भजन संहिता 46 : 1 (OCVHI)
परमेश्वर हमारे आश्रय-स्थल एवं शक्ति हैं, संकट की स्थिति में सदैव उपलब्ध सहायक.
भजन संहिता 46 : 2 (OCVHI)
तब हम भयभीत न होंगे, चाहे पृथ्वी विस्थापित हो जाए, चाहे पर्वत महासागर के गर्भ में जा पड़ें,
भजन संहिता 46 : 3 (OCVHI)
हां, तब भी जब समुद्र गरजना करते हुए फेन उठाने लगें और पर्वत इस उत्तेजना के कारण थर्रा जाएं.
भजन संहिता 46 : 4 (OCVHI)
परमेश्वर के नगर में एक नदी है, जिसकी जलधारा में इस नगर का उल्लास है, यह नगर वह पवित्र स्थान है, जहां सर्वोच्च परमेश्वर निवास करते हैं.
भजन संहिता 46 : 5 (OCVHI)
परमेश्वर इस नगर में निवास करते हैं, इस नगर की क्षति न होगी; हर एक अरुणोदय में उसके लिए परमेश्वर की सहायता मिलती रहेगी.
भजन संहिता 46 : 6 (OCVHI)
राष्ट्रों में खलबली मची हुई है, राज्य के लोग डगमगाने लगे; परमेश्वर के एक आह्वान पर, पृथ्वी पिघल जाती है.
भजन संहिता 46 : 7 (OCVHI)
सर्वशक्तिमान याहवेह हमारे पक्ष में हैं; याकोब के परमेश्वर में हमारी सुरक्षा है.
भजन संहिता 46 : 8 (OCVHI)
यहां आकर याहवेह के कार्यों पर विचार करो, पृथ्वी पर उन्होंने कैसा विध्वंस किया है.
भजन संहिता 46 : 9 (OCVHI)
उन्हीं के आदेश से पृथ्वी के छोर तक युद्ध थम जाते हैं. वही धनुष को भंग और भाले को टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं; वह रथों को अग्नि में भस्म कर देते हैं.
भजन संहिता 46 : 10 (OCVHI)
परमेश्वर कहते हैं, “समस्त प्रयास छोड़कर यह समझ लो कि परमेश्वर मैं हूं; समस्त राष्ट्रों में मेरी महिमा होगी, समस्त पृथ्वी पर मेरी महिमा होगी.”
भजन संहिता 46 : 11 (OCVHI)
सर्वशक्तिमान याहवेह हमारे पक्ष में हैं; याकोब के परमेश्वर में हमारी सुरक्षा है.

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