1. {न्याय के लिये प्रार्थना} PS हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है?
संकट के समय में क्यों छिपा रहता है*? |
3. क्योंकि दुष्ट अपनी अभिलाषा पर घमण्ड करता है,
और लोभी यहोवा को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है। |
4. दुष्ट अपने अहंकार में परमेश्वर को नहीं खोजता;
उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं। |
5. वह अपने मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है;
तेरे धार्मिकता के नियम उसकी दृष्टि से बहुत दूर ऊँचाई पर हैं, जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुँकारता है। |
7. उसका मुँह श्राप और छल और धमकियों से भरा है;
उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुँह में हैं। (रोम. 3:14) |
8. वह गाँवों में घात में बैठा करता है,
और गुप्त स्थानों में निर्दोष को घात करता है, उसकी आँखें लाचार की घात में लगी रहती है। |
9. वह सिंह के समान झाड़ी में छिपकर घात में बैठाता है;
वह दीन को पकड़ने के लिये घात लगाता है, वह दीन को जाल में फँसाकर पकड़ लेता है। |
14. तूने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और उत्पीड़न पर दृष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपने हाथ में रखे;
लाचार अपने आप को तुझे सौंपता है; अनाथों का तू ही सहायक रहा है। |
15. दुर्जन और दुष्ट की भूजा को तोड़ डाल;
उनकी दुष्टता का लेखा ले, जब तक कि सब उसमें से दूर न हो जाए। |