पवित्र बाइबिल

ऐसी तो रीड वर्शन (ESV)
यहेजकेल

यहेजकेल अध्याय 3

1 2 परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, जो तुम देखते हो उसे खा जाओ। इस गोल किये पत्र कोखा जाओ और तब जाकर इस्राएल के लोगों से ये बाते कहो।” इसलिये मैंने अपना मुँह खोला और उसने गोल किये पत्र को मेरे मुँह में रखा। 3 तब परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस गोल किये पत्र को दे रहा हूँ। इसे निगल जाओ! इस गोल किये पत्र को अपने शरीर में भर जाने दो।” 4 इसलिये मैं गोल किये पत्र को खा गया। यह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था। तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के परिवार में जाओ। मेरे कहे हुए वचन उनसे कहो। 5 मैं तुम्हें किन्हीं विदेशियों में नहीं भेज रहा हूँ जिनकी बातें तुम समझ न सको। तुम्हें दूसरी भाषा सीखनी नहीं पड़ेगी। मैं तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। 6 मैं तुम्हें कोई भिन्न देशों में नहीं भेज रहा हूँ जहाँ लोग ऐसी भाषा बोलते हैं कि तुम समझ नहीं सकते। यदि तुम उन लोगों के पास जाओगे और उनसे बातें करोगे तो वे तुम्हारी सुनेंगे। किन्तु तुम्हें उन कठिन भाषाओं को नहीं समझना है। 7 नहीं! मैं तो तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। केवल वे लोग ही कठोर चित्त वाले हैं—वे बहुत ही हठी है और इस्राएल के लोग तुम्हारी सुनने से इन्कार कर देंगे। वे मेरी सुनना नहीं चाहते! 8 किन्तु मैं तुमको उतना ही हठी बनाऊँगा जितने वे हैं। तुम्हारा चित्त ठीक उतना ही कठोर होगा जितना उनका! 9 हीरा अग्नि—चट्टान से भी अधिक कठोर होता है। उसी प्रकार तुम्हारा चित्त उनके चित्त से अधिक कठोर होगा। तुम उनसे अधिक हठी होगे अत: तुम उन लोगों से नहीं डरोगे। तुम उन लोगों से नहीं डरोगे जो सदा मेरे विरुद्ध जाते हैं।” 10 तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, तुम्हें मेरी हर एक बात, जो मैं तुमसे कहता हूँ, सुनना होगा और तुम्हें उन बातों को याद रखना होगा। 11 तब तुम अपने उन सभी लोगों के बीच जाओ जो देश—निष्कासित हैं। उनके पास जाओ और कहो, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है,’ वे मेरी नहीं सुनेंगे और वे पाप करना बन्द नहीं करेंगे। किन्तु तुम्हें ये बातें कहनी हैं।” 12 तब आत्मा ने मुझे ऊपर उठाया। तब मैंने अपने पीछे एक आवाज सुनी। यह बिजली की कड़क की तरह बहुत तेज थी। उसने कहा, “यहोवा की महिमा धन्य है!” 13 तब प्राणियों के पंख हिलने आरम्भ हुए। पंखों ने, जब एक दूसरे को छुआ, तो उन्होंने बड़ी तेज आवाज की और उनके सामने के चक्र बिजली की कड़क की तरह प्रचण्ड घोष करने लगे! 14 आत्मा ने मुझे उठाया और दूर ले गई। मैंने वह स्थान छोड़ा। मैं बहुत दुःखी था और मेरी आत्मा बहुत अशान्त थी किन्तु यहोवा की शक्ति मेरे भीतर बहुत प्रबल थी! 15 मैं इस्राएल के उन लोगों के पास गया जो तेलाबीब में रहने को विवश किये गए थे। ये लोग कबार नदी के सहारे रहते थे। मैंने वहाँ के निवासियों को अभिवादन किया। मैं वहाँ सात दिन ठहरा और उन्हें यहोवा की कही गई बातों को बताया। 16 सात दिन बाद यहोवा का सन्देश मुझे मिला। उसने कहा, 17 “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस्राएल का सन्तरी बना रहा हूँ। मैं उन बुरी घटनाओं को बताऊँगा जो उनके साथ घटित होंगी और तुम्हें इस्राएल को उन घटनाओं के बारे में चेतावनी देनी चाहिए। 18 यदि मैं कहता हूँ, ‘यह बुरा व्यक्ति मरेगा!’ तो तुम्हें यह चेतावनी उने देनी चाहिए! तुम्हें उससे कहना चाहिए कि वह अपनी जिन्दगी बदले और बुरे काम करना बन्द करे। यदि तुम उस व्यक्ति को चेतावनी नहीं दोगे तो वह मर जायेगा। वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया। किन्तु मैं तुमको भी उसकी मृत्यु के लिये उत्तरदायी बनाऊँगा! क्यों क्योंकि तुम उसके पास नहीं गए और उसके जीवन को नहीं बचाया। 19 20 “यह हो सकता है कि तुम किसी व्यक्ति को चेतावनी दोगे, उसे उसके जीवन को बदलने के लिये समझाओगे और बुरा काम न करने को कहोगे। यदि वह व्यक्ति तुम्हारी अनसुनी करता है तो मर जायेगा। वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया था। किन्तु तुमने उसे चेतावनी दी, अत: तुमने अपना जीवन बचा लिया। 21 “या यह हो सकता है कि कोई अच्छा व्यक्ति अच्छा बने रहना छोड़ दे। मैं उसके सामने कुछ ऐसा लाकर रख दूँ कि वह उसका पतन (पाप) करे। वह बुरे काम करना आरम्भ करेगा। इसलिये वह मरेगा। वह मरेगा, क्योंकि वह पाप कर रहा है और तुमने उसे चेतावनी नहीं दी। मैं तुम्हें उसकी मृत्यु के लिये उत्तरदायी बनाऊँगा, और लोग उसके द्वारा किये गए सभी अच्छे कार्यों को याद नहीं करेंगे। 22 “किन्तु यदि तुम उस अच्छे व्यक्ति को चेतावनी देते हो और उससे पाप करना बन्द करने को कहते हो, और यदि वह पाप करना बन्द कर देता है, तब वह नहीं मरेगा। क्यों क्योंकि तुमने उसे चेतावनी दी और उसने तुम्हारी सुनी। इस प्रकार तुमने अपना जीवन बचाया।” 23 तब यहोवा की शक्ति मेरे ऊपर आई। उसने मुझसे कहा, “उठो, और घाटी में जाओ। मैं तुमसे उस स्थान पर बात करूँगा।” इसलिये मैं खड़ा हुआ और बाहर घाटी में गया। यहोवा की महिमा वहाँ प्रकट हुआ ठीक वैसा ही, जैसा मैंने उसे कबार नदी के सहारे देखा था। इसलिए मैंने धरती पर अपना सिर झुकाया। 24 किन्तु “आत्मा” आयी और उसने मुझे उठाकर मेरे पैरों पर खड़ा कर दिया। उसने मुझसे कहा, “घर जाओ और अपने को अपने घर में ताले की भीतर बंद कर लो। 25 मनुष्य के पुत्र, लोग रस्सी के साथ आएंगे और तुमको बांध देंगे। वे तुमको लोगों के बीच बाहर जाने नहीं देंगे। 26 मैं तुम्हारी जीभ को तुम्हारे तालू से चिपका दूँगा, तुम बात करने योग्य नहीं रहोगे। इसलिये कोई भी व्यक्ति उन लोगों को ऐसा नहीं मिलेगा जो उन्हें शिक्षा दे सके कि वे पाप कर रहे हैं। क्यों क्योंकि वे लोग सदा मेरे विरुद्ध जा रहे हैं। 27 किन्तु मैं तुमसे बातचीत करूँगा तब मैं तुम्हें बोलने दूँगा। किन्तु तुम्हें उनसे कहना चाहिए, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है।’ यदि कोई व्यक्ति सुनना चाहता है तो यह बहुत अच्छा है। यदि कोई व्यक्ति इसे नहीं सुनना चाहता, तो न सुने। किन्तु वे लोग सदा मेरे विरुद्ध जाते रहे।
1. 2. परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, जो तुम देखते हो उसे खा जाओ। इस गोल किये पत्र कोखा जाओ और तब जाकर इस्राएल के लोगों से ये बाते कहो।” इसलिये मैंने अपना मुँह खोला और उसने गोल किये पत्र को मेरे मुँह में रखा। 3. तब परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस गोल किये पत्र को दे रहा हूँ। इसे निगल जाओ! इस गोल किये पत्र को अपने शरीर में भर जाने दो।” 4. इसलिये मैं गोल किये पत्र को खा गया। यह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था। तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के परिवार में जाओ। मेरे कहे हुए वचन उनसे कहो। 5. मैं तुम्हें किन्हीं विदेशियों में नहीं भेज रहा हूँ जिनकी बातें तुम समझ न सको। तुम्हें दूसरी भाषा सीखनी नहीं पड़ेगी। मैं तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। 6. मैं तुम्हें कोई भिन्न देशों में नहीं भेज रहा हूँ जहाँ लोग ऐसी भाषा बोलते हैं कि तुम समझ नहीं सकते। यदि तुम उन लोगों के पास जाओगे और उनसे बातें करोगे तो वे तुम्हारी सुनेंगे। किन्तु तुम्हें उन कठिन भाषाओं को नहीं समझना है। 7. नहीं! मैं तो तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। केवल वे लोग ही कठोर चित्त वाले हैं—वे बहुत ही हठी है और इस्राएल के लोग तुम्हारी सुनने से इन्कार कर देंगे। वे मेरी सुनना नहीं चाहते! 8. किन्तु मैं तुमको उतना ही हठी बनाऊँगा जितने वे हैं। तुम्हारा चित्त ठीक उतना ही कठोर होगा जितना उनका! 9. हीरा अग्नि—चट्टान से भी अधिक कठोर होता है। उसी प्रकार तुम्हारा चित्त उनके चित्त से अधिक कठोर होगा। तुम उनसे अधिक हठी होगे अत: तुम उन लोगों से नहीं डरोगे। तुम उन लोगों से नहीं डरोगे जो सदा मेरे विरुद्ध जाते हैं।” 10. तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, तुम्हें मेरी हर एक बात, जो मैं तुमसे कहता हूँ, सुनना होगा और तुम्हें उन बातों को याद रखना होगा। 11. तब तुम अपने उन सभी लोगों के बीच जाओ जो देश—निष्कासित हैं। उनके पास जाओ और कहो, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है,’ वे मेरी नहीं सुनेंगे और वे पाप करना बन्द नहीं करेंगे। किन्तु तुम्हें ये बातें कहनी हैं।” 12. तब आत्मा ने मुझे ऊपर उठाया। तब मैंने अपने पीछे एक आवाज सुनी। यह बिजली की कड़क की तरह बहुत तेज थी। उसने कहा, “यहोवा की महिमा धन्य है!” 13. तब प्राणियों के पंख हिलने आरम्भ हुए। पंखों ने, जब एक दूसरे को छुआ, तो उन्होंने बड़ी तेज आवाज की और उनके सामने के चक्र बिजली की कड़क की तरह प्रचण्ड घोष करने लगे! 14. आत्मा ने मुझे उठाया और दूर ले गई। मैंने वह स्थान छोड़ा। मैं बहुत दुःखी था और मेरी आत्मा बहुत अशान्त थी किन्तु यहोवा की शक्ति मेरे भीतर बहुत प्रबल थी! 15. मैं इस्राएल के उन लोगों के पास गया जो तेलाबीब में रहने को विवश किये गए थे। ये लोग कबार नदी के सहारे रहते थे। मैंने वहाँ के निवासियों को अभिवादन किया। मैं वहाँ सात दिन ठहरा और उन्हें यहोवा की कही गई बातों को बताया। 16. सात दिन बाद यहोवा का सन्देश मुझे मिला। उसने कहा, 17. “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस्राएल का सन्तरी बना रहा हूँ। मैं उन बुरी घटनाओं को बताऊँगा जो उनके साथ घटित होंगी और तुम्हें इस्राएल को उन घटनाओं के बारे में चेतावनी देनी चाहिए। 18. यदि मैं कहता हूँ, ‘यह बुरा व्यक्ति मरेगा!’ तो तुम्हें यह चेतावनी उने देनी चाहिए! तुम्हें उससे कहना चाहिए कि वह अपनी जिन्दगी बदले और बुरे काम करना बन्द करे। यदि तुम उस व्यक्ति को चेतावनी नहीं दोगे तो वह मर जायेगा। वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया। किन्तु मैं तुमको भी उसकी मृत्यु के लिये उत्तरदायी बनाऊँगा! क्यों क्योंकि तुम उसके पास नहीं गए और उसके जीवन को नहीं बचाया। 19. 20. “यह हो सकता है कि तुम किसी व्यक्ति को चेतावनी दोगे, उसे उसके जीवन को बदलने के लिये समझाओगे और बुरा काम न करने को कहोगे। यदि वह व्यक्ति तुम्हारी अनसुनी करता है तो मर जायेगा। वह मरेगा क्योंकि उसने पाप किया था। किन्तु तुमने उसे चेतावनी दी, अत: तुमने अपना जीवन बचा लिया। 21. “या यह हो सकता है कि कोई अच्छा व्यक्ति अच्छा बने रहना छोड़ दे। मैं उसके सामने कुछ ऐसा लाकर रख दूँ कि वह उसका पतन (पाप) करे। वह बुरे काम करना आरम्भ करेगा। इसलिये वह मरेगा। वह मरेगा, क्योंकि वह पाप कर रहा है और तुमने उसे चेतावनी नहीं दी। मैं तुम्हें उसकी मृत्यु के लिये उत्तरदायी बनाऊँगा, और लोग उसके द्वारा किये गए सभी अच्छे कार्यों को याद नहीं करेंगे। 22. “किन्तु यदि तुम उस अच्छे व्यक्ति को चेतावनी देते हो और उससे पाप करना बन्द करने को कहते हो, और यदि वह पाप करना बन्द कर देता है, तब वह नहीं मरेगा। क्यों क्योंकि तुमने उसे चेतावनी दी और उसने तुम्हारी सुनी। इस प्रकार तुमने अपना जीवन बचाया।” 23. तब यहोवा की शक्ति मेरे ऊपर आई। उसने मुझसे कहा, “उठो, और घाटी में जाओ। मैं तुमसे उस स्थान पर बात करूँगा।” इसलिये मैं खड़ा हुआ और बाहर घाटी में गया। यहोवा की महिमा वहाँ प्रकट हुआ ठीक वैसा ही, जैसा मैंने उसे कबार नदी के सहारे देखा था। इसलिए मैंने धरती पर अपना सिर झुकाया। 24. किन्तु “आत्मा” आयी और उसने मुझे उठाकर मेरे पैरों पर खड़ा कर दिया। उसने मुझसे कहा, “घर जाओ और अपने को अपने घर में ताले की भीतर बंद कर लो। 25. मनुष्य के पुत्र, लोग रस्सी के साथ आएंगे और तुमको बांध देंगे। वे तुमको लोगों के बीच बाहर जाने नहीं देंगे। 26. मैं तुम्हारी जीभ को तुम्हारे तालू से चिपका दूँगा, तुम बात करने योग्य नहीं रहोगे। इसलिये कोई भी व्यक्ति उन लोगों को ऐसा नहीं मिलेगा जो उन्हें शिक्षा दे सके कि वे पाप कर रहे हैं। क्यों क्योंकि वे लोग सदा मेरे विरुद्ध जा रहे हैं। 27. किन्तु मैं तुमसे बातचीत करूँगा तब मैं तुम्हें बोलने दूँगा। किन्तु तुम्हें उनसे कहना चाहिए, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है।’ यदि कोई व्यक्ति सुनना चाहता है तो यह बहुत अच्छा है। यदि कोई व्यक्ति इसे नहीं सुनना चाहता, तो न सुने। किन्तु वे लोग सदा मेरे विरुद्ध जाते रहे।
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