मरकुस 1 : 1 (OCVHI)
बपतिस्मा देनेवाले योहन का उपदेश परमेश्वर के पुत्र* कुछ हस्तलेखों में परमेश्वर के पुत्र शब्द नहीं पाए जाते. मला 3:1 येशु मसीह के सुसमाचार का आरंभ:
मरकुस 1 : 2 (OCVHI)
भविष्यवक्ता यशायाह के अभिलेख के अनुसार, “तुम्हारे पूर्व मैं अपना एक दूत भेज रहा हूं, जो तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा”† मला 3:1 ;
मरकुस 1 : 3 (OCVHI)
“बंजर भूमि में पुकारनेवाले की आवाज है, ‘प्रभु का रास्ता सीधा करो, उनका मार्ग सरल बनाओ.’ ”
मरकुस 1 : 4 (OCVHI)
4 बपतिस्मा‡ बपतिस्मा जल-संस्कार एक व्यक्ति को पानी में डुबोने की धार्मिक विधि देनेवाले योहन बंजर भूमि में पाप क्षमा के लिए पश्चाताप के बपतिस्मा का प्रचार करते हुए आए.
मरकुस 1 : 5 (OCVHI)
यहूदिया प्रदेश के क्षेत्रों से सारी भीड़ तथा येरूशलेम नगर के सभी लोग उनसे भेंट करने जाने लगे. ये सब पाप स्वीकार करते हुए यरदन नदी में योहन से बपतिस्मा ले रहे थे.
मरकुस 1 : 6 (OCVHI)
योहन का परिधान, ऊंट के रोम से निर्मित वस्त्र और उसके ऊपर चमड़े का कमरबंध था§ 2 राजा 1:8 देखें और उनका भोजन था टिड्डियां तथा जंगलीमधु.
मरकुस 1 : 7 (OCVHI)
वह प्रचार कर कहते थे, “मेरे बाद एक ऐसा व्यक्ति आएगा, जो मुझसे अधिक शक्तिमान हैं—मैं तो इस योग्य भी नहीं हूं कि उनके सामने झुककर उनकी जूतियों के बंध खोलनेवाला एक गुलाम बन सकूं.
मरकुस 1 : 8 (OCVHI)
मैं बपतिस्मा जल में देता हूं; वह तुम्हें पवित्र आत्मा में बपतिस्मा देंगे.”
मरकुस 1 : 9 (OCVHI)
मसीह येशु का बपतिस्मा उसी समय मसीह येशु गलील प्रदेश के नाज़रेथ नगर से आए और उन्हें योहन द्वारा यरदन नदी में बपतिस्मा दिया गया.
मरकुस 1 : 10 (OCVHI)
जब मसीह येशु जल से बाहर आ रहे थे, उसी क्षण उन्होंने आकाश को खुलते तथा आत्मा को, जो कबूतर के समान था, अपने ऊपर उतरते हुए देखा
मरकुस 1 : 11 (OCVHI)
और स्वर्ग से निकला एक शब्द भी सुनाई दिया: “तुम मेरे पुत्र हो—मेरे प्रिय—तुमसे मैं अतिप्रसन्न हूं.”
मरकुस 1 : 12 (OCVHI)
उसी समय पवित्र आत्मा ने उन्हें बंजर भूमि में भेज दिया.
मरकुस 1 : 13 (OCVHI)
बंजर भूमि में वह चालीस दिन शैतान के द्वारा परखे जाते रहे. वह वहां जंगली पशुओं के साथ रहे और स्वर्गदूतों ने उनकी सेवा की.
मरकुस 1 : 14 (OCVHI)
प्रचार का प्रारंभ गलील प्रदेश से योहन के बंदी बना लिए जाने के बाद येशु, परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते हुए गलील प्रदेश आए.
मरकुस 1 : 15 (OCVHI)
उनका संदेश था, “समय पूरा हो चुका है, परमेश्वर का राज्य पास आ गया है. मन फिराओ तथा सुसमाचार में विश्वास करो.”
मरकुस 1 : 16 (OCVHI)
पहले चार शिष्यों का बुलाया जाना गलील झील के पास से जाते हुए मसीह येशु ने शिमओन तथा उनके भाई आन्द्रेयास को देखा, जो झील में जाल डाल रहे थे. वे मछुआरे थे.
मरकुस 1 : 17 (OCVHI)
येशु ने उनसे कहा, “मेरा अनुसरण करो—मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुआरे बनाऊंगा.* अर्थात् जो सुसमाचार का प्रचार करके बहुतों को येशु के अनुयायी बनानेवाले ”
मरकुस 1 : 18 (OCVHI)
वे उसी क्षण अपने जाल छोड़कर येशु का अनुसरण करने लगे.
मरकुस 1 : 19 (OCVHI)
आगे जाने पर उन्होंने ज़ेबेदियॉस के पुत्र याकोब तथा उनके भाई योहन को देखा. वे भी नाव में थे और अपने जाल सुधार रहे थे.
मरकुस 1 : 20 (OCVHI)
उन्हें देखते ही मसीह येशु ने उनको बुलाया. वे अपने पिता ज़ेबेदियॉस को मज़दूरों के साथ नाव में ही छोड़कर उनके साथ चल दिए.
मरकुस 1 : 21 (OCVHI)
मसीह येशु की अधिकार भरी शिक्षा वे सब कफ़रनहूम नगर आए. शब्बाथ पर मसीह येशु स्थानीय यहूदी सभागृह में जाकर शिक्षा देने लगे.
मरकुस 1 : 22 (OCVHI)
लोग उनकी शिक्षा से आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह शास्त्रियों के समान नहीं परंतु इस प्रकार शिक्षा दे रहे थे कि उन्हें इसका अधिकार है.
मरकुस 1 : 23 (OCVHI)
उसी समय सभागृह में एक व्यक्ति, जो दुष्टात्मा से पीड़ित था, चिल्ला उठा,
मरकुस 1 : 24 (OCVHI)
“नाज़रेथवासी येशु! क्या चाहते हैं आप? क्या आप हमें नाश करने आए हैं? मैं जानता हूं कि आप कौन हैं; परमेश्वर के पवित्र जन!”
मरकुस 1 : 25 (OCVHI)
“चुप!” उसे फटकारते हुए मसीह येशु ने कहा, “बाहर निकल जा इसमें से!”
मरकुस 1 : 26 (OCVHI)
उस व्यक्ति को मरोड़ते हुए वह दुष्टात्मा ऊंचे शब्द में चिल्लाता हुआ उसमें से बाहर निकल गया.
मरकुस 1 : 27 (OCVHI)
सभी हैरान रह गए. वे आपस में विचार करने लगे, “यह सब क्या हो रहा है? यह अधिकारपूर्वक शिक्षा देते हैं और अशुद्ध आत्मा तक को आज्ञा देते है और वे उनका पालन भी करती हैं!”
मरकुस 1 : 28 (OCVHI)
तेजी से उनकी ख्याति गलील प्रदेश के आस-पास सब जगह फैल गई.
मरकुस 1 : 29 (OCVHI)
पेतरॉस की सास को स्वास्थ्यदान यहूदी सभागृह से निकलकर वे सीधे याकोब और योहन के साथ शिमओन तथा आन्द्रेयास के घर पर गए.
मरकुस 1 : 30 (OCVHI)
वहां शिमओन की सास बुखार में पड़ी हुई थी. उन्होंने बिना देर किए मसीह येशु को इसके विषय में बताया.
मरकुस 1 : 31 (OCVHI)
मसीह येशु उनके पास आए, उनका हाथ पकड़ उन्हें उठाया और उनका बुखार जाता रहा तथा वह उनकी सेवा टहल में जुट गईं.
मरकुस 1 : 32 (OCVHI)
संध्या समय सूर्यास्त के बाद[† सूर्यास्त के बाद वह शब्बाथ का दिन था जब कोई भी शारीरिक कार्य करना निषिद्ध था. सूर्यास्त होने पर शब्बाथ समाप्त होता है. लोगों को इसका इंतजार करना पड़ता था ] लोग अस्वस्थ तथा जिनमें दुष्टात्माऐं थी उन लोगों को येशु के पास लाने लगे.
मरकुस 1 : 33 (OCVHI)
सारा नगर ही द्वार पर इकट्ठा हो गया
मरकुस 1 : 34 (OCVHI)
मसीह येशु ने विभिन्न रोगों से पीड़ित अनेकों को स्वस्थ किया और अनेक दुष्टात्माओं को भी निकाला. वह दुष्टात्माओं को बोलने नहीं देते थे क्योंकि वे उन्हें पहचानती थी.
मरकुस 1 : 35 (OCVHI)
समग्र गलील प्रदेश में मसीह येशु द्वारा प्रचार तथा स्वास्थ्यदान सेवा भोर होने पर, जब अंधकार ही था, मसीह येशु उठे और एक सुनसान जगह को गए. वहां वह प्रार्थना करने लगे.
मरकुस 1 : 36 (OCVHI)
शिमओन तथा उनके अन्य साथी उन्हें खोज रहे थे.
मरकुस 1 : 37 (OCVHI)
उन्हें पाकर वे कहने लगे, “सभी आपको खोज रहे हैं.”
मरकुस 1 : 38 (OCVHI)
किंतु मसीह येशु ने उनसे कहा, “चलो, कहीं और चलें—यहां पास के नगरों में—जिससे कि मैं वहां भी प्रचार कर सकूं क्योंकि मेरे यहां आने का उद्देश्य यही है.”
मरकुस 1 : 39 (OCVHI)
वह सारे गलील प्रदेश में घूमते हुए यहूदी सभागृहों में जा-जाकर प्रचार करते रहे तथा लोगों में से दुष्टात्माओं को निकालते गए.
मरकुस 1 : 41 (OCVHI)
एक कोढ़ रोगी उनके पास आया. उसने मसीह येशु के सामने घुटने टेक उनसे विनती की, “आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.” तरस खाकर मसीह येशु ने हाथ बढ़ाकर उसे स्पर्श किया और कहा, “मैं चाहता हूं. तुम शुद्ध हो जाओ!”
मरकुस 1 : 42 (OCVHI)
उसी समय उसका कोढ़ रोग जाता रहा और वह शुद्ध हो गया.
मरकुस 1 : 43 (OCVHI)
मसीह येशु ने उसे उसी समय इस चेतावनी के साथ विदा किया,
मरकुस 1 : 44 (OCVHI)
“सुनो! इस विषय में किसी से कुछ न कहना. हां, जाकर स्वयं को पुरोहित के सामने प्रस्तुत करो तथा अपनी शुद्धि के प्रमाण के लिए मोशेह द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार शुद्धि संबंधी भेंट चढ़ाओ.‡ लेवी 14:2-32 देखें ”
मरकुस 1 : 45 (OCVHI)
किंतु उस व्यक्ति ने जाकर खुलेआम इसकी घोषणा की तथा यह समाचार इतना फैला दिया कि मसीह येशु इसके बाद खुल्लम-खुल्ला किसी नगर में न जा सके और उन्हें नगर के बाहर सुनसान स्थानों में रहना पड़ा. फिर भी सब स्थानों से लोग उनके पास आते रहे.
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