सभोपदेशक 3 : 1 (HOV)
हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।
सभोपदेशक 3 : 2 (HOV)
जन्म का समय, और मरन का भी समय; बोने का समय; और बोए हुए को उखाड़ने का भी समय है;
सभोपदेशक 3 : 3 (HOV)
घात करने का समय, और चंगा करने का भी समय; ढा देने का समय, और बनाने का भी समय है;
सभोपदेशक 3 : 4 (HOV)
रोने का समय, और हंसने का भी समय; छाती पीटने का समय, और नाचने का भी समय है;
सभोपदेशक 3 : 5 (HOV)
पत्थर फेंकने का समय, और पत्थर बटोरने का भी समय; गल लगाने का समय, और गल लगाने से रूकने का भी समय है;
सभोपदेशक 3 : 6 (HOV)
ढूंढ़ने का समय, और खो देने का भी समय; बचा रखने का समय, और फेंक देने का भी समय है;
सभोपदेशक 3 : 7 (HOV)
फाड़ने का समय, और सीने का भी समय; चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है;
सभोपदेशक 3 : 8 (HOV)
प्रेम का समय, और बैर करने का भी समय; लड़ाई का समय, और मेल का भी समय है।
सभोपदेशक 3 : 9 (HOV)
काम करनेवाले को अधिक परिश्रम से क्या लाभ होता है?
सभोपदेशक 3 : 10 (HOV)
मैं ने उस दु:खभरे काम को देखा है जो परमेश्वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगे रहें।
सभोपदेशक 3 : 11 (HOV)
उस ने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते है; फिर उस ने मनुष्यों के मन में अनादि- अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, तौभी काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता।
सभोपदेशक 3 : 12 (HOV)
मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सियाव, और कुछ भी अच्छा नहीं;
सभोपदेशक 3 : 13 (HOV)
और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए- पीए और अपेन सब परिश्रम में सुखी रहे।
सभोपदेशक 3 : 14 (HOV)
मैं जानता हूं कि जो कुछ परमेश्वर करता है वह सदा स्थिर रहेगा; न तो उस में कुछ बढ़ाया जा सकता है और न कुछ घटाया जा सकता है; परमेश्वर एसा इसलिये करता है कि लोग उसका भय मानें।
सभोपदेशक 3 : 15 (HOV)
जो कुछ हुआ वह इस से पहिले भी हो चुका; जो होनेवाला है, वह हो भी चुका है; और परमेश्वर बीती हुई बात को फिर पूछता है।
सभोपदेशक 3 : 16 (HOV)
फिर मैं ने संसार में क्या देखा कि न्याय के स्थान में दुष्टता होती है, और धर्म के स्थान में भी दुष्टता होती है।
सभोपदेशक 3 : 17 (HOV)
मैं ने मन में कहा, परमेश्वर धर्मी और दुष्ट दोनों का न्याय करेगा, क्योंकि उसके यहां एक एक विषय और एक एक काम का समय है।
सभोपदेशक 3 : 18 (HOV)
मैं ने मन में कहा कि यह इसलिये होता है कि परमेश्वर मनुष्यों को जांचे और कि वे देख सकें कि वे पशु- समान हैं।
सभोपदेशक 3 : 19 (HOV)
क्योंकि जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है।
सभोपदेशक 3 : 20 (HOV)
सब एक स्थान मे जाते हैं; सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।
सभोपदेशक 3 : 21 (HOV)
क्या मनुष्य का प्राण ऊपर की ओर चढ़ता है और पशुओं का प्राण नीचे की ओर जाकर मिट्टी में मिल जाता है? कौन जानता है?
सभोपदेशक 3 : 22 (HOV)
सो मैं ने यह देखा कि इस से अधिक कुछ अच्छा नहीं कि मनुष्य अपने कामों के आनन्दित रहे, क्योंकि उसका भाग्य यही है; कौन उसके पीछे होनेवाली बातों को देखने के लिये उसको लौटा लाएगा?

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