नीतिवचन 15 : 2 (ERVHI)
कोमल उत्तर से क्रोध शांत होता है किन्तु कठोर वचन क्रोध को भड़काता है।
नीतिवचन 15 : 3 (ERVHI)
बुद्धिमान की वाणी ज्ञान की प्रशंसा करती है, किन्तु मूर्ख का मुख मूर्खता उगलता है।
नीतिवचन 15 : 4 (ERVHI)
यहोवा की आँख हर कहीं लगी हुयी है। वह भले और बुरे को देखती रहती है।
नीतिवचन 15 : 5 (ERVHI)
जो वाणी मन के घाव भर देती है, जीवन—वृक्ष होती है; किन्तु कपटपूर्ण वाणी मन को कुचल देती है।
नीतिवचन 15 : 6 (ERVHI)
मूर्ख अपने पिता की प्रताड़ना का तिरस्कार करता है किन्तु जो कान सुधार पर देता है बुद्धिमानी दिखाता है।
नीतिवचन 15 : 7 (ERVHI)
धर्मी के घर का कोना भरा पूरा रहता है दुष्ट की कमाई उस पर कलेश लाती है।
नीतिवचन 15 : 8 (ERVHI)
बुद्धिमान की वाणी ज्ञान फैलाती है, किन्तु मूर्खो का मन ऐसा नहीं करता है।
नीतिवचन 15 : 9 (ERVHI)
यहोवा दुष्ट के चढ़ावे से घृणा करता है किन्तु उसको सज्जन की प्रार्थना ही प्रसन्न कर देती है।
नीतिवचन 15 : 10 (ERVHI)
दुष्टों की राहों से यहोवा घृणा करता है। किन्तु जो नेकी की राह पर चलते हैं, उनसेवह प्रेम करता है।
नीतिवचन 15 : 11 (ERVHI)
उसकी प्रतीक्षा में कठोर दण्ड रहता है जो पथ—भ्रष्ट हो जाता, और जो सुधार से घृणा करता है, वह निश्चय मर जाता है।
नीतिवचन 15 : 12 (ERVHI)
जबकि यहोवा के समझ मृत्यु और विनाश के रहस्य खुले पड़े हैं। सो निश्चित रूप से वह जानता है कि लोगों के दिल में क्या हो रहा है।
नीतिवचन 15 : 13 (ERVHI)
उपहास करने वाला सुधार नहीं अपनाता है। वह विवेकी से परामर्श नहीं लेता।
नीतिवचन 15 : 14 (ERVHI)
मन की प्रसन्नता मुख को चमकाती, किन्तु मन का दर्द आत्मा को कुचल देता है।
नीतिवचन 15 : 15 (ERVHI)
जिस मन को भले बुरे का बोध होता है वह तो ज्ञान की खोज में रहता है किन्तु मूर्ख का मन, मूढ़ता पर लगता है।
नीतिवचन 15 : 16 (ERVHI)
कुछ गरीब सदा के लिये दुःखी रहते हैं, किन्तु प्रफुल्लित चित उत्सव मनाता रहता है।
नीतिवचन 15 : 17 (ERVHI)
बैचेनी के साथ प्रचुर धन उत्तम नहीं, यहोवा का भय मानते रहने से थोड़ा भी धन उत्तम है।
नीतिवचन 15 : 18 (ERVHI)
घृणा के साथ अधिक भोजन से, प्रेम के साथ थोड़ा भोजन उत्तम है।
नीतिवचन 15 : 19 (ERVHI)
क्रोधी जन मतभेद भड़काता रहता है, जबकि सहनशील जन झगड़े को शांत करता।
नीतिवचन 15 : 20 (ERVHI)
आलसी की राह कांटों से रुधी रहती, जबकि सज्जन का मार्ग राजमार्ग होता है।
नीतिवचन 15 : 21 (ERVHI)
विवेकी पुत्र निज पिता को आनन्दित करता है, किन्तु मूर्ख व्यक्ति निज माता से घृणा करता।
नीतिवचन 15 : 22 (ERVHI)
भले—बुरे का ज्ञान जिसको नहीं होता है ऐसे मनुष्य को तो मूढ़ता सुख देती है, किन्तु समझदार व्यक्ति सीधी राह चलता है।
नीतिवचन 15 : 23 (ERVHI)
बिना परामर्श के योजनायें विफल होती है। किन्तु वे अनेक सलाहकारों से सफल होती है।
नीतिवचन 15 : 24 (ERVHI)
मनुष्य उचित उत्तर देने से आनन्दित होता है। यथोचित समय का वचन कितना उत्तम होता है।
नीतिवचन 15 : 25 (ERVHI)
विवेकी जन को जीवन—मार्ग ऊँचे से ऊँचा ले जाता है, जिससे वह मृत्यु के गर्त में नीचे गिरने से बचा रहे।
नीतिवचन 15 : 26 (ERVHI)
यहोवा अभिमानी के घर को छिन्न—भिन्न करता है; किन्तु वह विवश विधवा के घर की सीमा बनाये रखता।
नीतिवचन 15 : 27 (ERVHI)
दुष्टों के विचारों से यहोवा को घृणा है, पर सज्जनों के विचार उसको सदा भाते हैं।
नीतिवचन 15 : 28 (ERVHI)
लालची मनुष्य अपने घराने पर विपदा लाता है किन्तु वही जीवित रहता है जो जन घूस से घृणा भाव रखता है।
नीतिवचन 15 : 29 (ERVHI)
धर्मी जन का मन तौल कर बोलता है किन्तु दुष्ट का मुख, बुरी बात उगलता है।
नीतिवचन 15 : 30 (ERVHI)
यहोवा दुष्टों से दूर रहता है, अति दूर; किन्तु वह धर्मी की प्रार्थना सुनता है।
नीतिवचन 15 : 31 (ERVHI)
आनन्द भरी मन को हर्षाती, अच्छा समाचार हड्डियों तक हर्ष पहुँचाता है।
नीतिवचन 15 : 32 (ERVHI)
जो जीवनदायी डाँट सुनता है, वही बुद्धिमान जनों के बीच चैन से रहेगा।
नीतिवचन 15 : 33 (ERVHI)
ऐसा मनुष्य जो प्रताड़ना की उपेक्षा करता, वह तो विपत्ति को स्वयं अपने आप पर बुलाता है; किन्तु जो ध्यान देता है सुधार पर, समझ—बूझ पाता है। यहोवा का भय लोगों को ज्ञान सिखाता है। आदर प्राप्त करने से पहले नम्रता आती है।
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