पवित्र बाइबिल

समकालीन संस्करण खोलें (OCV)
भजन संहिता
1. [QS]मैंने निश्चय किया, “मैं पाप करने से अपने आचरण [QE][QS2]एवं जीभ से अपने बोलने की चौकसी करूंगा; [QE][QS]यदि मैं दुष्टों की उपस्थिति में हूं, [QE][QS2]मैं अपने वचनों पर नियंत्रण रखूंगा.” [QE]
2. [QS]तब मैंने मौन धारण कर लिया, [QE][QS2]यहां तक कि मैंने भली बातों पर भी नियंत्रण लगा दिया, [QE][QS]तब मेरी व्याकुलता बढ़ती चली गई; [QE]
2. [QS2]भीतर ही भीतर मेरा हृदय जलता गया [QE][QS]और इस विषय पर अधिक विचार करने पर मेरे भीतर अग्नि भड़कने लगी; [QE][QS2]तब मैंने अपना मौन तोड़ दिया और जीभ से बोल उठा: [QE][PBR]
4. [QS]“याहवेह, मुझ पर मेरे जीवन का अंत प्रकट कर दीजिए. [QE][QS2]मुझे बताइए कि कितने दिन शेष हैं मेरे जीवन के; [QE][QS2]मुझ पर स्पष्ट कीजिए कि कितना है मेरा क्षणभंगुर जीवन. [QE]
5. [QS]आपने मेरी आयु क्षणिक मात्र ही निर्धारित की है; [QE][QS2]आपकी तुलना में मेरी आयु के वर्ष नगण्य हैं. [QE][QS]वैसे भी मनुष्य का जीवन-श्वास मात्र ही होता है, [QE][QS2]वह शक्तिशाली व्यक्ति का भी. [QE][PBR]
6. [QS]“एक छाया के समान, जो चलती-फिरती रहती है; [QE][QS2]उसकी सारी भाग दौड़ निरर्थक ही होती है. [QE][QS2]वह धन संचित करता जाता है, किंतु उसे यह ज्ञात ही नहीं होता, कि उसका उपभोग कौन करेगा. [QE][PBR]
7. [QS]“तो प्रभु, अब मैं किस बात की प्रतीक्षा करूं? [QE][QS2]मेरी एकमात्र आशा आप ही हैं. [QE]
8. [QS]मुझे मेरे समस्त अपराधों से उद्धार प्रदान कीजिए; [QE][QS2]मुझे मूर्खों की घृणा का पात्र होने से बचाइए. [QE]
9. [QS]मैं मूक बन गया; मैंने कुछ भी न कहना उपयुक्त समझा, [QE][QS2]क्योंकि आप उठे थे. [QE]
10. [QS]अब मुझ पर प्रहार करना रोक दीजिए; [QE][QS2]आपके प्रहार से मैं टूट चुका हूं. [QE]
11. [QS]मनुष्यों द्वारा किए गए अपराध के लिए आप उन्हें ताड़ना के साथ दंड देते हैं, [QE][QS2]आप उनकी अमूल्य संपत्ति ऐसे नष्ट कर देते हैं, मानो उसे कीड़ा खा गया. [QE][QS2]निश्चयतः मनुष्य मात्र एक श्वास है. [QE][PBR]
12. [QS]“याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए, [QE][QS2]मेरी सहायता की पुकार पर ध्यान दीजिए; [QE][QS2]मेरे आंसुओं की अनसुनी न कीजिए. [QE][QS]मैं अल्पकाल के लिए आपका परदेशी हूं, [QE][QS2]ठीक जिस प्रकार मेरे समस्त पूर्वज प्रवासी थे. [QE]
13. [QS]इसके पूर्व कि मैं चला जाऊं, अपनी कोपदृष्टि मुझ पर से हटा लीजिए, [QE][QS2]कि कुछ समय के लिए ही मुझे आनंद का सुख प्राप्‍त हो सके.” [QE]
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1 मैंने निश्चय किया, “मैं पाप करने से अपने आचरण एवं जीभ से अपने बोलने की चौकसी करूंगा; यदि मैं दुष्टों की उपस्थिति में हूं, मैं अपने वचनों पर नियंत्रण रखूंगा.” 2 तब मैंने मौन धारण कर लिया, यहां तक कि मैंने भली बातों पर भी नियंत्रण लगा दिया, तब मेरी व्याकुलता बढ़ती चली गई; 2 भीतर ही भीतर मेरा हृदय जलता गया और इस विषय पर अधिक विचार करने पर मेरे भीतर अग्नि भड़कने लगी; तब मैंने अपना मौन तोड़ दिया और जीभ से बोल उठा: 4 “याहवेह, मुझ पर मेरे जीवन का अंत प्रकट कर दीजिए. मुझे बताइए कि कितने दिन शेष हैं मेरे जीवन के; मुझ पर स्पष्ट कीजिए कि कितना है मेरा क्षणभंगुर जीवन. 5 आपने मेरी आयु क्षणिक मात्र ही निर्धारित की है; आपकी तुलना में मेरी आयु के वर्ष नगण्य हैं. वैसे भी मनुष्य का जीवन-श्वास मात्र ही होता है, वह शक्तिशाली व्यक्ति का भी. 6 “एक छाया के समान, जो चलती-फिरती रहती है; उसकी सारी भाग दौड़ निरर्थक ही होती है. वह धन संचित करता जाता है, किंतु उसे यह ज्ञात ही नहीं होता, कि उसका उपभोग कौन करेगा. 7 “तो प्रभु, अब मैं किस बात की प्रतीक्षा करूं? मेरी एकमात्र आशा आप ही हैं. 8 मुझे मेरे समस्त अपराधों से उद्धार प्रदान कीजिए; मुझे मूर्खों की घृणा का पात्र होने से बचाइए. 9 मैं मूक बन गया; मैंने कुछ भी न कहना उपयुक्त समझा, क्योंकि आप उठे थे. 10 अब मुझ पर प्रहार करना रोक दीजिए; आपके प्रहार से मैं टूट चुका हूं. 11 मनुष्यों द्वारा किए गए अपराध के लिए आप उन्हें ताड़ना के साथ दंड देते हैं, आप उनकी अमूल्य संपत्ति ऐसे नष्ट कर देते हैं, मानो उसे कीड़ा खा गया. निश्चयतः मनुष्य मात्र एक श्वास है. 12 “याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए, मेरी सहायता की पुकार पर ध्यान दीजिए; मेरे आंसुओं की अनसुनी न कीजिए. मैं अल्पकाल के लिए आपका परदेशी हूं, ठीक जिस प्रकार मेरे समस्त पूर्वज प्रवासी थे. 13 इसके पूर्व कि मैं चला जाऊं, अपनी कोपदृष्टि मुझ पर से हटा लीजिए, कि कुछ समय के लिए ही मुझे आनंद का सुख प्राप्‍त हो सके.”
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