व्यवस्थाविवरण 33 : 1 (IRVHI)
{मूसा का इस्राएलियों को दिया हुआ आशीर्वाद} [PS] जो आशीर्वाद परमेश्‍वर के जन* मूसा ने अपनी मृत्यु से पहले इस्राएलियों को दिया वह यह है।
व्यवस्थाविवरण 33 : 2 (IRVHI)
उसने कहा, [QBR] “यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिये उदय हुआ; [QBR] उसने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, [QBR] और लाखों पवित्रों के मध्य में से आया, [QBR] उसके दाहिने हाथ से उनके लिये ज्वालामय विधियाँ निकलीं। (यूह. 1:4) [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 3 (IRVHI)
वह निश्चय लोगों से प्रेम करता है; [QBR] उसके सब पवित्र लोग तेरे हाथ में हैं; [QBR] वे तेरे पाँवों के पास बैठे रहते हैं, [QBR] एक-एक तेरे वचनों से लाभ उठाता है। (इफि. 1:8) [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 4 (IRVHI)
मूसा ने हमें व्यवस्था दी, और वह याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 5 (IRVHI)
जब प्रजा के मुख्य-मुख्य पुरुष, और इस्राएल के सभी गोत्र एक संग होकर एकत्रित हुए, [QBR] तब वह यशूरून में राजा ठहरा। [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 6 (IRVHI)
{रूबेन को आशीर्वाद} [PS] “रूबेन न मरे, वरन् जीवित रहे, तो भी उसके यहाँ के मनुष्य थोड़े हों।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 7 (IRVHI)
{यहूदा को आशीर्वाद} [PS] और यहूदा पर यह आशीर्वाद हुआ जो मूसा ने कहा, [QBR] “हे यहोवा तू यहूदा की सुन, [QBR] और उसे उसके लोगों के पास पहुँचा*। [QBR] वह अपने लिये आप अपने हाथों से लड़ा, [QBR] और तू ही उसके द्रोहियों के विरुद्ध उसका सहायक हो।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 8 (IRVHI)
{लेवी को आशीर्वाद} [PS] फिर लेवी के विषय में उसने कहा, [QBR] “तेरे तुम्मीम और ऊरीम तेरे भक्त के पास हैं, जिसको तूने मस्सा में परख लिया, [QBR] और जिसके साथ मरीबा नामक सोते पर तेरा वाद-विवाद हुआ; [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 9 (IRVHI)
उसने तो अपने माता-पिता के विषय में कहा, 'मैं उनको नहीं जानता;' [QBR] और न तो उसने अपने भाइयों को अपना माना, और न अपने पुत्रों को पहचाना। [QBR] क्योंकि उन्होंने तेरी बातें मानीं, और वे तेरी वाचा का पालन करते हैं। (मत्ती 10:37) [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 10 (IRVHI)
वे याकूब को तेरे नियम, और इस्राएल को तेरी व्यवस्था सिखाएँगे; [QBR] और तेरे आगे धूप और तेरी वेदी पर सर्वांग पशु को होमबलि करेंगे। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 11 (IRVHI)
हे यहोवा, उसकी सम्पत्ति पर आशीष दे, और उसके हाथों की सेवा को ग्रहण कर; [QBR] उसके विरोधियों और बैरियों की कमर पर ऐसा मार, कि वे फिर न उठ सके।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 12 (IRVHI)
{बिन्यामीन को आशीर्वाद} [PS] फिर उसने बिन्यामीन के विषय में कहा, [QBR] “यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा; [QBR] और वह दिन भर उस पर छाया करेगा, [QBR] और वह उसके कंधों के बीच रहा करता है*।” (2 थिस्स. 2:13) [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 13 (IRVHI)
{यूसुफ को आशीर्वाद} [PS] फिर यूसुफ के विषय में उसने कहा; [QBR] “इसका देश यहोवा से आशीष पाए [QBR] अर्थात् आकाश के अनमोल पदार्थ और ओस, [QBR] और वह गहरा जल जो नीचे है, [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 14 (IRVHI)
और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फल, [QBR] और जो अनमोल पदार्थ मौसम के उगाए उगते हैं, [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 15 (IRVHI)
और प्राचीन पहाड़ों के उत्तम पदार्थ, [QBR] और सनातन पहाड़ियों के अनमोल पदार्थ, [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 16 (IRVHI)
और पृथ्वी और जो अनमोल पदार्थ उसमें भरें हैं, [QBR] और जो झाड़ी में रहता था उसकी प्रसन्नता। [QBR] इन सभी के विषय में यूसुफ के सिर पर, [QBR] अर्थात् उसी के सिर के चाँद पर जो अपने भाइयों से अलग हुआ था आशीष ही आशीष फले। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 17 (IRVHI)
वह प्रतापी है, मानो गाय का पहलौठा है, और उसके सींग जंगली बैल के से हैं; [QBR] उनसे वह देश-देश के लोगों को, वरन् पृथ्वी के छोर तक के सब मनुष्यों को ढकेलेगा; [QBR] वे एप्रैम के लाखों-लाख, और मनश्शे के हजारों-हजार हैं।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 18 (IRVHI)
{जबूलून और इस्साकार को आशीर्वाद} [PS] फिर जबूलून के विषय में उसने कहा, [QBR] “हे जबूलून, तू बाहर निकलते समय, [QBR] और हे इस्साकार, तू अपने डेरों में आनन्द करे। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 19 (IRVHI)
वे देश-देश के लोगों को पहाड़ पर बुलाएँगे; [QBR] वे वहाँ धर्मयज्ञ करेंगे; [QBR] क्योंकि वे समुद्र का धन, और रेत में छिपे हुए अनमोल पदार्थ से लाभ उठाएँगे।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 20 (IRVHI)
{गाद को आशीर्वाद} [PS] फिर गाद के विषय में उसने कहा, [QBR] “धन्य वह है जो गाद को बढ़ाता है! [QBR] गाद तो सिंहनी के समान रहता है, [QBR] और बाँह को, वरन् सिर के चाँद तक को फाड़ डालता है। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 21 (IRVHI)
और उसने पहला अंश तो अपने लिये चुन लिया, [QBR] क्योंकि वहाँ सरदार के योग्य भाग रखा हुआ था; [QBR] तब उसने प्रजा के मुख्य-मुख्य पुरुषों के संग आकर यहोवा का ठहराया हुआ धर्म, [QBR] और इस्राएल के साथ होकर उसके नियम का प्रतिपालन किया।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 22 (IRVHI)
{दान को आशीर्वाद} [PS] फिर दान के विषय में उसने कहा, [QBR] “दान तो बाशान से कूदनेवाला सिंह का बच्चा है।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 23 (IRVHI)
{नप्ताली को आशीर्वाद} [PS] फिर नप्ताली के विषय में उसने कहा, [QBR] “हे नप्ताली, तू जो यहोवा की प्रसन्नता से तृप्त, [QBR] और उसकी आशीष से भरपूर है, [QBR] तू पश्चिम और दक्षिण के देश का अधिकारी हो।” [PS]
व्यवस्थाविवरण 33 : 24 (IRVHI)
{आशेर को आशीर्वाद} [PS] फिर आशेर के विषय में उसने कहा, [QBR] “आशेर पुत्रों के विषय में आशीष पाए; [QBR] वह अपने भाइयों में प्रिय रहे, [QBR] और अपना पाँव तेल में डुबोए। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 25 (IRVHI)
तेरे जूते लोहे और पीतल के होंगे, [QBR] और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी शक्ति हो। मूसा द्वारा परमेश्‍वर की स्तुति [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 26 (IRVHI)
“हे यशूरून, परमेश्‍वर के तुल्य और कोई नहीं है, [QBR] वह तेरी सहायता करने को आकाश पर, [QBR] और अपना प्रताप दिखाता हुआ [QBR] आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 27 (IRVHI)
अनादि परमेश्‍वर तेरा गृहधाम है, [QBR] और नीचे सनातन भुजाएँ हैं। [QBR] वह शत्रुओं को तेरे सामने से निकाल देता, [QBR] और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 28 (IRVHI)
और इस्राएल निडर बसा रहता है, [QBR] अन्न और नये दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है; [QBR] और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ा करती है। [QBR]
व्यवस्थाविवरण 33 : 29 (IRVHI)
हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! [QBR] हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? [QBR] वह तो तेरी सहायता के लिये ढाल, और तेरे प्रताप के लिये तलवार है; [QBR] तेरे शत्रु तुझे सराहेंगे, [QBR] और तू उनके ऊँचे स्थानों को रौंदेगा।” [PE]

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