पवित्र बाइबिल

इंडियन रिवाइज्ड वर्शन (ISV)
1 राजा

1 राजा अध्याय 6

मन्दिर का निर्माण 1 इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नामक दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। 2 जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी। (प्रेरि. 7:47) 3 और भवन के मन्दिर के सामने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात् भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के सामने थी, वह दस हाथ की थी। 4 फिर उसने भवन में चौखट सहित जालीदार खिड़कियाँ बनाईं। 5 और उसने भवन के आस-पास की दीवारों से सटे हुए अर्थात् मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों दीवारों के आस-पास उसने मंजिलें और कोठरियाँ बनाई। 6 सबसे नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पाँच हाथ, और बीचवाली की छः हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उसने भवन के आस-पास दीवारों को बाहर की ओर कुर्सीदार बनाया था इसलिए कि कड़ियाँ भवन की दीवारों को पकड़े हुए न हों। 7 बनाते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहाँ ले आने से पहले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े, बसूली या और किसी प्रकार के लोहे के औज़ार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। 8 बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी ओर था, और लोग चक्करदार सीढ़ियों पर होकर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उनसे ऊपरवाली कोठरियों पर जाया करते थे। 9 उसने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदार की कड़ियों और तख्तों से बनी थी। 10 और पूरे भवन से लगी हुई जो मंजिलें उसने बनाईं वह पाँच हाथ ऊँची थीं, और वे देवदार की कड़ियों के द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। 11 तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुँचा, 12 “यह भवन जो तू बना रहा है, यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैंने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूँगा। 13 और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूँगा*, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूँगा।” 14 अतः सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। (प्रेरि. 7:47) 15 उसने भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक दीवारों पर भीतर की ओर लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उसने सनोवर के तख्तो से बनाया। 16 और भवन के पीछे की ओर में भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले दीवारों के ऊपर तक देवदार की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। 17 उसके सामने का भवन अर्थात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। 18 भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की लकड़ी की तख्ताबंदी थी, और उसमें कलियाँ और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदार ही था : पत्थर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। 19 भवन के भीतर उसने एक पवित्रस्‍थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। 20 और उस पवित्र-स्थान की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई बीस-बीस हाथ की थी; और उसने उस पर उत्तम सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदार से की। 21 फिर सुलैमान ने भवन को भीतर-भीतर शुद्ध सोने से मढ़वाया, और पवित्र-स्थान के सामने सोने की साँकलें* लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। 22 और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका काम पूरा किया। और पवित्र-स्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। 23 पवित्र-स्थान में उसने दस-दस हाथ ऊँचे जैतून की लकड़ी के दो करूब बना रखे। 24 एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ का था, एक पंख के सिरे से, दूसरे पंख के सिरे तक लम्बाई दस हाथ थी। 25 दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। 26 एक करूब की ऊँचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। 27 उसने करूबों को भीतरवाले स्थान में रखवा दिया; और करूबों के पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक दीवार से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी दीवार से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे को स्पर्श करते थे। 28 उसने करूबों को सोने से मढ़वाया। 29 उसने भवन की दीवारों पर बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए। 30 भवन के भीतर और बाहरवाली कोठरी के फर्श उसने सोने से मढ़वाए। 31 पवित्र-स्थान के प्रवेश-द्वार के लिये उसने जैतून की लकड़ी के दरवाज़े लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की बनावट पंचकोणीय थी। 32 दोनों किवाड़ जैतून की लकड़ी के थे, और उसने उनमें करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया*। 33 इसी की रीति उसने मन्दिर के प्रवेश-द्वार के लिये भी जैतून की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए, ये चौकोर थे। 34 दोनों दरवाज़े सनोवर की लकड़ी के थे, जिनमें से एक दरवाज़े के दो पल्ले थे; और दूसरे दरवाज़े के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। 35 उन पर भी उसने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। 36 उसने भीतरवाले आँगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और एक परत देवदार की कड़ियाँ लगाकर बनाया। 37 चौथे वर्ष के जीव नामक महीने में यहोवा के भवन की नींव डाली गई। 38 और ग्यारहवें वर्ष के बूल नामक आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उसमें उचित समझा गया बन चुकाः इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।
1. {#1मन्दिर का निर्माण } इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नामक दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। 2. जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी। (प्रेरि. 7:47) 3. और भवन के मन्दिर के सामने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात् भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के सामने थी, वह दस हाथ की थी। 4. फिर उसने भवन में चौखट सहित जालीदार खिड़कियाँ बनाईं। 5. और उसने भवन के आस-पास की दीवारों से सटे हुए अर्थात् मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों दीवारों के आस-पास उसने मंजिलें और कोठरियाँ बनाई। 6. सबसे नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पाँच हाथ, और बीचवाली की छः हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उसने भवन के आस-पास दीवारों को बाहर की ओर कुर्सीदार बनाया था इसलिए कि कड़ियाँ भवन की दीवारों को पकड़े हुए न हों। 7. बनाते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहाँ ले आने से पहले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े, बसूली या और किसी प्रकार के लोहे के औज़ार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। 8. बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी ओर था, और लोग चक्करदार सीढ़ियों पर होकर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उनसे ऊपरवाली कोठरियों पर जाया करते थे। 9. उसने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदार की कड़ियों और तख्तों से बनी थी। 10. और पूरे भवन से लगी हुई जो मंजिलें उसने बनाईं वह पाँच हाथ ऊँची थीं, और वे देवदार की कड़ियों के द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। 11. तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुँचा, 12. “यह भवन जो तू बना रहा है, यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैंने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूँगा। 13. और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूँगा*, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूँगा।” 14. अतः सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। (प्रेरि. 7:47) 15. उसने भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक दीवारों पर भीतर की ओर लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उसने सनोवर के तख्तो से बनाया। 16. और भवन के पीछे की ओर में भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले दीवारों के ऊपर तक देवदार की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। 17. उसके सामने का भवन अर्थात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। 18. भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की लकड़ी की तख्ताबंदी थी, और उसमें कलियाँ और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदार ही था : पत्थर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। 19. भवन के भीतर उसने एक पवित्रस्‍थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। 20. और उस पवित्र-स्थान की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई बीस-बीस हाथ की थी; और उसने उस पर उत्तम सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदार से की। 21. फिर सुलैमान ने भवन को भीतर-भीतर शुद्ध सोने से मढ़वाया, और पवित्र-स्थान के सामने सोने की साँकलें* लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। 22. और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका काम पूरा किया। और पवित्र-स्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। 23. पवित्र-स्थान में उसने दस-दस हाथ ऊँचे जैतून की लकड़ी के दो करूब बना रखे। 24. एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ का था, एक पंख के सिरे से, दूसरे पंख के सिरे तक लम्बाई दस हाथ थी। 25. दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। 26. एक करूब की ऊँचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। 27. उसने करूबों को भीतरवाले स्थान में रखवा दिया; और करूबों के पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक दीवार से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी दीवार से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे को स्पर्श करते थे। 28. उसने करूबों को सोने से मढ़वाया। 29. उसने भवन की दीवारों पर बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए। 30. भवन के भीतर और बाहरवाली कोठरी के फर्श उसने सोने से मढ़वाए। 31. पवित्र-स्थान के प्रवेश-द्वार के लिये उसने जैतून की लकड़ी के दरवाज़े लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की बनावट पंचकोणीय थी। 32. दोनों किवाड़ जैतून की लकड़ी के थे, और उसने उनमें करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया*। 33. इसी की रीति उसने मन्दिर के प्रवेश-द्वार के लिये भी जैतून की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए, ये चौकोर थे। 34. दोनों दरवाज़े सनोवर की लकड़ी के थे, जिनमें से एक दरवाज़े के दो पल्ले थे; और दूसरे दरवाज़े के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। 35. उन पर भी उसने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। 36. उसने भीतरवाले आँगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और एक परत देवदार की कड़ियाँ लगाकर बनाया। 37. चौथे वर्ष के जीव नामक महीने में यहोवा के भवन की नींव डाली गई। 38. और ग्यारहवें वर्ष के बूल नामक आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उसमें उचित समझा गया बन चुकाः इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।
  • 1 राजा अध्याय 1  
  • 1 राजा अध्याय 2  
  • 1 राजा अध्याय 3  
  • 1 राजा अध्याय 4  
  • 1 राजा अध्याय 5  
  • 1 राजा अध्याय 6  
  • 1 राजा अध्याय 7  
  • 1 राजा अध्याय 8  
  • 1 राजा अध्याय 9  
  • 1 राजा अध्याय 10  
  • 1 राजा अध्याय 11  
  • 1 राजा अध्याय 12  
  • 1 राजा अध्याय 13  
  • 1 राजा अध्याय 14  
  • 1 राजा अध्याय 15  
  • 1 राजा अध्याय 16  
  • 1 राजा अध्याय 17  
  • 1 राजा अध्याय 18  
  • 1 राजा अध्याय 19  
  • 1 राजा अध्याय 20  
  • 1 राजा अध्याय 21  
  • 1 राजा अध्याय 22  
×

Alert

×

Hindi Letters Keypad References