नीतिवचन 3 : 1 (IRVHI)
युवाओं के लिए मार्गदर्शन हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना;
नीतिवचन 3 : 2 (IRVHI)
क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा।
नीतिवचन 3 : 3 (IRVHI)
कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएँ; वरन् उनको अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना। (2 कुरिन्थियों. 3:3)
नीतिवचन 3 : 4 (IRVHI)
तब तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति प्रतिष्ठित होगा। (लूका 2:52, रोम. 12:17, 2 कुरिन्थियों. 8:21)
नीतिवचन 3 : 5 (IRVHI)
तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना*।
नीतिवचन 3 : 6 (IRVHI)
उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
नीतिवचन 3 : 7 (IRVHI)
अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। (रोम. 12:16)
नीतिवचन 3 : 8 (IRVHI)
ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियाँ पुष्ट रहेंगी।
नीतिवचन 3 : 9 (IRVHI)
अपनी सम्पत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की सारी पहली उपज देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना;
नीतिवचन 3 : 10 (IRVHI)
इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमण्डता रहेगा।
नीतिवचन 3 : 11 (IRVHI)
हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुँह न मोड़ना, और जब वह तुझे डाँटे, तब तू बुरा न मानना,
नीतिवचन 3 : 12 (IRVHI)
जैसे पिता अपने प्रिय पुत्र को डाँटता है, वैसे ही यहोवा जिससे प्रेम रखता है उसको डाँटता है। (इफिसियों. 6:4, इब्रानियों. 12:5-7)
नीतिवचन 3 : 13 (IRVHI)
क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे,
नीतिवचन 3 : 14 (IRVHI)
जो उपलब्धि बुद्धि से प्राप्त होती है, वह चाँदी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ शुद्ध सोने के लाभ से भी उत्तम है।
नीतिवचन 3 : 15 (IRVHI)
वह बहुमूल्य रत्नों से अधिक मूल्यवान है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उनमें से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।
नीतिवचन 3 : 16 (IRVHI)
उसके दाहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं।
नीतिवचन 3 : 17 (IRVHI)
उसके मार्ग आनन्ददायक हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं।
नीतिवचन 3 : 18 (IRVHI)
जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।
नीतिवचन 3 : 19 (IRVHI)
यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली; और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया।
नीतिवचन 3 : 20 (IRVHI)
उसी के ज्ञान के द्वारा गहरे सागर फूट निकले, और आकाशमण्डल से ओस टपकती है।
नीतिवचन 3 : 21 (IRVHI)
हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाए; तू खरी बुद्धि और विवेक* की रक्षा कर,
नीतिवचन 3 : 22 (IRVHI)
तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा, और ये तेरे गले का हार बनेंगे।
नीतिवचन 3 : 23 (IRVHI)
तब तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा, और तेरे पाँव में ठेस न लगेगी।
नीतिवचन 3 : 24 (IRVHI)
जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी।
नीतिवचन 3 : 25 (IRVHI)
अचानक आनेवाले भय से न डरना, और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े, तब न घबराना;
नीतिवचन 3 : 26 (IRVHI)
क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा, और तेरे पाँव को फंदे में फँसने न देगा।
नीतिवचन 3 : 27 (IRVHI)
जो भलाई के योग्य है उनका भला अवश्य करना, यदि ऐसा करना तेरी शक्ति में है।
नीतिवचन 3 : 28 (IRVHI)
यदि तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूँगा। (2 कुरिन्थियों. 8:12)
नीतिवचन 3 : 29 (IRVHI)
जब तेरा पड़ोसी तेरे पास निश्चिन्त रहता है, तब उसके विरुद्ध बुरी युक्ति न बाँधना।
नीतिवचन 3 : 30 (IRVHI)
जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो, उससे अकारण मुकद्दमा खड़ा न करना।
नीतिवचन 3 : 31 (IRVHI)
उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना, न उसकी सी चाल चलना;
नीतिवचन 3 : 32 (IRVHI)
क्योंकि यहोवा कुटिल मनुष्य से घृणा करता है, परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर प्रकट करता है।
नीतिवचन 3 : 33 (IRVHI)
दुष्ट के घर पर यहोवा का श्राप और धर्मियों के वासस्थान पर उसकी आशीष होती है।
नीतिवचन 3 : 34 (IRVHI)
ठट्ठा करनेवालों का वह निश्चय ठट्ठा करता है; परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है। (याकूब. 4:6, 1 पतरस. 5:5)
नीतिवचन 3 : 35 (IRVHI)
बुद्धिमान महिमा को पाएँगे, परन्तु मूर्खों की बढ़ती अपमान ही की होगी।
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