भजन संहिता 38 : 1 (IRVHI)
{पीड़ित मनुष्य की प्रार्थना यादगार के लिये} [PS] हे यहोवा क्रोध में आकर मुझे झिड़क न दे, [QBR] और न जलजलाहट में आकर मेरी ताड़ना कर! [QBR]
भजन संहिता 38 : 2 (IRVHI)
क्योंकि तेरे तीर मुझ में लगे हैं, [QBR] और मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूँ। [QBR]
भजन संहिता 38 : 3 (IRVHI)
तेरे क्रोध के कारण मेरे शरीर में कुछ भी [QBR] आरोग्यता नहीं; [QBR] और मेरे पाप के कारण मेरी हड्डियों में कुछ [QBR] भी चैन नहीं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 4 (IRVHI)
क्योंकि मेरे अधर्म के कामों में [QBR] मेरा सिर डूब गया, [QBR] और वे भारी बोझ के समान मेरे सहने से [QBR] बाहर हो गए हैं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 5 (IRVHI)
मेरी मूर्खता के पाप के कारण मेरे घाव सड़ गए [QBR] और उनसे दुर्गन्‍ध आती हैं*। [QBR]
भजन संहिता 38 : 6 (IRVHI)
मैं बहुत दुःखी हूँ और झुक गया हूँ; [QBR] दिन भर मैं शोक का पहरावा [QBR] पहने हुए चलता-फिरता हूँ। [QBR]
भजन संहिता 38 : 7 (IRVHI)
क्योंकि मेरी कमर में जलन है, [QBR] और मेरे शरीर में आरोग्यता नहीं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 8 (IRVHI)
मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूँ; [QBR] मैं अपने मन की घबराहट से कराहता हूँ। [QBR]
भजन संहिता 38 : 9 (IRVHI)
हे प्रभु मेरी सारी अभिलाषा तेरे सम्मुख है, [QBR] और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 10 (IRVHI)
मेरा हृदय धड़कता है, [QBR] मेरा बल घटता जाता है; [QBR] और मेरी आँखों की ज्योति भी [QBR] मुझसे जाती रही। [QBR]
भजन संहिता 38 : 11 (IRVHI)
मेरे मित्र और मेरे संगी [QBR] मेरी विपत्ति में अलग हो गए, [QBR] और मेरे कुटुम्बी भी दूर जा खड़े हुए। (भज. 31:11, लूका 23:49) [QBR]
भजन संहिता 38 : 12 (IRVHI)
मेरे प्राण के गाहक मेरे लिये जाल बिछाते हैं, [QBR] और मेरी हानि का यत्न करनेवाले [QBR] दुष्टता की बातें बोलते, [QBR] और दिन भर छल की युक्ति सोचते हैं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 13 (IRVHI)
परन्तु मैं बहरे के समान सुनता ही नहीं, [QBR] और मैं गूँगे के समान मुँह नहीं खोलता। [QBR]
भजन संहिता 38 : 14 (IRVHI)
वरन् मैं ऐसे मनुष्य के तुल्य हूँ [QBR] जो कुछ नहीं सुनता, [QBR] और जिसके मुँह से विवाद की कोई [QBR] बात नहीं निकलती। [QBR]
भजन संहिता 38 : 15 (IRVHI)
परन्तु हे यहोवा, [QBR] मैंने तुझ ही पर अपनी आशा लगाई है; [QBR] हे प्रभु, मेरे परमेश्‍वर, [QBR] तू ही उत्तर देगा। [QBR]
भजन संहिता 38 : 16 (IRVHI)
क्योंकि मैंने कहा, [QBR] “ऐसा न हो कि वे मुझ पर आनन्द करें; [QBR] जब मेरा पाँव फिसल जाता है, [QBR] तब मुझ पर अपनी बड़ाई मारते हैं।” [QBR]
भजन संहिता 38 : 17 (IRVHI)
क्योंकि मैं तो अब गिरने ही पर हूँ; [QBR] और मेरा शोक निरन्तर मेरे सामने है*। [QBR]
भजन संहिता 38 : 18 (IRVHI)
इसलिए कि मैं तो अपने अधर्म को प्रगट करूँगा, [QBR] और अपने पाप के कारण खेदित रहूँगा। [QBR]
भजन संहिता 38 : 19 (IRVHI)
परन्तु मेरे शत्रु अनगिनत हैं, [QBR] और मेरे बैरी बहुत हो गए हैं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 20 (IRVHI)
जो भलाई के बदले में बुराई करते हैं, [QBR] वह भी मेरे भलाई के पीछे चलने के [QBR] कारण मुझसे विरोध करते हैं। [QBR]
भजन संहिता 38 : 21 (IRVHI)
हे यहोवा, मुझे छोड़ न दे! [QBR] हे मेरे परमेश्‍वर, मुझसे दूर न हो! [QBR]
भजन संहिता 38 : 22 (IRVHI)
हे यहोवा, हे मेरे उद्धारकर्ता, [QBR] मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! [PE]

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