पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
उत्पत्ति

उत्पत्ति अध्याय 33

याकूब अपनी बीरता दिखाता है 1 याकूब ने दृष्टि उठाई और एसाव को आते हुए देखा। एसाव आ रहा था और उसके साथ चार सौ पुरुष थे। याकूब ने अपने परिवार को चार समूहों में बाँटा। लिआ और उसके बच्चे एक समूह में थे, राहेल और यूसुफ एक समूह में थे, दासी और उनके बच्चे दो समूहों में थे। 2 याकूब ने दासियों और उनके बच्चों को आगे रखा। उसके बाद उनके पीछे लिआ और उसके बच्चों को रखा और याकूब ने राहेल और यूसुफ को सबके अन्त में रखा। 3 4 याकूब स्वयं एसाव की ओर गया। इसलिए वह पहला व्यक्ति था जिसके पास एसाव आया। अपने भाई की ओर बढ़ते समय याकूब ने सात बार ज़मीन पर झुककर प्रणाम किया। तब एसाव ने याकूब को देखा, वह उससे मिलने को दौड़ पड़ा। एसाव ने याकूब को अपनी बाहों में भर लिया और छाती से लगाया। तब एसाव ने उसकी गर्दन को घूमा और दोनों आनन्द में रो पड़े। 5 एसाव ने नज़र उठाई और स्त्रियों तथा बच्चों को देखा। उसने कहा, “तुम्हारे साथ ये कौन लोग हैं?” 6 याकूब ने उत्तर दिया, “ये वे बच्चे हैं जो परमेश्वर ने मुझे दिए है। परमेश्वर मुझ पर दयालु रहा है।” तब दोनों दासियाँ अपने बच्चों के साथ एसाव के पास गए। उन्होंने उसको झुककर प्रणाम किया। 7 तब लिआ अपने बच्चों के साथ एसाव के सामने गई और उसने प्रणाम किया और तब राहेल और यूसुफ एसाव के सामने गए और उन्होंने भी प्रणाम किया। 8 9 एसाव ने कहा, “मैंने जिन सब लोगों को यहाँ आते समय देखा वे कौन थे? और वे सभी जानवर किसलिए थे?” याकूब ने उत्तर दिया, “वे तुमको मेरी भेट है जिससे तुम मुझे स्वीकार कर सको!” 10 किन्तु एसाव ने कहा, “भाई, तुम्हें मुझको कोई भेंट नहीं देनी चाहिए क्योंकि मेरे पास सब कुछ बहुतायत से हैं।” याकूब ने कहा, “नहीं! मैं तुमसे विनती करता हूँ। यदि तुम सचमुच मुझे स्वीकार करते हो तो कृपया जो भेटें देता हूँ तुम स्वीकार करो। मैं तुमको दुबारा देख कर बहुत प्रसन्न हूँ। यह तो परमेश्वर को देखने जैसा है। मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुमने मुझे स्वीकार किया है। 11 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो भेंट मैं देता हूँ उसे भी स्वीकार करो। परमेश्वर मेरे ऊपर बहुत कृपालु रहा है। मेरे पास अपनी आवश्यकता से अधिक हैं।” इस प्रकार याकूब ने एसाव से भेंट स्वीकार करने को विनती की। इसलिए एसाव ने भेंट स्वीकार की। 12 13 तब एसाव ने कहा, “अब तुम अपनी यात्रा जारी रख सकते हो। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।” किन्तु याकूब ने उससे कहा, “तुम यह जानते हो कि मेरे बच्चे अभी कमज़ोर हैं और मुझे अपनी रेवड़ों और उनके बच्चों की विशेष देख—रेख करनी चाहिए। यदि मैं उन्हें बहुत दूर एक दिन में चलने के लिए विवश करता हूँ तो सभी पशु मर जाएंगे। 14 इसलिए तुम आगे चलो और मैं धीरे—धीरे तुम्हारे पीछे आऊँगा। मैं पशुओं और अन्य जानवरों की रक्षा के लिए काफी धीरे—धीरे बढ़ूँगा और मैं काफी धीरे—धीरे इसलिए चलूँगा कि मेरे बच्चे बहुत अधिक थक न जाए। मैं सेईर में तुमसे मिलूँगा।” 15 इसलिए एसाव ने कहा, “तब मैं अपने कुछ साथियों को तुम्हारी सहायता के लिए छोड़ दूँगा।” किन्तु याकूब ने कहा, “यह तुम्हारी विशेष दया है। किन्तु ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।” 16 इसलिए उस दिन एसाव सेईर की वापसी यात्रा पर चल पढ़ा। 17 किन्तु याकूब सुक्कोत को गया। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और अपने मवेशियों के लिए छोटी पशुशालाएँ बनाई। इसी कारण इस जगह का नाम सुक्कोत रखा। 18 बाद में याकूब ने अपना जो कुछ था उसे कनान प्रदेश से शकेम नगर को भेज दिया। याकूब ने नगर के समीप मैदान में अपना डेरा डाला। 19 याकूब ने उस भूमि को शकेम के पिता हमोर के परिवार से खरीदा। याकूब ने चाँदी के सौ सिक्के दिए। 20 याकूब ने परमेश्वर की उपासना के लिए वहाँ एक विशेष स्मरण स्तम्भ बनाया। याकूब ने जगह का नाम “एले, इस्राएल का परमेश्वर” रखा।
याकूब अपनी बीरता दिखाता है 1 याकूब ने दृष्टि उठाई और एसाव को आते हुए देखा। एसाव आ रहा था और उसके साथ चार सौ पुरुष थे। याकूब ने अपने परिवार को चार समूहों में बाँटा। लिआ और उसके बच्चे एक समूह में थे, राहेल और यूसुफ एक समूह में थे, दासी और उनके बच्चे दो समूहों में थे। .::. 2 याकूब ने दासियों और उनके बच्चों को आगे रखा। उसके बाद उनके पीछे लिआ और उसके बच्चों को रखा और याकूब ने राहेल और यूसुफ को सबके अन्त में रखा। .::. 3 .::. 4 याकूब स्वयं एसाव की ओर गया। इसलिए वह पहला व्यक्ति था जिसके पास एसाव आया। अपने भाई की ओर बढ़ते समय याकूब ने सात बार ज़मीन पर झुककर प्रणाम किया। तब एसाव ने याकूब को देखा, वह उससे मिलने को दौड़ पड़ा। एसाव ने याकूब को अपनी बाहों में भर लिया और छाती से लगाया। तब एसाव ने उसकी गर्दन को घूमा और दोनों आनन्द में रो पड़े। .::. 5 एसाव ने नज़र उठाई और स्त्रियों तथा बच्चों को देखा। उसने कहा, “तुम्हारे साथ ये कौन लोग हैं?” .::. 6 याकूब ने उत्तर दिया, “ये वे बच्चे हैं जो परमेश्वर ने मुझे दिए है। परमेश्वर मुझ पर दयालु रहा है।” तब दोनों दासियाँ अपने बच्चों के साथ एसाव के पास गए। उन्होंने उसको झुककर प्रणाम किया। .::. 7 तब लिआ अपने बच्चों के साथ एसाव के सामने गई और उसने प्रणाम किया और तब राहेल और यूसुफ एसाव के सामने गए और उन्होंने भी प्रणाम किया। .::. 8 .::. 9 एसाव ने कहा, “मैंने जिन सब लोगों को यहाँ आते समय देखा वे कौन थे? और वे सभी जानवर किसलिए थे?” याकूब ने उत्तर दिया, “वे तुमको मेरी भेट है जिससे तुम मुझे स्वीकार कर सको!” .::. 10 किन्तु एसाव ने कहा, “भाई, तुम्हें मुझको कोई भेंट नहीं देनी चाहिए क्योंकि मेरे पास सब कुछ बहुतायत से हैं।” याकूब ने कहा, “नहीं! मैं तुमसे विनती करता हूँ। यदि तुम सचमुच मुझे स्वीकार करते हो तो कृपया जो भेटें देता हूँ तुम स्वीकार करो। मैं तुमको दुबारा देख कर बहुत प्रसन्न हूँ। यह तो परमेश्वर को देखने जैसा है। मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुमने मुझे स्वीकार किया है। .::. 11 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो भेंट मैं देता हूँ उसे भी स्वीकार करो। परमेश्वर मेरे ऊपर बहुत कृपालु रहा है। मेरे पास अपनी आवश्यकता से अधिक हैं।” इस प्रकार याकूब ने एसाव से भेंट स्वीकार करने को विनती की। इसलिए एसाव ने भेंट स्वीकार की। .::. 12 .::. 13 तब एसाव ने कहा, “अब तुम अपनी यात्रा जारी रख सकते हो। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।” किन्तु याकूब ने उससे कहा, “तुम यह जानते हो कि मेरे बच्चे अभी कमज़ोर हैं और मुझे अपनी रेवड़ों और उनके बच्चों की विशेष देख—रेख करनी चाहिए। यदि मैं उन्हें बहुत दूर एक दिन में चलने के लिए विवश करता हूँ तो सभी पशु मर जाएंगे। .::. 14 इसलिए तुम आगे चलो और मैं धीरे—धीरे तुम्हारे पीछे आऊँगा। मैं पशुओं और अन्य जानवरों की रक्षा के लिए काफी धीरे—धीरे बढ़ूँगा और मैं काफी धीरे—धीरे इसलिए चलूँगा कि मेरे बच्चे बहुत अधिक थक न जाए। मैं सेईर में तुमसे मिलूँगा।” .::. 15 इसलिए एसाव ने कहा, “तब मैं अपने कुछ साथियों को तुम्हारी सहायता के लिए छोड़ दूँगा।” किन्तु याकूब ने कहा, “यह तुम्हारी विशेष दया है। किन्तु ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।” .::. 16 इसलिए उस दिन एसाव सेईर की वापसी यात्रा पर चल पढ़ा। .::. 17 किन्तु याकूब सुक्कोत को गया। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और अपने मवेशियों के लिए छोटी पशुशालाएँ बनाई। इसी कारण इस जगह का नाम सुक्कोत रखा। .::. 18 बाद में याकूब ने अपना जो कुछ था उसे कनान प्रदेश से शकेम नगर को भेज दिया। याकूब ने नगर के समीप मैदान में अपना डेरा डाला। .::. 19 याकूब ने उस भूमि को शकेम के पिता हमोर के परिवार से खरीदा। याकूब ने चाँदी के सौ सिक्के दिए। .::. 20 याकूब ने परमेश्वर की उपासना के लिए वहाँ एक विशेष स्मरण स्तम्भ बनाया। याकूब ने जगह का नाम “एले, इस्राएल का परमेश्वर” रखा।
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