लूका 17 : 1 (IRVHI)
{चेतावनी} [PS] फिर उसने अपने चेलों से कहा, “यह निश्चित है कि वे बातें जो पाप का कारण है, आएँगे परन्तु हाय, उस मनुष्य पर जिसके कारण वे आती है!
लूका 17 : 2 (IRVHI)
जो इन छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिये यह भला होता कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह समुद्र में डाल दिया जाता।
लूका 17 : 3 (IRVHI)
सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे डाँट, और यदि पछताए तो उसे क्षमा कर।
लूका 17 : 4 (IRVHI)
यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे और सातों बार तेरे पास फिर आकर कहे, कि मैं पछताता हूँ, तो उसे क्षमा कर।” तुम्हारा विश्वास कितना बड़ा है? [PE][PS]
लूका 17 : 5 (IRVHI)
तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।”
लूका 17 : 6 (IRVHI)
प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता। [PS]
लूका 17 : 7 (IRVHI)
{उत्तम सेवक} [PS] “पर तुम में से ऐसा कौन है, जिसका दास हल जोतता, या भेड़ें चराता हो, और जब वह खेत से आए, तो उससे कहे, ‘तुरन्त आकर भोजन करने बैठ’?
लूका 17 : 8 (IRVHI)
क्या वह उनसे न कहेगा, कि मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊँ-पीऊँ तब तक कमर बाँधकर मेरी सेवा कर; इसके बाद तू भी खा पी लेना?
लूका 17 : 9 (IRVHI)
क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी?
लूका 17 : 10 (IRVHI)
इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है’।” [PS]
लूका 17 : 11 (IRVHI)
{एक कोढ़ी का आभार} [PS] और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था।
लूका 17 : 12 (IRVHI)
और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। (लैव्य. 13:46)
लूका 17 : 13 (IRVHI)
और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!”
लूका 17 : 14 (IRVHI)
उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ; और अपने आपको याजकों को दिखाओ*।” और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए। (लैव्य. 14:2-3)
लूका 17 : 15 (IRVHI)
तब उनमें से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूँ, ऊँचे शब्द से परमेश्‍वर की बड़ाई करता हुआ लौटा;
लूका 17 : 16 (IRVHI)
और यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरकर उसका धन्यवाद करने लगा; और वह सामरी* था।
लूका 17 : 17 (IRVHI)
इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं?
लूका 17 : 18 (IRVHI)
क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्‍वर की बड़ाई करता?”
लूका 17 : 19 (IRVHI)
तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” परमेश्‍वर के राज्य का प्रगट होना [PE][PS]
लूका 17 : 20 (IRVHI)
जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्‍वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता।
लूका 17 : 21 (IRVHI)
और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।”
लूका 17 : 22 (IRVHI)
और उसने चेलों से कहा, “वे दिन आएँगे, जिनमें तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे।
लूका 17 : 23 (IRVHI)
लोग तुम से कहेंगे, ‘देखो, वहाँ है!’ या ‘देखो यहाँ है!’ परन्तु तुम चले न जाना और न उनके पीछे हो लेना।
लूका 17 : 24 (IRVHI)
क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक छोर से कौंधकर आकाश की दूसरी छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा।
लूका 17 : 25 (IRVHI)
परन्तु पहले अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।
लूका 17 : 26 (IRVHI)
जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। (इब्रा. 4:7, मत्ती 24:37-39, उत्प. 6:5-12)
लूका 17 : 27 (IRVHI)
जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया।
लूका 17 : 28 (IRVHI)
और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे;
लूका 17 : 29 (IRVHI)
परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया। (2 पत. 2:6, यहू. 1:7, उत्प. 19:24)
लूका 17 : 30 (IRVHI)
मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा। [PE][PS]
लूका 17 : 31 (IRVHI)
“उस दिन जो छत पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे।
लूका 17 : 32 (IRVHI)
लूत की पत्‍नी को स्मरण रखो! (उत्प. 19:26, उत्प. 19:17)
लूका 17 : 33 (IRVHI)
जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, और जो कोई उसे खोए वह उसे बचाएगा।
लूका 17 : 34 (IRVHI)
मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा।
लूका 17 : 35 (IRVHI)
दो स्त्रियाँ एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी।
लूका 17 : 36 (IRVHI)
[दो जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा।]”
लूका 17 : 37 (IRVHI)
यह सुन उन्होंने उससे पूछा, “हे प्रभु यह कहाँ होगा?” उसने उनसे कहा, “जहाँ लाश हैं, वहाँ गिद्ध इकट्ठे होंगे।” (अय्यू. 39:30) [PE]

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