भजन संहिता 36 : 1 (IRVHI)
दुष्ट जन का अपराध उसके हृदय के भीतर कहता है; [QBR] परमेश्‍वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। (रोम. 3:18) [QBR]
भजन संहिता 36 : 2 (IRVHI)
वह अपने अधर्म के प्रगट होने [QBR] और घृणित ठहरने के विषय [QBR] अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। [QBR]
भजन संहिता 36 : 3 (IRVHI)
उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; [QBR] उसने बुद्धि और भलाई के काम करने से [QBR] हाथ उठाया है। [QBR]
भजन संहिता 36 : 4 (IRVHI)
वह अपने बिछौने पर पड़े-पड़े [QBR] अनर्थ की कल्पना करता है*; [QBR] वह अपने कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; [QBR] बुराई से वह हाथ नहीं उठाता। [QBR]
भजन संहिता 36 : 5 (IRVHI)
हे यहोवा, तेरी करुणा स्वर्ग में है, [QBR] तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुँची है। [QBR]
भजन संहिता 36 : 6 (IRVHI)
तेरा धर्म ऊँचे पर्वतों के समान है, [QBR] तेरा न्याय अथाह सागर के समान हैं; [QBR] हे यहोवा, तू मनुष्य और पशु दोनों की [QBR] रक्षा करता है। [QBR]
भजन संहिता 36 : 7 (IRVHI)
हे परमेश्‍वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है! [QBR] मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं। [QBR]
भजन संहिता 36 : 8 (IRVHI)
वे तेरे भवन के भोजन की [QBR] बहुतायत से तृप्त होंगे, [QBR] और तू अपनी सुख की नदी [QBR] में से उन्हें पिलाएगा। [QBR]
भजन संहिता 36 : 9 (IRVHI)
क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है*; [QBR] तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएँगे। (यहू. 4:10, 14, प्रका. 21:6) [QBR]
भजन संहिता 36 : 10 (IRVHI)
अपने जाननेवालों पर करुणा करता रह, [QBR] और अपने धर्म के काम सीधे [QBR] मनवालों में करता रह! [QBR]
भजन संहिता 36 : 11 (IRVHI)
अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, [QBR] और न दुष्ट अपने हाथ के [QBR] बल से मुझे भगाने पाए। [QBR]
भजन संहिता 36 : 12 (IRVHI)
वहाँ अनर्थकारी गिर पड़े हैं; [QBR] वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे। [PE]

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12

BG:

Opacity:

Color:


Size:


Font: