्योंकि उसने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए, जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 5 और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियों और बिन्यामीनियों को इकट्ठा कर के उन को, पितरों के घरानों के अनुसार सहस्रपतियों और शतपतियों के अधिकार में ठहराया; और उन में से जितनों की अवस्था बीस वर्ष की अथवा उस से अधिक थी, उनकी गिनती कर के तीन लाख भाला चलाने वाले और ढाल उठाने वाले बड़े बड़े योद्धा पाए। 6 फिर उसने एक लाख इस्राएली शूरवीरों को भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा। 7 परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साथ जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्थात एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता। 8 यदि तू जा कर पुरुषार्थ करे; और युद्ध के लिये हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहायता करने और गिरा देने दोनों में परमेश्वर सामथीं है। 9 अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है। 10 तब अमस्याह ने उन्हें अर्थात उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया था, अलग कर दिया, कि वे अपने स्थान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित हो कर अपने स्थान को लौट गए। 11 परन्तु अमस्याह हियाव बान्ध कर अपने लोगों को ले चला, और लोन की तराई में जा कर, दस हजार सेईरियों को मार डाला। 12 और यहूदियों ने दस हजार को बन्धुआ कर के चट्टान की चोटी पर ले गए, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए। 13 परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साथ युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों पर टूट पड़े, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली। 14 जब अमस्याह एदोनियों का संहार कर के लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता कर के खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दण्डवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा। 15 तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उसने उसके पास एक नबी भेजा जिसने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है? 16 वह उस से कह ही रहा था कि उसने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कह कर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी। 17 तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति ले कर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था, यों कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 18 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला। 19 तू कहता है, कि मैं ने एदोमियों को जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है! अपने घर में रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा। 20 परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे। 21 तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया। 22 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपने अपने डेरे को भागा। 23 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्र था, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 24 और जितना सोना चान्दी और जितने पात्र परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन में जितना खजाना था, उस सब को और बन्धक लोगों को भी ले कर वह शोमरोन को लौट गया। 25 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा। 26 आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 27 जिस समय अमस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़ कर फिर गया था उस समय से यरूशलेम में उसके विरुद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतों ने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला। 28 तब वह घोड़ों पर रख कर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई।
Total 36 अध्याय, Selected अध्याय 25 / 36
×

Alert

×

Hindi Letters Keypad References