भजन संहिता 11 : 1 (IRVHI)
{परमेश्‍वर पर भरोसा } प्रधान बजानेवाले के लिये दाऊद का भजन मैं यहोवा में शरण लेता हूँ; तुम क्यों मेरे प्राण से कहते हो ''पक्षी के समान अपने पहाड़ पर उड़ जा''*;
भजन संहिता 11 : 2 (IRVHI)
क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, और अपने तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मनवालों पर अंधियारे में तीर चलाएँ।
भजन संहिता 11 : 3 (IRVHI)
यदि नींवें ढा दी जाएँ* तो धर्मी क्या कर सकता है?
भजन संहिता 11 : 4 (IRVHI)
यहोवा अपने पवित्र भवन में है; यहोवा का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आँखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जाँचती हैं।
भजन संहिता 11 : 5 (IRVHI)
यहोवा धर्मी और दुष्ट दोनों को परखता है, परन्तु जो उपद्रव से प्रीति रखते हैं उनसे वह घृणा करता है।
भजन संहिता 11 : 6 (IRVHI)
वह दुष्टों पर आग और गन्धक बरसाएगा; और प्रचण्ड लूह उनके कटोरों में बाँट दी जाएँगी।
भजन संहिता 11 : 7 (IRVHI)
क्योंकि यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामों से प्रसन्‍न रहता है; धर्मीजन उसका दर्शन पाएँगे।

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