पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
इब्रानियों

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इब्रानियों अध्याय 13

1. भाईचारे की प्रीति बनी रहे। 2. पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की है। 3. कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है। 4. विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा। 5. तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। 6. इसलिये हम बेधड़क होकर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है॥ 7. जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो। 8. यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है। 9. नाना प्रकार के और ऊपक्की उपदेशों से न भरमाए जाओ, क्योंकि मन का अनुग्रह से दृढ़ रहना भला है, न कि उन खाने की वस्तुओं से जिन से काम रखने वालों को कुछ लाभ न हुआ। 10. हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिकार उन लोगों को नहीं, जो तम्बू की सेवा करते हैं। 11. क्योंकि जिन पशुओं का लोहू महायाजक पाप-बलि के लिये पवित्र स्थान में ले जाता है, उन की देह छावनी के बाहर जलाई जाती है। 12. इसी कारण, यीशु ने भी लोगों को अपने ही लोहू के द्वारा पवित्र करने के लिये फाटक के बाहर दुख उठाया। 13. सो आओ उस की निन्दा अपने ऊपर लिए हुए छावनी के बाहर उसके पास निकल चलें। 14. क्योंकि यहां हमारा कोई स्थिर रहने वाला नगर नहीं, वरन हम एक आने वाले नगर की खोज में हैं। 15. इसलिये हम उसके द्वारा स्तुति रूपी बलिदान, अर्थात उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें। 16. पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है। 17. अपने अगुवों की मानो; और उनके आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं। 18. हमारे लिये प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है; और हम सब बातों में अच्छी चाल चलना चाहते हैं। 19. और इस के करने के लिये मैं तुम्हें और भी समझाता हूं, कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूं॥ 20. अब शान्तिदाता परमेश्वर जो हमारे प्रभु यीशु को जो भेड़ों का महान रखवाला है सनातन वाचा के लोहू के गुण से मरे हुओं में से जिला कर ले आया। 21. तुम्हें हर एक भली बात में सिद्ध करे, जिस से तुम उस की इच्छा पूरी करो, और जो कुछ उस को भाता है, उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में उत्पन्न करे, जिस की बड़ाई युगानुयुग होती रहे। आमीन॥ 22. हे भाइयों मैं तुम से बिनती करता हूं, कि इन उपदेश की बातों को सह लो; क्योंकि मैं ने तुम्हें बहुत संक्षेप में लिखा है। 23. तुम यह जान लो कि तीमुथियुस हमारा भाई छूट गया है और यदि वह शीघ्र आ गया, तो मैं उसके साथ तुम से भेंट करूंगा। 24. अपने सब अगुवों और सब पवित्र लोगों को नमस्कार कहो। इतालिया वाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं॥ 25. तुम सब पर अनुग्रह होता रहे। आमीन॥
1. भाईचारे की प्रीति बनी रहे। .::. 2. पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की है। .::. 3. कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है। .::. 4. विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा। .::. 5. तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। .::. 6. इसलिये हम बेधड़क होकर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है॥ .::. 7. जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो। .::. 8. यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है। .::. 9. नाना प्रकार के और ऊपक्की उपदेशों से न भरमाए जाओ, क्योंकि मन का अनुग्रह से दृढ़ रहना भला है, न कि उन खाने की वस्तुओं से जिन से काम रखने वालों को कुछ लाभ न हुआ। .::. 10. हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिकार उन लोगों को नहीं, जो तम्बू की सेवा करते हैं। .::. 11. क्योंकि जिन पशुओं का लोहू महायाजक पाप-बलि के लिये पवित्र स्थान में ले जाता है, उन की देह छावनी के बाहर जलाई जाती है। .::. 12. इसी कारण, यीशु ने भी लोगों को अपने ही लोहू के द्वारा पवित्र करने के लिये फाटक के बाहर दुख उठाया। .::. 13. सो आओ उस की निन्दा अपने ऊपर लिए हुए छावनी के बाहर उसके पास निकल चलें। .::. 14. क्योंकि यहां हमारा कोई स्थिर रहने वाला नगर नहीं, वरन हम एक आने वाले नगर की खोज में हैं। .::. 15. इसलिये हम उसके द्वारा स्तुति रूपी बलिदान, अर्थात उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें। .::. 16. पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है। .::. 17. अपने अगुवों की मानो; और उनके आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं। .::. 18. हमारे लिये प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है; और हम सब बातों में अच्छी चाल चलना चाहते हैं। .::. 19. और इस के करने के लिये मैं तुम्हें और भी समझाता हूं, कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूं॥ .::. 20. अब शान्तिदाता परमेश्वर जो हमारे प्रभु यीशु को जो भेड़ों का महान रखवाला है सनातन वाचा के लोहू के गुण से मरे हुओं में से जिला कर ले आया। .::. 21. तुम्हें हर एक भली बात में सिद्ध करे, जिस से तुम उस की इच्छा पूरी करो, और जो कुछ उस को भाता है, उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में उत्पन्न करे, जिस की बड़ाई युगानुयुग होती रहे। आमीन॥ .::. 22. हे भाइयों मैं तुम से बिनती करता हूं, कि इन उपदेश की बातों को सह लो; क्योंकि मैं ने तुम्हें बहुत संक्षेप में लिखा है। .::. 23. तुम यह जान लो कि तीमुथियुस हमारा भाई छूट गया है और यदि वह शीघ्र आ गया, तो मैं उसके साथ तुम से भेंट करूंगा। .::. 24. अपने सब अगुवों और सब पवित्र लोगों को नमस्कार कहो। इतालिया वाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं॥ .::. 25. तुम सब पर अनुग्रह होता रहे। आमीन॥
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