यिर्मयाह 12 : 1 (IRVHI)
{परमेश्‍वर से यिर्मयाह के प्रश्न } हे यहोवा, यदि मैं तुझसे मुकद्दमा लड़ूँ, तो भी तू धर्मी है; मुझे अपने साथ इस विषय पर वाद-विवाद करने दे। दुष्टों की चाल क्यों सफल होती है? क्या कारण है कि विश्वासघाती बहुत सुख से रहते हैं?
यिर्मयाह 12 : 2 (IRVHI)
तू उनको बोता और वे जड़ भी पकड़ते; वे बढ़ते और फलते भी हैं; तू उनके मुँह के निकट है परन्तु उनके मनों से दूर है।
यिर्मयाह 12 : 3 (IRVHI)
हे यहोवा तू मुझे जानता है; तू मुझे देखता है, और तूने मेरे मन की परीक्षा करके देखा कि मैं तेरी ओर किस प्रकार रहता हूँ। जैसे भेड़-बकरियाँ घात होने के लिये झुण्ड में से निकाली जाती हैं, वैसे ही उनको भी निकाल ले और वध के दिन के लिये तैयार कर। (भज. 17:3)
यिर्मयाह 12 : 4 (IRVHI)
कब तक देश विलाप करता रहेगा, और सारे मैदान की घास सूखी रहेगी*? देश के निवासियों की बुराई के कारण पशु-पक्षी सब नाश हो गए हैं, क्योंकि उन लोगों ने कहा, “वह हमारे अन्त को न देखेगा।”
यिर्मयाह 12 : 5 (IRVHI)
{परमेश्‍वर का उत्तर } “तू जो प्यादों ही के संग दौड़कर थक गया है तो घोड़ों के संग क्यों बराबरी कर सकेगा? और यद्यपि तू शान्ति के इस देश में निडर है, परन्तु यरदन के आस-पास के घने जंगल में तू क्या करेगा?
यिर्मयाह 12 : 6 (IRVHI)
क्योंकि तेरे भाई और तेरे घराने के लोगों ने भी तेरा विश्वासघात किया है; वे तेरे पीछे ललकारते हैं, यदि वे तुझसे मीठी बातें भी कहें, तो भी उन पर विश्वास न करना।”
यिर्मयाह 12 : 7 (IRVHI)
“मैंने अपना घर छोड़ दिया, अपना निज भाग मैंने त्याग दिया है; मैंने अपनी प्राणप्रिया को शत्रुओं के वश में कर दिया है।
यिर्मयाह 12 : 8 (IRVHI)
क्योंकि मेरा निज भाग मेरे देखने में वन के सिंह के समान हो गया और मेरे विरुद्ध गरजा है; इस कारण मैंने उससे बैर किया है।
यिर्मयाह 12 : 9 (IRVHI)
क्या मेरा निज भाग मेरी दृष्टि में चित्तीवाले शिकारी पक्षी के समान नहीं है? क्या शिकारी पक्षी चारों ओर से उसे घेरे हुए हैं? जाओ सब जंगली पशुओं को इकट्ठा करो; उनको लाओ कि खा जाएँ।
यिर्मयाह 12 : 10 (IRVHI)
बहुत से चरवाहों ने मेरी दाख की बारी को बिगाड़ दिया, उन्होंने मेरे भाग को लताड़ा, वरन् मेरे मनोहर भाग के खेत को सुनसान जंगल बना दिया है।
यिर्मयाह 12 : 11 (IRVHI)
उन्होंने उसको उजाड़ दिया; वह उजड़कर मेरे सामने विलाप कर रहा है। सारा देश उजड़ गया है*, तो भी कोई नहीं सोचता।
यिर्मयाह 12 : 12 (IRVHI)
जंगल के सब मुंडे टीलों पर नाश करनेवाले चढ़ आए हैं; क्योंकि यहोवा की तलवार देश के एक छोर से लेकर दूसरी छोर तक निगलती जाती है; किसी मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती।
यिर्मयाह 12 : 13 (IRVHI)
उन्होंने गेहूँ तो बोया, परन्तु कँटीली झाड़ियाँ काटे, उन्होंने कष्ट तो उठाया, परन्तु उससे कुछ लाभ न हुआ। यहोवा के क्रोध के भड़कने के कारण तुम अपने खेतों की उपज के विषय में लज्जित हो।”
यिर्मयाह 12 : 14 (IRVHI)
शत्रु राष्ट्रों को दण्ड मेरे दुष्ट पड़ोसी उस भाग पर हाथ लगाते हैं, जिसका भागी मैंने अपनी प्रजा इस्राएल को बनाया है। उनके विषय यहोवा यह कहता है: “मैं उनको उनकी भूमि में से उखाड़ डालूँगा, और यहूदा के घराने को भी उनके बीच में से उखाड़ूँगा।
यिर्मयाह 12 : 15 (IRVHI)
उन्हें उखाड़ने के बाद मैं फिर उन पर दया करूँगा, और उनमें से हर एक को उसके निज भाग और भूमि में फिर से लगाऊँगा। (व्य. 30:3)
यिर्मयाह 12 : 16 (IRVHI)
यदि वे मेरी प्रजा की चाल सीखकर मेरे ही नाम की सौगन्ध, यहोवा के जीवन की सौगन्ध, खाने लगें, जिस प्रकार से उन्होंने मेरी प्रजा को बाल की सौगन्ध खाना सिखाया था, तब मेरी प्रजा के बीच उनका भी वंश बढ़ेगा।
यिर्मयाह 12 : 17 (IRVHI)
परन्तु यदि वे न मानें, तो मैं उस जाति को ऐसा उखाड़ूँगा कि वह फिर कभी न पनपेगी, यहोवा की यही वाणी है।”

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