पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता

भजन संहिता अध्याय 31

1 हे यहोवा मेरा भरोसा तुझ पर है; मुझे कभी लज्जित होना न पड़े; तू अपने धर्मी होने के कारण मुझे छुड़ा ले! 2 अपना कान मेरी ओर लगाकर तुरन्त मुझे छुड़ा ले! 3 क्योंकि तू मेरे लिये चट्टान और मेरा गढ़ है; इसलिये अपने नाम के निमित्त मेरी अगुवाई कर, और मुझे आगे ले चल। 4 जो जाल उन्होंने मेरे लिये बिछाया है उससे तू मुझ को छुड़ा ले, क्योंकि तू ही मेरा दृढ़ गढ़ है। 5 मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं; हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है॥ 6 जो व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, उन से मैं घृणा करता हूं; परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। 7 मैं तेरी करूणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तू ने मेरी सुधि ली है, 8 और तू ने मुझे शत्रु के हाथ में पड़ने नहीं दिया; तू ने मेरे पांवों को चौड़े स्थान में खड़ा किया है॥ 9 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर क्योंकि मैं संकट में हूं; मेरी आंखे वरन मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। 10 मेरा जीवन शोक के मारे और मेरी अवस्था कराहते कराहते घट चली है; मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रह, और मेरी हडि्डयां घुल गई॥ 11 अपने सब विरोधियों के कारण मेरे पड़ोसियों में मेरी नामधराई हुई है, अपने जान पहिचान वालों के लिये डर का कारण हूं; जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझ से दूर भाग जाते हैं। 12 मैं मृतक की नाईं लोगों के मन से बिसर गया; मैं टूटे बर्तन के समान हो गया हूं। 13 मैं ने बहुतों के मुंह से अपना अपवाद सुना, चारों ओर भय ही भय है! जब उन्होंने मेरे विरुद्ध आपस में सम्मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की॥ 14 परन्तु हे यहोवा मैं ने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैं ने कहा, तू मेरा परमेश्वर है। 15 मेरे दिन तेरे हाथ में है; तू मुझे मेरे शत्रुओं और मेरे सताने वालों के हाथ से छुड़ा। 16 अपने दास पर अपने मुंह का प्रकाश चमका; अपनी करूणा से मेरा उद्धार कर॥ 17 हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे क्योंकि मैं ने तुझ को पुकारा है; दुष्ट लज्जित हों और वे पाताल में चुपचाप पड़े रहें। 18 जो अंहकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं, उनके झूठ बोलने वाले मुंह बन्द किए जाएं॥ 19 आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है जो तू ने अपने डरवैयों के लिये रख छोड़ी है, और अपने शरणागतों के लिये मनुष्यों के साम्हने प्रगट भी की है! 20 तू उन्हें दर्शन देने के गुप्त स्थान में मनुष्यों की बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; तू उन को अपने मण्डप में झगड़े-रगड़े से छिपा रखेगा॥ 21 यहोवा धन्य है, क्योंकि उसने मुझे गढ़ वाले नगर में रखकर मुझ पर अद्धभुत करूणा की है। 22 मैं ने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की दृष्टि से दूर हो गया। तौभी जब मैं ने तेरी दोहाई दी, तब तू ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुन लिया॥ 23 हे यहोवा के सब भक्तों उससे प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगों की तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भांति बदला देता है। 24 हे यहोवा परआशा रखने वालों हियाव बान्धो और तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें!
1 हे यहोवा मेरा भरोसा तुझ पर है; मुझे कभी लज्जित होना न पड़े; तू अपने धर्मी होने के कारण मुझे छुड़ा ले! .::. 2 अपना कान मेरी ओर लगाकर तुरन्त मुझे छुड़ा ले! .::. 3 क्योंकि तू मेरे लिये चट्टान और मेरा गढ़ है; इसलिये अपने नाम के निमित्त मेरी अगुवाई कर, और मुझे आगे ले चल। .::. 4 जो जाल उन्होंने मेरे लिये बिछाया है उससे तू मुझ को छुड़ा ले, क्योंकि तू ही मेरा दृढ़ गढ़ है। .::. 5 मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं; हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है॥ .::. 6 जो व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, उन से मैं घृणा करता हूं; परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। .::. 7 मैं तेरी करूणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तू ने मेरी सुधि ली है, .::. 8 और तू ने मुझे शत्रु के हाथ में पड़ने नहीं दिया; तू ने मेरे पांवों को चौड़े स्थान में खड़ा किया है॥ .::. 9 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर क्योंकि मैं संकट में हूं; मेरी आंखे वरन मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। .::. 10 मेरा जीवन शोक के मारे और मेरी अवस्था कराहते कराहते घट चली है; मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रह, और मेरी हडि्डयां घुल गई॥ .::. 11 अपने सब विरोधियों के कारण मेरे पड़ोसियों में मेरी नामधराई हुई है, अपने जान पहिचान वालों के लिये डर का कारण हूं; जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझ से दूर भाग जाते हैं। .::. 12 मैं मृतक की नाईं लोगों के मन से बिसर गया; मैं टूटे बर्तन के समान हो गया हूं। .::. 13 मैं ने बहुतों के मुंह से अपना अपवाद सुना, चारों ओर भय ही भय है! जब उन्होंने मेरे विरुद्ध आपस में सम्मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की॥ .::. 14 परन्तु हे यहोवा मैं ने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैं ने कहा, तू मेरा परमेश्वर है। .::. 15 मेरे दिन तेरे हाथ में है; तू मुझे मेरे शत्रुओं और मेरे सताने वालों के हाथ से छुड़ा। .::. 16 अपने दास पर अपने मुंह का प्रकाश चमका; अपनी करूणा से मेरा उद्धार कर॥ .::. 17 हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे क्योंकि मैं ने तुझ को पुकारा है; दुष्ट लज्जित हों और वे पाताल में चुपचाप पड़े रहें। .::. 18 जो अंहकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं, उनके झूठ बोलने वाले मुंह बन्द किए जाएं॥ .::. 19 आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है जो तू ने अपने डरवैयों के लिये रख छोड़ी है, और अपने शरणागतों के लिये मनुष्यों के साम्हने प्रगट भी की है! .::. 20 तू उन्हें दर्शन देने के गुप्त स्थान में मनुष्यों की बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; तू उन को अपने मण्डप में झगड़े-रगड़े से छिपा रखेगा॥ .::. 21 यहोवा धन्य है, क्योंकि उसने मुझे गढ़ वाले नगर में रखकर मुझ पर अद्धभुत करूणा की है। .::. 22 मैं ने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की दृष्टि से दूर हो गया। तौभी जब मैं ने तेरी दोहाई दी, तब तू ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुन लिया॥ .::. 23 हे यहोवा के सब भक्तों उससे प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगों की तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भांति बदला देता है। .::. 24 हे यहोवा परआशा रखने वालों हियाव बान्धो और तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें!
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