दानिय्येल 1 : 1 (IRVHI)
{दानिय्येल और उसके मित्रों द्वारा परमेश्‍वर की आज्ञापालन } यहूदा के राजा यहोयाकीम के राज्य के तीसरे वर्ष में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम पर चढ़ाई करके उसको घेर लिया*।
दानिय्येल 1 : 2 (IRVHI)
तब परमेश्‍वर ने यहूदा के राजा यहोयाकीम को परमेश्‍वर के भवन के कई पात्रों सहित उसके हाथ में कर दिया; और उसने उन पात्रों को शिनार देश में अपने देवता के मन्दिर में ले जाकर, अपने देवता के भण्डार में रख दिया। (2 इति. 36:7)
दानिय्येल 1 : 3 (IRVHI)
तब उस राजा ने अपने खोजों के प्रधान अश्पनज को आज्ञा दी कि इस्राएली राजपुत्रों और प्रतिष्ठित पुरुषों में से ऐसे कई जवानों को ला,
दानिय्येल 1 : 4 (IRVHI)
जो निर्दोष, सुन्दर और सब प्रकार की बुद्धि में प्रवीण, और ज्ञान में निपुण और विद्वान और राजभवन में हाज़िर रहने के योग्य हों; और उन्हें कसदियों के शास्त्र और भाषा की शिक्षा दे।
दानिय्येल 1 : 5 (IRVHI)
और राजा ने आज्ञा दी कि उसके भोजन और पीने के दाखमधु में से उन्हें प्रतिदिन खाने-पीने को दिया जाए। इस प्रकार तीन वर्ष तक उनका पालन-पोषण होता रहे; तब उसके बाद वे राजा के सामने हाज़िर किए जाएँ।
दानिय्येल 1 : 6 (IRVHI)
उनमें यहूदा की सन्तान से चुने हुए, दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह नामक यहूदी थे।
दानिय्येल 1 : 7 (IRVHI)
और खोजों के प्रधान ने उनके दूसरे नाम रखें; अर्थात् दानिय्येल का नाम उसने बेलतशस्सर, हनन्याह का शद्रक, मीशाएल का मेशक, और अजर्याह का नाम अबेदनगो रखा।
दानिय्येल 1 : 8 (IRVHI)
परन्तु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर और उसका दाखमधु पीकर स्वयं को अपवित्र न होने देगा*; इसलिए उसने खोजों के प्रधान से विनती की, कि उसे अपवित्र न होने दे।
दानिय्येल 1 : 9 (IRVHI)
परमेश्‍वर ने खोजों के प्रधान के मन में दानिय्येल के प्रति कृपा और दया भर दी।
दानिय्येल 1 : 10 (IRVHI)
और खोजों के प्रधान ने दानिय्येल से कहा, “मैं अपने स्वामी राजा से डरता हूँ, क्योंकि तुम्हारा खाना-पीना उसी ने ठहराया है, कहीं ऐसा न हो कि वह तेरा मुँह तेरे संगी जवानों से उतरा हुआ और उदास देखे और तुम मेरा सिर राजा के सामने जोखिम में डालो।”
दानिय्येल 1 : 11 (IRVHI)
तब दानिय्येल ने उस मुखिये से, जिसको खोजों के प्रधान ने दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के ऊपर देख-भाल करने के लिये नियुक्त किया था, कहा,
दानिय्येल 1 : 12 (IRVHI)
“मैं तुझ से विनती करता हूँ, अपने दासों को दस दिन तक जाँच, हमारे खाने के लिये साग-पात और पीने के लिये पानी ही दिया जाए।
दानिय्येल 1 : 13 (IRVHI)
फिर दस दिन के बाद हमारे मुँह और जो जवान राजा का भोजन खाते हैं उनके मुँह को देख; और जैसा तुझे देख पड़े, उसी के अनुसार अपने दासों से व्यवहार करना।”
दानिय्येल 1 : 14 (IRVHI)
उनकी यह विनती उसने मान ली, और दस दिन तक उनको जाँचता रहा।
दानिय्येल 1 : 15 (IRVHI)
दस दिन के बाद उनके मुँह राजा के भोजन के खानेवाले सब जवानों से अधिक अच्छे और चिकने देख पड़े।
दानिय्येल 1 : 16 (IRVHI)
तब वह मुखिया उनका भोजन और उनके पीने के लिये ठहराया हुआ दाखमधु दोनों छुड़ाकर, उनको साग-पात देने लगा।
दानिय्येल 1 : 17 (IRVHI)
और परमेश्‍वर ने उन चारों जवानों को सब शास्त्रों, और सब प्रकार की विद्याओं में बुद्धिमानी और प्रवीणता दी; और दानिय्येल सब प्रकार के दर्शन और स्वप्न के अर्थ का ज्ञानी हो गया। (याकू. 1:5,17)
दानिय्येल 1 : 18 (IRVHI)
तब जितने दिन के बाद नबूकदनेस्सर राजा ने जवानों को भीतर ले आने की आज्ञा दी थी, उतने दिनों के बीतने पर खोजों का प्रधान* उन्हें उसके सामने ले गया।
दानिय्येल 1 : 19 (IRVHI)
और राजा उनसे बातचीत करने लगा; और दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के तुल्य उन सब में से कोई न ठहरा; इसलिए वे राजा के सम्मुख हाज़िर रहने लगे।
दानिय्येल 1 : 20 (IRVHI)
और बुद्धि और हर प्रकार की समझ के विषय में जो कुछ राजा उनसे पूछता था उसमें वे राज्य भर के सब ज्योतिषियों और तंत्रियों से दसगुणे निपुण ठहरते थे।
दानिय्येल 1 : 21 (IRVHI)
और दानिय्येल कुस्रू राजा के पहले वर्ष तक बना रहा।

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