भजन संहिता 58 : 1 (IRVHI)
{अन्याय के खिलाफ प्रार्थना} [PS] हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धर्म की बात बोलते हो? [QBR] और हे मनुष्य वंशियों क्या तुम सिधाई से न्याय करते हो? [QBR]
भजन संहिता 58 : 2 (IRVHI)
नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो; [QBR] तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो। [QBR]
भजन संहिता 58 : 3 (IRVHI)
दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, [QBR] वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं। [QBR]
भजन संहिता 58 : 4 (IRVHI)
उनमें सर्प का सा विष है; [QBR] वे उस नाग के समान है, जो सुनना नहीं चाहता*; [QBR]
भजन संहिता 58 : 5 (IRVHI)
और सपेरा कितनी ही निपुणता से क्यों न मंत्र पढ़े, [QBR] तो भी उसकी नहीं सुनता। [QBR]
भजन संहिता 58 : 6 (IRVHI)
हे परमेश्‍वर, उनके मुँह में से दाँतों को तोड़ दे; [QBR] हे यहोवा, उन जवान सिंहों की दाढ़ों को उखाड़ डाल! [QBR]
भजन संहिता 58 : 7 (IRVHI)
वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएँ; [QBR] जब वे अपने तीर चढ़ाएँ, तब तीर मानो दो टुकड़े हो जाएँ। [QBR]
भजन संहिता 58 : 8 (IRVHI)
वे घोंघे के समान हो जाएँ जो घुलकर नाश हो जाता है, [QBR] और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिस ने सूरज को देखा ही नहीं। [QBR]
भजन संहिता 58 : 9 (IRVHI)
इससे पहले कि तुम्हारी हाँड़ियों में काँटों की आँच लगे, [QBR] हरे व जले, दोनों को वह बवण्डर से उड़ा ले जाएगा। [QBR]
भजन संहिता 58 : 10 (IRVHI)
परमेश्‍वर का ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा; [QBR] वह अपने पाँव दुष्ट के लहू में धोएगा*। [QBR]
भजन संहिता 58 : 11 (IRVHI)
तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिये फल है; [QBR] निश्चय परमेश्‍वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है। [PE]

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