2 इतिहास 3 : 1 (IRVHI)
मन्दिर निर्माण तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिय्याह नामक पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था : (प्रेरि. 7:47)
2 इतिहास 3 : 2 (IRVHI)
उसने अपने राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को निर्माण कार्य आरम्भ किया।
2 इतिहास 3 : 3 (IRVHI)
परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसकी यह नींव है, अर्थात् उसकी लम्बाई तो प्राचीनकाल के नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी।
2 इतिहास 3 : 4 (IRVHI)
भवन के सामने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊँचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर से शुद्ध सोने से मढ़वाया।
2 इतिहास 3 : 5 (IRVHI)
भवन के मुख्य भाग की छत उसने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृक्ष की और साँकलों की नक्काशी कराई।
2 इतिहास 3 : 6 (IRVHI)
फिर शोभा देने के लिये उसने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पर्वेम का था।
2 इतिहास 3 : 7 (IRVHI)
उसने भवन को, अर्थात् उसकी कड़ियों, डेवढ़ियों, दीवारों और किवाड़ों को सोने से मढ़वाया, और दीवारों पर करूब खुदवाए।
2 इतिहास 3 : 8 (IRVHI)
परमपवित्र स्थान फिर उसने भवन के परमपवित्र स्थान* को बनाया; उसकी लम्बाई भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की थी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी; और उसने उसे छः सौ किक्कार शुद्ध सोने से मढ़वाया।
2 इतिहास 3 : 9 (IRVHI)
सोने की कीलों का तौल पचास शेकेल था। उसने अटारियों को भी सोने से मढ़वाया।
2 इतिहास 3 : 10 (IRVHI)
फिर भवन के परमपवित्र स्थान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए।
2 इतिहास 3 : 11 (IRVHI)
करूबों के पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्थात् एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का और भवन की दीवार तक पहुँचा हुआ था; और उसका दूसरा पंख पाँच हाथ का था और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ था।
2 इतिहास 3 : 12 (IRVHI)
दूसरे करूब का भी एक पंख पाँच हाथ का और भवन की दूसरी दीवार तक पहुँचा था, और दूसरा पंख पाँच हाथ का और पहले करूब के पंख से सटा हुआ था।
2 इतिहास 3 : 13 (IRVHI)
इन करूबों के पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपने-अपने पाँवों के बल खड़े थे, और अपना-अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे।
2 इतिहास 3 : 14 (IRVHI)
फिर उसने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंगनी और लाल रंग के सन के कपड़े का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए।
2 इतिहास 3 : 15 (IRVHI)
पीतल के खम्भे भवन के सामने उसने पैंतीस-पैंतीस हाथ ऊँचे दो खम्भे बनवाए, और जो कँगनी एक-एक के ऊपर थी वह पाँच-पाँच हाथ की थी।
2 इतिहास 3 : 16 (IRVHI)
फिर उसने भीतरी कोठरी में साँकलें बनवाकर खम्भों के ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर साँकलों पर लटकाए।
2 इतिहास 3 : 17 (IRVHI)
उसने इन खम्भों को मन्दिर के सामने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाईं ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बांयें खम्भे का नाम बोआज रखा।
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