मरकुस 5 : 1 (IRVHI)
{दुष्टात्माग्रस्त व्यक्ति को चंगा करना} [PS] वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुँचे,
मरकुस 5 : 2 (IRVHI)
और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी, कब्रों से निकलकर उसे मिला।
मरकुस 5 : 3 (IRVHI)
वह कब्रों में रहा करता था और कोई उसे जंजीरों से भी न बाँध सकता था,
मरकुस 5 : 4 (IRVHI)
क्योंकि वह बार-बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, पर उसने जंजीरों को तोड़ दिया, और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था।
मरकुस 5 : 5 (IRVHI)
वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
मरकुस 5 : 6 (IRVHI)
वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया।
मरकुस 5 : 7 (IRVHI)
और ऊँचे शब्द से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्‍वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्‍वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।” (मत्ती 8:29, 1 राजा. 17:18)
मरकुस 5 : 8 (IRVHI)
क्योंकि उसने उससे कहा था, “हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।”
मरकुस 5 : 9 (IRVHI)
यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने उससे कहा, “मेरा नाम सेना है*; क्योंकि हम बहुत हैं।”
मरकुस 5 : 10 (IRVHI)
और उसने उससे बहुत विनती की, “हमें इस देश से बाहर न भेज।”
मरकुस 5 : 11 (IRVHI)
वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था।
मरकुस 5 : 12 (IRVHI)
और उन्होंने उससे विनती करके कहा, “हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उनके भीतर जाएँ।”
मरकुस 5 : 13 (IRVHI)
अतः उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर घुस गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
मरकुस 5 : 14 (IRVHI)
और उनके चरवाहों ने भागकर नगर और गाँवों में समाचार सुनाया, और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए।
मरकुस 5 : 15 (IRVHI)
यीशु के पास आकर, वे उसको जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थी, कपड़े पहने और सचेत बैठे देखकर, डर गए।
मरकुस 5 : 16 (IRVHI)
और देखनेवालों ने उसका जिसमें दुष्टात्माएँ थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उनको कह सुनाया।
मरकुस 5 : 17 (IRVHI)
और वे उससे विनती कर के कहने लगे, कि हमारी सीमा से चला जा।
मरकुस 5 : 18 (IRVHI)
और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिसमें पहले दुष्टात्माएँ थीं, उससे विनती करने लगा, “मुझे अपने साथ रहने दे।”
मरकुस 5 : 19 (IRVHI)
परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उससे कहा, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।”
मरकुस 5 : 20 (IRVHI)
वह जाकर दिकापुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे। [PS]
मरकुस 5 : 21 (IRVHI)
{याईर की मृत पुत्री और एक रोगी स्त्री} [PS] जब यीशु फिर नाव से पार गया, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई; और वह झील के किनारे था।
मरकुस 5 : 22 (IRVHI)
और याईर नामक आराधनालय के सरदारों* में से एक आया, और उसे देखकर, उसके पाँवों पर गिरा।
मरकुस 5 : 23 (IRVHI)
और उसने यह कहकर बहुत विनती की, “मेरी छोटी बेटी मरने पर है: तू आकर उस पर हाथ रख, कि वह चंगी होकर जीवित रहे।”
मरकुस 5 : 24 (IRVHI)
तब वह उसके साथ चला; और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, यहाँ तक कि लोग उस पर गिरे पड़ते थे।
मरकुस 5 : 25 (IRVHI)
और एक स्त्री, जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था।
मरकुस 5 : 26 (IRVHI)
और जिस ने बहुत वैद्यों से बड़ा दुःख उठाया और अपना सब माल व्यय करने पर भी कुछ लाभ न उठाया था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी।
मरकुस 5 : 27 (IRVHI)
यीशु की चर्चा सुनकर, भीड़ में उसके पीछे से आई, और उसके वस्त्र को छू लिया,
मरकुस 5 : 28 (IRVHI)
क्योंकि वह कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।”
मरकुस 5 : 29 (IRVHI)
और तुरन्त उसका लहू बहना बन्द हो गया; और उसने अपनी देह में जान लिया, कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई हूँ।
मरकुस 5 : 30 (IRVHI)
यीशु ने तुरन्त अपने में जान लिया, कि मुझसे सामर्थ्य निकली है*, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा, “मेरा वस्त्र किसने छुआ?”
मरकुस 5 : 31 (IRVHI)
उसके चेलों ने उससे कहा, “तू देखता है, कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है; कि किसने मुझे छुआ?”
मरकुस 5 : 32 (IRVHI)
तब उसने उसे देखने के लिये जिस ने यह काम किया था, चारों ओर दृष्टि की।
मरकुस 5 : 33 (IRVHI)
तब वह स्त्री यह जानकर, कि उसके साथ क्‍या हुआ है, डरती और काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर, उससे सब हाल सच-सच कह दिया।
मरकुस 5 : 34 (IRVHI)
उसने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।” (लूका 8:48)
मरकुस 5 : 35 (IRVHI)
वह यह कह ही रहा था, कि आराधनालय के सरदार के घर से लोगों ने आकर कहा, “तेरी बेटी तो मर गई; अब गुरु को क्यों दुःख देता है?”
मरकुस 5 : 36 (IRVHI)
जो बात वे कह रहे थे, उसको यीशु ने अनसुनी करके, आराधनालय के सरदार से कहा, “मत डर; केवल विश्वास रख।”
मरकुस 5 : 37 (IRVHI)
और उसने पतरस और याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को छोड़, और किसी को अपने साथ आने न दिया।
मरकुस 5 : 38 (IRVHI)
और आराधनालय के सरदार के घर में पहुँचकर, उसने लोगों को बहुत रोते और चिल्लाते देखा।
मरकुस 5 : 39 (IRVHI)
तब उसने भीतर जाकर उनसे कहा, “तुम क्यों हल्ला मचाते और रोते हो? लड़की मरी नहीं, परन्तु सो रही है।”
मरकुस 5 : 40 (IRVHI)
वे उसकी हँसी करने लगे, परन्तु उसने सब को निकालकर लड़की के माता-पिता और अपने साथियों को लेकर, भीतर जहाँ लड़की पड़ी थी, गया।
मरकुस 5 : 41 (IRVHI)
और लड़की का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तलीता कूमी*”; जिसका अर्थ यह है “हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ।”
मरकुस 5 : 42 (IRVHI)
और लड़की तुरन्त उठकर चलने फिरने लगी; क्योंकि वह बारह वर्ष की थी। और इस पर लोग बहुत चकित हो गए।
मरकुस 5 : 43 (IRVHI)
फिर उसने उन्हें चेतावनी के साथ आज्ञा दी कि यह बात कोई जानने न पाए और कहा; “इसे कुछ खाने को दो।” [PE]

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43

BG:

Opacity:

Color:


Size:


Font: