नीतिवचन 12 : 1 (ERVHI)
जो शिक्षा और अनुशासन से प्रेम करता है, वह तो ज्ञान से प्रेम यूँ ही करता है। किन्तु जो सुधार से घृणा करता है, वह तो निरा मूर्ख है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 2 (ERVHI)
सज्जन मनुष्य यहोवा की कृपा पाता है, किन्तु छल छंदी को यहोवा दण्ड देता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 3 (ERVHI)
दुष्टता, किसी जन को स्थिर नहीं कर सकती किन्तु धर्मी जन कभी उखाड़ नहींपाता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 4 (ERVHI)
एक उत्तम पत्नी के साथ पति खुश और गर्वीला होता है। किन्तु वह पत्नी जो अपने पति को लजाती है वह उसको शरीर की बीमारी जैसे होती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 5 (ERVHI)
धर्मी की योजनाएँ न्याय संगत होती हैं जबकि दुष्ट की सलाह कपटपूर्ण रहती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 6 (ERVHI)
दुष्ट के शब्द घात में झपटने की रहते है। किन्तु सज्जन की वाणी उनको बचाती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 7 (ERVHI)
जो खोटे होते हैं उखाड़ फेंके जाते हैं, किन्तु खरे जन का घराना टिका रहता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 8 (ERVHI)
व्यक्ति अपनी भली समझ के अनुसार प्रशंसा पाता है, किन्तु ऐसे जन जिनके मन कुपथ गामी हों घृणा के पात्र होते हैं। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 9 (ERVHI)
सामान्य जन बनकर परिश्रम करना उत्तम है इसके बजाए कि भूखे रहकर महत्वपूर्ण जन सा स्वांग भरना। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 10 (ERVHI)
धर्मी अपने पशु तक की जरूरतों का ध्यान रखता है, किन्तु दुष्ट के सर्वाधिक दया भरे काम भी कठोर क्रूर रहते हैं। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 11 (ERVHI)
जो अपने खेत में काम करता है उसके पास खाने की बहुतायत होंगी; किन्तु पीछे भागता रहता जो ना समझ के उसके पास विवेक का अभाव रहता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 12 (ERVHI)
दुष्ट जन पापियों की लूट को चाहते हैं, किन्तु धर्मी जन की जड़ हरी रहती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 13 (ERVHI)
पापी मनुष्य को पाप उसका अपना ही शब्द—जाल में फँसा लेता है। किन्तु खरा व्यक्ति विपत्ति से बच निकलता। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 14 (ERVHI)
अपनी वाणी के सुफल से व्यक्ति श्रेष्ठ वस्तुओं से भर जाता है। निश्चय यह उतना ही जितना अपने हाथों का काम करके उसको सफलता देता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 15 (ERVHI)
मूर्ख को अपना मार्ग ठीक जान पड़ता है, किन्तु बुद्धिमान व्यक्ति सन्मति सुनता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 16 (ERVHI)
मूर्ख जन अपनी झुंझलाहट झटपट दिखाता है, किन्तु बुद्धिमान अपमान की उपेक्षा करता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 17 (ERVHI)
सत्यपूर्ण साक्षी खरी गवाही देता है, किन्तु झूठा साक्षी झूठी बातें बनाता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 18 (ERVHI)
अविचारित वाणी तलवार सी छेदती, किन्तु विवेकी की वाणी घावों को भरती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 19 (ERVHI)
सत्यपूर्ण वाणी सदा सदा टिकी रहती है, किन्तु झूठी जीभ बस क्षण भर को टिकती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 20 (ERVHI)
उनके मनों में छल—कपट भरा रहता है, जो कुचक्र भरी योजना रचा करते हैं। किन्तु जो शान्ति को बढ़ावा देते हैं, आनन्द पाते हैं। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 21 (ERVHI)
धर्मी जन पर कभी विपत्ति नहीं गिरेगी, किन्तु दुष्टों को तो विपत्तियाँ घेरेंगी। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 22 (ERVHI)
ऐसे होठों को यहोवा घृणा करता है जो झूठ बोलते हैं, किन्तु उन लोगों से जो सत्य से पूर्ण हैं, वह प्रसन्न रहता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 23 (ERVHI)
ज्ञानी अधिक बोलता नहीं है, चुप रहता है किन्तु मूर्ख अधिक बोल बोलकर अपने अज्ञान को दर्शाता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 24 (ERVHI)
परिश्रमी हाथ तो शासन करेंगे, किन्तु आलस्य का परिणाम बेगार होगा। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 25 (ERVHI)
चिंतापूर्ण मन व्यक्ति को दबोच लेता है; किन्तु भले वचन उसे हर्ष से भर देते हैं। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 26 (ERVHI)
धर्मी मनुष्य मित्रता में सतर्क रहता है, किन्तु दुष्टों की चाल उन्हीं को भटकाती है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 27 (ERVHI)
आलसी मनुष्य निज शिकार ढूँढ नहीं पाता किन्तु परिश्रमी जो कुछ उसके पास है, उसे आदर देता है। [PE][PS]
नीतिवचन 12 : 28 (ERVHI)
नेकी के मार्ग में जीवन रहता है, और उस राह के किनारे अमरता बसती है। [PE]

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