नीतिवचन 14 : 2 (ERVHI)
बुद्धिमान स्त्री अपना घर बनाती है किन्तु मूर्ख स्त्री अपने ही हाथों से अपना घर उजाड़ देती है।
नीतिवचन 14 : 3 (ERVHI)
जिसकी राह सीधी—सच्ची हो, आदर के साथ वह यहोवा से डरता है, किन्तु वह जिसकी राह कुटिल है, यहोवा से घृणा करता है।
नीतिवचन 14 : 4 (ERVHI)
मूर्ख की बातें उसकी पीठ पर डँडे पड़वाती है। किन्तु बुद्धिमान की वाणी रक्षा करती है।
नीतिवचन 14 : 5 (ERVHI)
जहाँ बैल नहीं होते, खलिहान खाली रहते हैं, बैल के बल पर ही भरपूर फसल होती है।
नीतिवचन 14 : 6 (ERVHI)
एक सच्चा साक्षी कभी नहीं छलता है किन्तु झूठा गवाह, झूठ उगलता रहता है।
नीतिवचन 14 : 7 (ERVHI)
उच्छृंखल बुद्धि को खोजता रहता है फिर भी नहीं पाता है; किन्तु भले—बुरे का बोध जिसको रहता है, उसके पास ज्ञान सहज में ही आता है।
नीतिवचन 14 : 8 (ERVHI)
मूर्ख की संगत से दूरी बनाये रख, क्योंकि उसकी वाणी में तू ज्ञान नहीं पायेगा।
नीतिवचन 14 : 9 (ERVHI)
ज्ञानी जनों का ज्ञान इसी में है, कि वे अपनी राहों का चिंतन करें, मूर्खता मूर्ख की छल में बसती है।
नीतिवचन 14 : 10 (ERVHI)
पाप के विचारों पर मूर्ख लोग हँसते हैं, किन्तु सज्जनों में सद्भाव बना रहता है।
नीतिवचन 14 : 11 (ERVHI)
हर मन अपनी निजी पीड़ा को जानता है, और उसका दुःख कोई नहीं बाँट पाता है।
नीतिवचन 14 : 12 (ERVHI)
दुष्ट के भवन को ढहा दिया जायेगा, किन्तु सज्जन का डेरा फूलेगा फलेगा।
नीतिवचन 14 : 13 (ERVHI)
ऐसी भी राह होती है जो मनुष्य को उचित जान पड़ती है; किन्तु परिणाम में वह मृत्यु को ले जाती।
नीतिवचन 14 : 14 (ERVHI)
हँसते हुए भी मन रोता रह सकता है, और आनन्द दुःख में बदल सकता है।
नीतिवचन 14 : 15 (ERVHI)
विश्वासहीन को, अपने कुमार्गो का फल भुगतना पड़ेगा; और सज्जन सुमार्गो का प्रतिफल पायेगा।
नीतिवचन 14 : 16 (ERVHI)
सरल जन सब कुछ का विश्वास कर लेता है। किन्तु विवेकी जन सोच—समझकर पैर रखता है।
नीतिवचन 14 : 17 (ERVHI)
बुद्धिमान मनुष्य यहोवा से डरता है और पाप से दूर रहता है। किन्तु मूर्ख मनुष्य बिना विचार किये उतावला होता है— वह सावधान नहीं रहता।
नीतिवचन 14 : 18 (ERVHI)
ऐसा मनुष्य जिसे शीघ्र क्रोध आता है, वह मूर्खतापूर्ण काम कर जाता है और वह मनुष्य जो छल—छंदी होता है वह तो घृणा सब ही की पाता है।
नीतिवचन 14 : 19 (ERVHI)
सीधे जनों को बस मूढ़ता मिल पाती किन्तु बुद्धिमान के सिर ज्ञान का मुकुट होता है।
नीतिवचन 14 : 20 (ERVHI)
दुर्जन सज्जनों के सामने सिर झुकायेंगे, और दुष्ट सज्जन के द्वार माथा नवायेंगे।
नीतिवचन 14 : 21 (ERVHI)
गरीब को उसके पड़ेसी भी दूर रखते हैं; किन्तु धनी जन के मित्र बहुत होते हैं।
नीतिवचन 14 : 22 (ERVHI)
जो अपने पड़ोसी को तुच्छ मानता है वह पाप करता है किन्तु जो गरीबों पर दया करता है वह जन धन्य है।
नीतिवचन 14 : 23 (ERVHI)
ऐसे मनुष्य जो षड्यन्त्र रचते हैं क्या भटक नहीं जाते किन्तु जो भली योजनाएँ रचते हैं, वे जन तो प्रेम और विश्वास पाते हैं।
नीतिवचन 14 : 24 (ERVHI)
परिश्रम के सभी काम लाभ देते हैं, किन्तु कोरी बकवास बस हानि पहुँचाती है।
नीतिवचन 14 : 25 (ERVHI)
विवेकी को प्रतिफल में धन मिलता है पर मूर्खो की मूर्खता मूढ़ता देती है।
नीतिवचन 14 : 26 (ERVHI)
एक सच्चा साक्षी अनेक जीवन बचाता है पर झूठा गवाह, कपट पूर्ण होता है।
नीतिवचन 14 : 27 (ERVHI)
ऐसा मनुष्य जो यहोवा से डरता है, उसके पास एक संरक्षित गढ़ी होती है। और वहीं उसके बच्चों को शरण मिलती है।
नीतिवचन 14 : 28 (ERVHI)
यहोवा का भय जीवन स्रोत होता है, वह व्यक्ति को मौत के फंदे से बचाता है।
नीतिवचन 14 : 29 (ERVHI)
विस्तृत विशाल प्रजा राजा की महीमा हैं, किन्तु प्रजा बिना राजा नष्ट हो जाती है।
नीतिवचन 14 : 30 (ERVHI)
धैर्यपूर्ण व्यक्ति बहुत समझ बूझ रखता है, किन्तु ऐसा व्यक्ति जिसे जल्दी से क्रोध आये वह तो अपनी ही मूर्खता दिखाता है।
नीतिवचन 14 : 31 (ERVHI)
शान्त मन शरीर को जीवन देता है किन्तु ईर्ष्या हड्डियों तक को सड़ा देती है।
नीतिवचन 14 : 32 (ERVHI)
जो गरीब को सताती है, वह तो सबके सृजनहार का अपमान करता है। किन्तु वह जो भी कोई गरीब पर दयालु रहता है, वह परमेश्वर का आदर करता है।
नीतिवचन 14 : 33 (ERVHI)
जब दुष्ट जन पर विपदा पड़ती है तब वह हार जाते हैं किन्तु धर्मी जन तो मृत्यु में भी विजय हासिल करते हैं।
नीतिवचन 14 : 34 (ERVHI)
बुद्धिमान के मन में बुद्धि का निवास होता है, और मूर्खो के बीच भी वह निज को जानती है।
नीतिवचन 14 : 35 (ERVHI)
नेकी से राष्ट्र का उत्थान होता है; किन्तु पाप हर जाति का कलंक होता है। विवेकी सेवक, राजा की प्रसन्नता है, किन्तु वह सेवक जो मूर्ख होता है वह उसका क्रोध जगाता है।
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