लूका 22 : 1 (IRVHI)
{यीशु की हत्या का षड़यंत्र} [PS] अख़मीरी रोटी का पर्व जो फसह कहलाता है, निकट था।
लूका 22 : 2 (IRVHI)
और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसको कैसे मार डालें, पर वे लोगों से डरते थे। [PS]
लूका 22 : 3 (IRVHI)
{यहूदा इस्करियोती का विश्वासघात} [PS] और शैतान यहूदा में समाया*, जो इस्करियोती कहलाता और बारह चेलों में गिना जाता था।
लूका 22 : 4 (IRVHI)
उसने जाकर प्रधान याजकों और पहरुओं के सरदारों के साथ बातचीत की, कि उसको किस प्रकार उनके हाथ पकड़वाए।
लूका 22 : 5 (IRVHI)
वे आनन्दित हुए, और उसे रुपये देने का वचन दिया।
लूका 22 : 6 (IRVHI)
उसने मान लिया, और अवसर ढूँढ़ने लगा, कि बिना उपद्रव के उसे उनके हाथ पकड़वा दे। [PS]
लूका 22 : 7 (IRVHI)
{फसह की तैयारी} [PS] तब अख़मीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्‍ना बलि करना अवश्य था। (निर्ग. 12:3,6,8,14)
लूका 22 : 8 (IRVHI)
और यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा, “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।”
लूका 22 : 9 (IRVHI)
उन्होंने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम तैयार करें?”
लूका 22 : 10 (IRVHI)
उसने उनसे कहा, “देखो, नगर में प्रवेश करते ही एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, जिस घर में वह जाए; तुम उसके पीछे चले जाना,
लूका 22 : 11 (IRVHI)
और उस घर के स्वामी से कहो, ‘गुरु तुझ से कहता है; कि वह पाहुनशाला कहाँ है जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ?’
लूका 22 : 12 (IRVHI)
वह तुम्हें एक सजी-सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा; वहाँ तैयारी करना।
लूका 22 : 13 (IRVHI)
उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया। [PS]
लूका 22 : 14 (IRVHI)
{प्रभु का अन्तिम भोज} [PS] जब घड़ी पहुँची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा।
लूका 22 : 15 (IRVHI)
और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी, कि दुःख-भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊँ।
लूका 22 : 16 (IRVHI)
क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक वह परमेश्‍वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊँगा।”
लूका 22 : 17 (IRVHI)
तब उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया और कहा, “इसको लो और आपस में बाँट लो।
लूका 22 : 18 (IRVHI)
क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक परमेश्‍वर का राज्य न आए तब तक मैं दाखरस अब से कभी न पीऊँगा।”
लूका 22 : 19 (IRVHI)
फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।”
लूका 22 : 20 (IRVHI)
इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है। (निर्ग. 24:8, 1 कुरि. 11:25, मत्ती 26:28, जक. 9:11)
लूका 22 : 21 (IRVHI)
पर देखो, मेरे पकड़वानेवाले का हाथ मेरे साथ मेज पर है। (भज. 41:9)
लूका 22 : 22 (IRVHI)
क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया, जाता ही है, पर हाय उस मनुष्य पर, जिसके द्वारा वह पकड़वाया जाता है!”
लूका 22 : 23 (IRVHI)
तब वे आपस में पूछ-ताछ करने लगे, “हम में से कौन है, जो यह काम करेगा?” कौन बड़ा समझा जाएगा? [PE][PS]
लूका 22 : 24 (IRVHI)
उनमें यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है?
लूका 22 : 25 (IRVHI)
उसने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं।
लूका 22 : 26 (IRVHI)
परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन् जो तुम में बड़ा है, वह छोटे के समान और जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने।
लूका 22 : 27 (IRVHI)
क्योंकि बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूँ। [PE][PS]
लूका 22 : 28 (IRVHI)
“परन्तु तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे;
लूका 22 : 29 (IRVHI)
और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूँ।
लूका 22 : 30 (IRVHI)
ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पीओ; वरन् सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो। [PS]
लूका 22 : 31 (IRVHI)
{पतरस के इन्कार की भविष्यद्वाणी} [PS] “शमौन, हे शमौन, शैतान ने तुम लोगों को माँग लिया है कि गेहूँ के समान फटके*।
लूका 22 : 32 (IRVHI)
परन्तु मैंने तेरे लिये विनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।”
लूका 22 : 33 (IRVHI)
उसने उससे कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन् मरने को भी तैयार हूँ।”
लूका 22 : 34 (IRVHI)
उसने कहा, “हे पतरस मैं तुझ से कहता हूँ, कि आज मुर्गा बाँग देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता।” [PS]
लूका 22 : 35 (IRVHI)
{यातना सहने को तैयार रहो} [PS] और उसने उनसे कहा, “जब मैंने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई थी?” उन्होंने कहा, “किसी वस्तु की नहीं।”
लूका 22 : 36 (IRVHI)
उसने उनसे कहा, “परन्तु अब जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी, और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले।
लूका 22 : 37 (IRVHI)
क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यह जो लिखा है, ‘वह अपराधी के साथ गिना गया,’ उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होने पर हैं।” (गला. 3:13, 2 कुरि. 5:21, यशा. 53:12) [PE][PS]
लूका 22 : 38 (IRVHI)
उन्होंने कहा, “हे प्रभु, देख, यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने उनसे कहा, “बहुत हैं।” [PS]
लूका 22 : 39 (IRVHI)
{जैतून के पहाड़ पर यीशु की प्रार्थना} [PS] तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए।
लूका 22 : 40 (IRVHI)
उस जगह पहुँचकर उसने उनसे कहा, “प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।”
लूका 22 : 41 (IRVHI)
और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने की दूरी भर गया, और घुटने टेककर प्रार्थना करने लगा।
लूका 22 : 42 (IRVHI)
“हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, फिर भी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।”
लूका 22 : 43 (IRVHI)
तब स्वर्ग से एक दूत उसको दिखाई दिया जो उसे सामर्थ्य देता था*।
लूका 22 : 44 (IRVHI)
और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी-बड़ी बूँदों के समान भूमि पर गिर रहा था।
लूका 22 : 45 (IRVHI)
तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया।
लूका 22 : 46 (IRVHI)
और उनसे कहा, “क्यों सोते हो? उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो।” [PS]
लूका 22 : 47 (IRVHI)
{यीशु को बन्दी बनाना} [PS] वह यह कह ही रहा था, कि देखो एक भीड़ आई, और उन बारहों में से एक जिसका नाम यहूदा था उनके आगे-आगे आ रहा था, वह यीशु के पास आया, कि उसे चूम ले।
लूका 22 : 48 (IRVHI)
यीशु ने उससे कहा, “हे यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है?”
लूका 22 : 49 (IRVHI)
उसके साथियों ने जब देखा कि क्या होनेवाला है, तो कहा, “हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?”
लूका 22 : 50 (IRVHI)
और उनमें से एक ने महायाजक के दास पर तलवार चलाकर उसका दाहिना कान काट दिया।
लूका 22 : 51 (IRVHI)
इस पर यीशु ने कहा, “अब बस करो।” और उसका कान छूकर उसे अच्छा किया।
लूका 22 : 52 (IRVHI)
तब यीशु ने प्रधान याजकों और मन्दिर के पहरुओं के सरदारों और प्राचीनों से, जो उस पर चढ़ आए थे, कहा, “क्या तुम मुझे डाकू जानकर तलवारें और लाठियाँ लिए हुए निकले हो?
लूका 22 : 53 (IRVHI)
जब मैं मन्दिर में हर दिन तुम्हारे साथ था, तो तुम ने मुझ पर हाथ न डाला; पर यह तुम्हारी घड़ी है, और अंधकार का अधिकार है।” [PS]
लूका 22 : 54 (IRVHI)
{पतरस का इन्कार} [PS] फिर वे उसे पकड़कर ले चले, और महायाजक के घर में लाए और पतरस दूर ही दूर उसके पीछे-पीछे चलता था।
लूका 22 : 55 (IRVHI)
और जब वे आँगन में आग सुलगाकर इकट्ठे बैठे, तो पतरस भी उनके बीच में बैठ गया।
लूका 22 : 56 (IRVHI)
और एक दासी उसे आग के उजियाले में बैठे देखकर और उसकी ओर ताक कर कहने लगी, “यह भी तो उसके साथ था।”
लूका 22 : 57 (IRVHI)
परन्तु उसने यह कहकर इन्कार किया, “हे नारी, मैं उसे नहीं जानता।”
लूका 22 : 58 (IRVHI)
थोड़ी देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा, “तू भी तो उन्हीं में से है।” पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं हूँ।”
लूका 22 : 59 (IRVHI)
कोई घंटे भर के बाद एक और मनुष्य दृढ़ता से कहने लगा, “निश्चय यह भी तो उसके साथ था; क्योंकि यह गलीली है।”
लूका 22 : 60 (IRVHI)
पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तू क्या कहता है?” वह कह ही रहा था कि तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी।
लूका 22 : 61 (IRVHI)
तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा, और पतरस को प्रभु की वह बात याद आई जो उसने कही थी, “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”
लूका 22 : 62 (IRVHI)
और वह बाहर निकलकर फूट-फूट कर रोने लगा। [PS]
लूका 22 : 63 (IRVHI)
{यीशु का उपहास} [PS] जो मनुष्य यीशु को पकड़े हुए थे, वे उसका उपहास करके पीटने लगे;
लूका 22 : 64 (IRVHI)
और उसकी आँखें ढाँपकर उससे पूछा, “भविष्यद्वाणी करके बता कि तुझे किसने मारा।”
लूका 22 : 65 (IRVHI)
और उन्होंने बहुत सी और भी निन्दा की बातें उसके विरोध में कहीं। [PS]
लूका 22 : 66 (IRVHI)
{पुरनिए और महासभा के सामने यीशु} [PS] जब दिन हुआ तो लोगों के पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री इकट्ठे हुए, और उसे अपनी महासभा में लाकर पूछा,
लूका 22 : 67 (IRVHI)
“यदि तू मसीह है, तो हम से कह दे!” उसने उनसे कहा, “यदि मैं तुम से कहूँ तो विश्वास न करोगे।
लूका 22 : 68 (IRVHI)
और यदि पूछूँ, तो उत्तर न दोगे।
लूका 22 : 69 (IRVHI)
परन्तु अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की दाहिनी ओर बैठा रहेगा।” (मर. 14:62, भज. 110:1)
लूका 22 : 70 (IRVHI)
इस पर सब ने कहा, “तो क्या तू परमेश्‍वर का पुत्र है?” उसने उनसे कहा, “तुम आप ही कहते हो, क्योंकि मैं हूँ।”
लूका 22 : 71 (IRVHI)
तब उन्होंने कहा, “अब हमें गवाही की क्या आवश्यकता है; क्योंकि हमने आप ही उसके मुँह से सुन लिया है।” [PE]

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