नीतिवचन 18 : 2 (ERVHI)
मित्रता रहित व्यक्ति अपने स्वार्थ साधता है। वह समझदारी की बातें नकार देता है।
नीतिवचन 18 : 3 (ERVHI)
मूर्ख सुख वह शेखचिल्ली बनने में लेता है। सोचता नहीं है कभी वे पूर्ण होंगी या नहीं। सुख उसे समझदारी के बातें नहीं देती।
नीतिवचन 18 : 4 (ERVHI)
दुष्टता के साथ—साथ घृणा भी आती है और निन्दा के साथ अपमान।
नीतिवचन 18 : 5 (ERVHI)
बुद्धिमान के शब्द गहरे जल से होते हैं, वे बुद्धि के स्रोत से उछलते हुए आते हैं।
नीतिवचन 18 : 6 (ERVHI)
दुष्ट जन का पक्ष लेना और निर्दोष को न्याय से वंचित रखना उचित नहीं होता।
नीतिवचन 18 : 7 (ERVHI)
मूर्ख की वाणी झंझटों को जन्म देती है और उसका मुख झगड़ों को न्योता देता है।
नीतिवचन 18 : 8 (ERVHI)
मूर्ख का मुख उसका काम को बिगाड़ देता है और उसके अपने ही होठों के जाल में उसका प्राण फँस जाता है।
नीतिवचन 18 : 9 (ERVHI)
लोग हमेशा कानाफूसी करना चाहते हैं, यह उत्तम भोजन के समान है जो पेट के भीतर उतरता चला जाता है।
नीतिवचन 18 : 10 (ERVHI)
जो अपना काम मंद गति से करता है, वह उसका भाई है, जो विनाश करता है।
नीतिवचन 18 : 11 (ERVHI)
यहोवा का नाम एकगढ़ सुदृढ़ है। उस ओर धर्मी बढ़ जाते हैं और सुरक्षित रहते हैं।
नीतिवचन 18 : 12 (ERVHI)
धनिक समझते हैं कि उनका धन उन्हें बचा लेगा— वह समझते हैं कि वह एक सुरक्षित किला है।
नीतिवचन 18 : 13 (ERVHI)
पतन से पहले मन अहंकारी बन जाता, किन्तु सम्मान से पूर्व विनम्रता आती है।
नीतिवचन 18 : 14 (ERVHI)
बात को बिना सुने ही, जो उत्तर में बोल पड़ता है, वह उसकी मूर्खता और उसका अपयश है।
नीतिवचन 18 : 15 (ERVHI)
मनुष्य का मन उसे व्याधि में थामें रखता किन्तु टूटे मन को भला कोई कैसे थामे।
नीतिवचन 18 : 16 (ERVHI)
बुद्धिमान का मन ज्ञान को प्राप्त करता है। बुद्धिमान के कान इसे खोज लेते हैं।
नीतिवचन 18 : 17 (ERVHI)
उपहार देने वाले का मार्ग उपहार खोलता है और उसे महापुरुषों के सामने पहुँचा देता।
नीतिवचन 18 : 18 (ERVHI)
पहले जो बोलता है ठीक ही लगता है किन्तु बस तब तक ही जब तक दूसरा उससे प्रश्न नहीं करता है।
नीतिवचन 18 : 19 (ERVHI)
यदि दो शक्तिशाली आपस में झगड़ते हों, उत्तम हैं कि उनके झगड़े को पासे फेंक कर निपटाना।
नीतिवचन 18 : 20 (ERVHI)
किसी दृढ़ नगर को जीत लेने से भी रूठे हुए बन्धु को मनाना कठिन है, और आपसी झगड़े होते ऐसे जैसे गढ़ी के मुंदे द्वार होते हैं।
नीतिवचन 18 : 21 (ERVHI)
मनुष्य का पेट उसके मुख के फल से ही भरता है, उसके होठों की खेती का प्रतिफल उसे मिला है।
नीतिवचन 18 : 22 (ERVHI)
वाणी जीवन, मृत्यु की शक्ति रखती है, और जो वाणी से प्रेम रखते है, वे उसका फल खाते हैं।
नीतिवचन 18 : 23 (ERVHI)
जिसको पत्नी मिली है, वह उत्तम पदार्थ पाया है। उसको यहोवा का अनुग्रह मिलता है।
नीतिवचन 18 : 24 (ERVHI)
गरीब जन तो दया की मांग करता है, किन्तु धनी जन तो कठोर उत्तर देता है। कुछ मित्र ऐसे होते हैं जिनका साथ मन को भाता है किन्तु अपना घनिष्ठ मित्र भाई से भी उत्तम हो सकता है।
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