भजन संहिता 1 : 1 (ERVHI)
सचमुच वह जन धन्य होगा [QBR2] यदि वह दुष्टों की सलाह को न मानें, [QBR] और यदि वह किसी पापी के जैसा जीवन न जीए [QBR2] और यदि वह उन लोगों की संगति न करे जो परमेश्वर की राह पर नहीं चलते। [QBR]
भजन संहिता 1 : 2 (ERVHI)
वह नेक मनुष्य है जो यहोवा के उपदेशों से प्रीति रखता है। [QBR2] वह तो रात दिन उन उपदेशों का मनन करता है। [QBR]
भजन संहिता 1 : 3 (ERVHI)
इससे वह मनुष्य उस वृक्ष जैसा सुदृढ़ बनता है [QBR2] जिसको जलधार के किनारे रोपा गया है। [QBR] वह उस वृक्ष समान है, जो उचित समय में फलता [QBR2] और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। [QBR] वह जो भी करता है सफल ही होता है।
भजन संहिता 1 : 4 (ERVHI)
किन्तु दुष्ट जन ऐसे नहीं होते। [QBR2] दुष्ट जन उस भूसे के समान होते हैं जिन्हें पवन का झोका उड़ा ले जाता है। [QBR]
भजन संहिता 1 : 5 (ERVHI)
इसलिए दुष्ट जन न्याय का सामना नहीं कर पायेंगे। [QBR2] सज्जनों की सभा में वे दोषी ठहरेंगे और उन पापियों को छोड़ा नहीं जायेगा। [QBR]
भजन संहिता 1 : 6 (ERVHI)
ऐसा भला क्यों होगा क्योंकि यहोवा सज्जनों की रक्षा करता है [QBR2] और वह दुर्जनों का विनाश करता है। [PE]

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