लूका 7 : 1 (IRVHI)
{सूबेदार के विश्वास पर यीशु का अचम्भा होना} [PS] जब वह लोगों को अपनी सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया।
लूका 7 : 2 (IRVHI)
और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय था, बीमारी से मरने पर था।
लूका 7 : 3 (IRVHI)
उसने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियों के कई प्राचीनों को उससे यह विनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर।
लूका 7 : 4 (IRVHI)
वे यीशु के पास आकर उससे बड़ी विनती करके कहने लगे, “वह इस योग्य है, कि तू उसके लिये यह करे,
लूका 7 : 5 (IRVHI)
क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है।”
लूका 7 : 6 (IRVHI)
यीशु उनके साथ-साथ चला, पर जब वह घर से दूर न था, तो सूबेदार ने उसके पास कई मित्रों के द्वारा कहला भेजा, “हे प्रभु दुःख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए।
लूका 7 : 7 (IRVHI)
इसी कारण मैंने अपने आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊँ, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा।
लूका 7 : 8 (IRVHI)
मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ; और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूँ, ‘जा,’ तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूँ कि ‘आ,’ तो आता है; और अपने किसी दास को कि ‘यह कर,’ तो वह उसे करता है।”
लूका 7 : 9 (IRVHI)
यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उसने मुँह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।”
लूका 7 : 10 (IRVHI)
और भेजे हुए लोगों ने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया। {मृतक को जीवन-दान} [PS]
लूका 7 : 11 (IRVHI)
थोड़े दिन के बाद वह नाईन* नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी।
लूका 7 : 12 (IRVHI)
जब वह नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो, लोग एक मुर्दे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी माँ का एकलौता पुत्र था, और वह विधवा थी: और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे।
लूका 7 : 13 (IRVHI)
उसे देखकर प्रभु को तरस आया, और उसने कहा, “मत रो।”
लूका 7 : 14 (IRVHI)
तब उसने पास आकर अर्थी को छुआ; और उठानेवाले ठहर गए, तब उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!”
लूका 7 : 15 (IRVHI)
तब वह मुर्दा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया।
लूका 7 : 16 (IRVHI)
इससे सब पर भय छा गया*; और वे परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्‍वर ने अपने लोगों पर कृपादृष्‍टि की है।”
लूका 7 : 17 (IRVHI)
और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस-पास के सारे देश में फैल गई।। [PS]
लूका 7 : 18 (IRVHI)
{यूहन्ना का प्रश्न} [PS] और यूहन्ना को उसके चेलों ने इन सब बातों का समाचार दिया।
लूका 7 : 19 (IRVHI)
तब यूहन्ना ने अपने चेलों में से दो को बुलाकर प्रभु के पास यह पूछने के लिये भेजा, “क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और दूसरे की प्रतीक्षा करे?”
लूका 7 : 20 (IRVHI)
उन्होंने उसके पास आकर कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने को भेजा है, कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करे?”
लूका 7 : 21 (IRVHI)
उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और पीड़ाओं, और दुष्टात्माओं से छुड़ाया; और बहुत से अंधों को आँखें दी।
लूका 7 : 22 (IRVHI)
और उसने उनसे कहा, “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जाकर यूहन्ना से कह दो; कि अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते-फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं, बहरे सुनते है, और मुर्दे जिलाए जाते है, और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है। (यशा. 35:5-6, यशा. 61:1)
लूका 7 : 23 (IRVHI)
धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।” [PE][PS]
लूका 7 : 24 (IRVHI)
जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को?
लूका 7 : 25 (IRVHI)
तो तुम फिर क्या देखने गए थे? क्या कोमल वस्त्र पहने हुए मनुष्य को? देखो, जो भड़कीला वस्त्र पहनते, और सुख-विलास से रहते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं।
लूका 7 : 26 (IRVHI)
तो फिर क्या देखने गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को।
लूका 7 : 27 (IRVHI)
यह वही है, जिसके विषय में लिखा है: [QBR] ‘देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे-आगे भेजता हूँ, जो तेरे आगे मार्ग सीधा करेगा।’ (मला. 3:1, यशा. 40:3) [PE][PS]
लूका 7 : 28 (IRVHI)
मैं तुम से कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं पर जो परमेश्‍वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उससे भी बड़ा है।”
लूका 7 : 29 (IRVHI)
और सब साधारण लोगों ने सुनकर और चुंगी लेनेवालों ने भी यूहन्ना का बपतिस्मा लेकर परमेश्‍वर को सच्चा मान लिया।
लूका 7 : 30 (IRVHI)
पर फरीसियों और व्यवस्थापकों ने उससे बपतिस्मा न लेकर परमेश्‍वर की मनसा को अपने विषय में टाल दिया। [PE][PS]
लूका 7 : 31 (IRVHI)
“अतः मैं इस युग के लोगों की उपमा किस से दूँ कि वे किस के समान हैं?
लूका 7 : 32 (IRVHI)
वे उन बालकों के समान हैं जो बाजार में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं, ‘हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे, हमने विलाप किया, और तुम न रोए!’
लूका 7 : 33 (IRVHI)
क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उसमें दुष्टात्मा है।
लूका 7 : 34 (IRVHI)
मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, ‘देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र।’
लूका 7 : 35 (IRVHI)
पर ज्ञान अपनी सब सन्तानों से सच्चा ठहराया गया है।” [PS]
लूका 7 : 36 (IRVHI)
{शमौन फरीसी के घर पापिन स्त्री को क्षमादान} [PS] फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; अतः वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा।
लूका 7 : 37 (IRVHI)
वहाँ उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई।
लूका 7 : 38 (IRVHI)
और उसके पाँवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पाँवों को आँसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पाँव बार-बार चूमकर उन पर इत्र मला।
लूका 7 : 39 (IRVHI)
यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिन है।”
लूका 7 : 40 (IRVHI)
यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा, “हे शमौन, मुझे तुझ से कुछ कहना है।” वह बोला, “हे गुरु, कह।”
लूका 7 : 41 (IRVHI)
“किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पाँच सौ, और दूसरा पचास दीनार देनदार था।
लूका 7 : 42 (IRVHI)
जब कि उनके पास वापस लौटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया। अतः उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा?”
लूका 7 : 43 (IRVHI)
शमौन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में वह, जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।” उसने उससे कहा, “तूने ठीक विचार किया है।”
लूका 7 : 44 (IRVHI)
और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा, “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी न दिया, पर इसने मेरे पाँव आँसुओं से भिगाए, और अपने बालों से पोंछा।” (उत्प. 18:4)
लूका 7 : 45 (IRVHI)
तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पाँवों का चूमना न छोड़ा।
लूका 7 : 46 (IRVHI)
तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला*; पर इसने मेरे पाँवों पर इत्र मला है। (भज. 23:5)
लूका 7 : 47 (IRVHI)
“इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ; कि इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिसका थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।”
लूका 7 : 48 (IRVHI)
और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।”
लूका 7 : 49 (IRVHI)
तब जो लोग उसके साथ भोजन करने बैठे थे, वे अपने-अपने मन में सोचने लगे, “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?”
लूका 7 : 50 (IRVHI)
पर उसने स्त्री से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चली जा।” [PE]

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