भजन संहिता 100 : 1 (OCVHI)
याहवेह के स्तवन में समस्त पृथ्वी उच्च स्वर में जयघोष करे.
भजन संहिता 100 : 2 (OCVHI)
याहवेह की आराधना आनंदपूर्वक की जाए; हर्ष गीत गाते हुए उनकी उपस्थिति में प्रवेश किया जाए.
भजन संहिता 100 : 3 (OCVHI)
यह समझ लो कि स्वयं याहवेह ही परमेश्वर हैं. हमारी रचना उन्हीं ने की है, स्वयं हमने नहीं; हम पर उन्हीं का स्वामित्व है. हम उनकी प्रजा, उनकी चराई की भेड़ें हैं.
भजन संहिता 100 : 4 (OCVHI)
धन्यवाद के भाव में उनके द्वारों में और स्तवन भाव में उनके आंगनों में प्रवेश करो; उनकी महिमा को धन्य कहो.
भजन संहिता 100 : 5 (OCVHI)
याहवेह भले हैं; उनकी करुणा सदा की है; उनकी सच्चाई का प्रसरण समस्त पीढ़ियों में होता जाता है.

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