नीतिवचन 12 : 2 (ERVHI)
जो शिक्षा और अनुशासन से प्रेम करता है, वह तो ज्ञान से प्रेम यूँ ही करता है। किन्तु जो सुधार से घृणा करता है, वह तो निरा मूर्ख है।
नीतिवचन 12 : 3 (ERVHI)
सज्जन मनुष्य यहोवा की कृपा पाता है, किन्तु छल छंदी को यहोवा दण्ड देता है।
नीतिवचन 12 : 4 (ERVHI)
दुष्टता, किसी जन को स्थिर नहीं कर सकती किन्तु धर्मी जन कभी उखाड़ नहींपाता है।
नीतिवचन 12 : 5 (ERVHI)
एक उत्तम पत्नी के साथ पति खुश और गर्वीला होता है। किन्तु वह पत्नी जो अपने पति को लजाती है वह उसको शरीर की बीमारी जैसे होती है।
नीतिवचन 12 : 6 (ERVHI)
धर्मी की योजनाएँ न्याय संगत होती हैं जबकि दुष्ट की सलाह कपटपूर्ण रहती है।
नीतिवचन 12 : 7 (ERVHI)
दुष्ट के शब्द घात में झपटने की रहते है। किन्तु सज्जन की वाणी उनको बचाती है।
नीतिवचन 12 : 8 (ERVHI)
जो खोटे होते हैं उखाड़ फेंके जाते हैं, किन्तु खरे जन का घराना टिका रहता है।
नीतिवचन 12 : 9 (ERVHI)
व्यक्ति अपनी भली समझ के अनुसार प्रशंसा पाता है, किन्तु ऐसे जन जिनके मन कुपथ गामी हों घृणा के पात्र होते हैं।
नीतिवचन 12 : 10 (ERVHI)
सामान्य जन बनकर परिश्रम करना उत्तम है इसके बजाए कि भूखे रहकर महत्वपूर्ण जन सा स्वांग भरना।
नीतिवचन 12 : 11 (ERVHI)
धर्मी अपने पशु तक की जरूरतों का ध्यान रखता है, किन्तु दुष्ट के सर्वाधिक दया भरे काम भी कठोर क्रूर रहते हैं।
नीतिवचन 12 : 12 (ERVHI)
जो अपने खेत में काम करता है उसके पास खाने की बहुतायत होंगी; किन्तु पीछे भागता रहता जो ना समझ के उसके पास विवेक का अभाव रहता है।
नीतिवचन 12 : 13 (ERVHI)
दुष्ट जन पापियों की लूट को चाहते हैं, किन्तु धर्मी जन की जड़ हरी रहती है।
नीतिवचन 12 : 14 (ERVHI)
पापी मनुष्य को पाप उसका अपना ही शब्द—जाल में फँसा लेता है। किन्तु खरा व्यक्ति विपत्ति से बच निकलता।
नीतिवचन 12 : 15 (ERVHI)
अपनी वाणी के सुफल से व्यक्ति श्रेष्ठ वस्तुओं से भर जाता है। निश्चय यह उतना ही जितना अपने हाथों का काम करके उसको सफलता देता है।
नीतिवचन 12 : 16 (ERVHI)
मूर्ख को अपना मार्ग ठीक जान पड़ता है, किन्तु बुद्धिमान व्यक्ति सन्मति सुनता है।
नीतिवचन 12 : 17 (ERVHI)
मूर्ख जन अपनी झुंझलाहट झटपट दिखाता है, किन्तु बुद्धिमान अपमान की उपेक्षा करता है।
नीतिवचन 12 : 18 (ERVHI)
सत्यपूर्ण साक्षी खरी गवाही देता है, किन्तु झूठा साक्षी झूठी बातें बनाता है।
नीतिवचन 12 : 19 (ERVHI)
अविचारित वाणी तलवार सी छेदती, किन्तु विवेकी की वाणी घावों को भरती है।
नीतिवचन 12 : 20 (ERVHI)
सत्यपूर्ण वाणी सदा सदा टिकी रहती है, किन्तु झूठी जीभ बस क्षण भर को टिकती है।
नीतिवचन 12 : 21 (ERVHI)
उनके मनों में छल—कपट भरा रहता है, जो कुचक्र भरी योजना रचा करते हैं। किन्तु जो शान्ति को बढ़ावा देते हैं, आनन्द पाते हैं।
नीतिवचन 12 : 22 (ERVHI)
धर्मी जन पर कभी विपत्ति नहीं गिरेगी, किन्तु दुष्टों को तो विपत्तियाँ घेरेंगी।
नीतिवचन 12 : 23 (ERVHI)
ऐसे होठों को यहोवा घृणा करता है जो झूठ बोलते हैं, किन्तु उन लोगों से जो सत्य से पूर्ण हैं, वह प्रसन्न रहता है।
नीतिवचन 12 : 24 (ERVHI)
ज्ञानी अधिक बोलता नहीं है, चुप रहता है किन्तु मूर्ख अधिक बोल बोलकर अपने अज्ञान को दर्शाता है।
नीतिवचन 12 : 25 (ERVHI)
परिश्रमी हाथ तो शासन करेंगे, किन्तु आलस्य का परिणाम बेगार होगा।
नीतिवचन 12 : 26 (ERVHI)
चिंतापूर्ण मन व्यक्ति को दबोच लेता है; किन्तु भले वचन उसे हर्ष से भर देते हैं।
नीतिवचन 12 : 27 (ERVHI)
धर्मी मनुष्य मित्रता में सतर्क रहता है, किन्तु दुष्टों की चाल उन्हीं को भटकाती है।
नीतिवचन 12 : 28 (ERVHI)
आलसी मनुष्य निज शिकार ढूँढ नहीं पाता किन्तु परिश्रमी जो कुछ उसके पास है, उसे आदर देता है। नेकी के मार्ग में जीवन रहता है, और उस राह के किनारे अमरता बसती है।
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