लूका 6 : 1 (IRVHI)
{यीशु सब्त का प्रभु} [PS] फिर सब्त के दिन वह खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेले बालें तोड़-तोड़कर, और हाथों से मल-मल कर* खाते जाते थे। (व्य. 23:25)
लूका 6 : 2 (IRVHI)
तब फरीसियों में से कुछ कहने लगे, “तुम वह काम क्यों करते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं?”
लूका 6 : 3 (IRVHI)
यीशु ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके साथी भूखे थे तो क्या किया?
लूका 6 : 4 (IRVHI)
वह कैसे परमेश्‍वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकों को छोड़ और किसी को उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दी?” (लैव्य. 24:5-9, 1 शमू. 21:6)
लूका 6 : 5 (IRVHI)
और उसने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।” [PS]
लूका 6 : 6 (IRVHI)
{सब्त के दिन रोगी का अच्छा किया जाना} [PS] और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दाहिना हाथ सूखा था।
लूका 6 : 7 (IRVHI)
शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिये उसकी ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं।
लूका 6 : 8 (IRVHI)
परन्तु वह उनके विचार जानता था; इसलिए उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “उठ, बीच में खड़ा हो।” वह उठ खड़ा हुआ।
लूका 6 : 9 (IRVHI)
यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से यह पूछता हूँ कि सब्त के दिन क्या उचित है, भला करना या बुरा करना; प्राण को बचाना या नाश करना?”
लूका 6 : 10 (IRVHI)
और उसने चारों ओर उन सभी को देखकर उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने ऐसा ही किया, और उसका हाथ फिर चंगा हो गया।
लूका 6 : 11 (IRVHI)
परन्तु वे आपे से बाहर होकर आपस में विवाद करने लगे कि हम यीशु के साथ क्या करें? [PS]
लूका 6 : 12 (IRVHI)
{बारह प्रेरित} [PS] और उन दिनों में वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को निकला, और परमेश्‍वर से प्रार्थना करने में सारी रात बिताई।
लूका 6 : 13 (IRVHI)
जब दिन हुआ, तो उसने अपने चेलों को बुलाकर उनमें से बारह चुन लिए, और उनको प्रेरित कहा।
लूका 6 : 14 (IRVHI)
और वे ये हैं: शमौन जिसका नाम उसने पतरस भी रखा; और उसका भाई अन्द्रियास, और याकूब, और यूहन्ना, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै,
लूका 6 : 15 (IRVHI)
और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब, और शमौन जो जेलोतेस कहलाता है,
लूका 6 : 16 (IRVHI)
और याकूब का बेटा यहूदा, और यहूदा इस्करियोती, जो उसका पकड़वानेवाला बना। [PS]
लूका 6 : 17 (IRVHI)
{यीशु का लोगों को उपदेश देना और चंगा करना} [PS] तब वह उनके साथ उतरकर चौरस जगह में खड़ा हुआ, और उसके चेलों की बड़ी भीड़, और सारे यहूदिया, और यरूशलेम, और सोर और सीदोन के समुद्र के किनारे से बहुत लोग,
लूका 6 : 18 (IRVHI)
जो उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से चंगा होने के लिये उसके पास आए थे, वहाँ थे। और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुए लोग भी अच्छे किए जाते थे।
लूका 6 : 19 (IRVHI)
और सब उसे छूना चाहते थे, क्योंकि उसमें से सामर्थ्य निकलकर सब को चंगा करती थी। [PS]
लूका 6 : 20 (IRVHI)
{आशीष के वचन} [PS] तब उसने अपने चेलों की ओर देखकर कहा, [QBR] “धन्य हो तुम, जो दीन हो, [QBR] क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारा है। [QBR]
लूका 6 : 21 (IRVHI)
“धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो; [QBR] क्योंकि तृप्त किए जाओगे। [QBR] “धन्य हो तुम, जो अब रोते हो, [QBR] क्योंकि हँसोगे। (मत्ती 5:4,5, भज. 126:5-6) [QBR]
लूका 6 : 22 (IRVHI)
“धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के [QBR] कारण लोग तुम से बैर करेंगे, [QBR] और तुम्हें निकाल देंगे, और तुम्हारी निन्दा करेंगे, [QBR] और तुम्हारा नाम बुरा जानकर काट देंगे। [PE][PS]
लूका 6 : 23 (IRVHI)
“उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। उनके पूर्वज भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी वैसा ही किया करते थे।
लूका 6 : 24 (IRVHI)
{शोक वचन} [PS] “परन्तु हाय तुम पर जो धनवान हो, [QBR] क्योंकि तुम अपनी शान्ति पा चुके। [QBR]
लूका 6 : 25 (IRVHI)
“हाय तुम पर जो अब तृप्त हो, [QBR] क्योंकि भूखे होंगे। [QBR] “हाय, तुम पर; जो अब हँसते हो, [QBR] क्योंकि शोक करोगे और रोओगे। [QBR]
लूका 6 : 26 (IRVHI)
“हाय, तुम पर जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें, [QBR] क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही किया करते थे। [PS]
लूका 6 : 27 (IRVHI)
{शत्रु से भी प्रेम करना} [PS] “परन्तु मैं तुम सुननेवालों से कहता हूँ, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उनका भला करो*।
लूका 6 : 28 (IRVHI)
जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिये प्रार्थना करो।
लूका 6 : 29 (IRVHI)
जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उसको कुर्ता लेने से भी न रोक।
लूका 6 : 30 (IRVHI)
जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उससे न माँग।
लूका 6 : 31 (IRVHI)
और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो। [PE][PS]
लूका 6 : 32 (IRVHI)
“यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखते हैं।
लूका 6 : 33 (IRVHI)
और यदि तुम अपने भलाई करनेवालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं।
लूका 6 : 34 (IRVHI)
और यदि तुम उसे उधार दो, जिनसे फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएँ।
लूका 6 : 35 (IRVHI)
वरन् अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। (लैव्य. 25:35-36, मत्ती 5:44-45)
लूका 6 : 36 (IRVHI)
जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो। [PS]
लूका 6 : 37 (IRVHI)
{दोष मत लगाओ} [PS] “दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा।
लूका 6 : 38 (IRVHI)
दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा-दबाकर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।” [PE][PS]
लूका 6 : 39 (IRVHI)
फिर उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा: “क्या अंधा, अंधे को मार्ग बता सकता है? क्या दोनों गड्ढे में नहीं गिरेंगे?
लूका 6 : 40 (IRVHI)
चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं, परन्तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपने गुरु के समान होगा।
लूका 6 : 41 (IRVHI)
तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?
लूका 6 : 42 (IRVHI)
और जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ?’ हे कपटी*, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, भली भाँति देखकर निकाल सकेगा। [PS]
लूका 6 : 43 (IRVHI)
{पेड़ की फल से पहचान} [PS] “कोई अच्छा पेड़ नहीं, जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है, जो अच्छा फल लाए।
लूका 6 : 44 (IRVHI)
हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है; क्योंकि लोग झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते, और न झड़बेरी से अंगूर।
लूका 6 : 45 (IRVHI)
भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है। [PS]
लूका 6 : 46 (IRVHI)
{घर बनानेवाले दो प्रकार के मनुष्य} [PS] “जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ कहते हो? (मला. 1:6)
लूका 6 : 47 (IRVHI)
जो कोई मेरे पास आता है, और मेरी बातें सुनकर उन्हें मानता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वह किसके समान है?
लूका 6 : 48 (IRVHI)
वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान में नींव डाली, और जब बाढ़ आई तो धारा उस घर पर लगी, परन्तु उसे हिला न सकी; क्योंकि वह पक्का बना था।
लूका 6 : 49 (IRVHI)
परन्तु जो सुनकर नहीं मानता, वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने मिट्टी पर बिना नींव का घर बनाया। जब उस पर धारा लगी, तो वह तुरन्त गिर पड़ा, और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।” [PE]

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