पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
1 पतरस

1 पतरस अध्याय 4

बदला हुआ जीवन 1 इसलिए जब कि मसीह ने शरीर में होकर दुःख उठाया तो तुम भी उसी मनसा को हथियार के समान धारण करो, क्योंकि जिसने शरीर में दुःख उठाया, वह पाप से छूट गया, 2 ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन् परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो। 3 4 क्योंकि अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्ति पूजा में जहाँ तक हमने पहले से समय गँवाया, वही बहुत हुआ। इससे वे अचम्भा करते हैं, कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उनका साथ नहीं देते, और इसलिए वे बुरा-भला कहते हैं। 5 पर वे उसको जो जीवितों और मरे हुओं का न्याय करने को तैयार हैं, लेखा देंगे*। (2 तीमु. 4:1) 6 क्योंकि मरे हुओं को भी सुसमाचार इसलिए सुनाया गया, कि शरीर में तो मनुष्यों के अनुसार उनका न्याय हुआ, पर आत्मा में वे परमेश्‍वर के अनुसार जीवित रहें। 7 {परमेश्‍वर की महिमा के लिये सेवा } सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिए संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। (याकू. 5:8, इफि. 6:18) 8 सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है*। (नीति. 10:12) 9 बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो। 10 जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। 11 यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्‍वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्ति से करे जो परमेश्‍वर देता है; जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्‍वर की महिमा प्रगट हो। महिमा और सामर्थ्य युगानुयुग उसी की है। आमीन। 12 {परमेश्‍वर की महिमा के लिये दुःख उठाना } हे प्रियों, जो दुःख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इससे यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है। 13 पर जैसे-जैसे मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो*, जिससे उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्दित और मगन हो। 14 फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य हो; क्योंकि महिमा की आत्मा, जो परमेश्‍वर की आत्मा है, तुम पर छाया करती है। (मत्ती 5:11-12) 15 तुम में से कोई व्यक्ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुःख न पाए। 16 पर यदि मसीही होने के कारण दुःख पाए, तो लज्जित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्‍वर की महिमा करे। 17 क्योंकि वह समय आ पहुँचा है, कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उनका क्या अन्त होगा जो परमेश्‍वर के सुसमाचार को नहीं मानते? (इब्रा. 12:24-25, यिर्म. 25:29, यहे. 9:6) 18 और “यदि धर्मी व्यक्ति ही कठिनता से उद्धार पाएगा, तो भक्तिहीन और पापी का क्या ठिकाना?” (नीति. 11:31) 19 इसलिए जो परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार दुःख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने-अपने प्राण को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें।
बदला हुआ जीवन 1 इसलिए जब कि मसीह ने शरीर में होकर दुःख उठाया तो तुम भी उसी मनसा को हथियार के समान धारण करो, क्योंकि जिसने शरीर में दुःख उठाया, वह पाप से छूट गया, .::. 2 ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन् परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो। .::. 3 .::. 4 क्योंकि अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्ति पूजा में जहाँ तक हमने पहले से समय गँवाया, वही बहुत हुआ। इससे वे अचम्भा करते हैं, कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उनका साथ नहीं देते, और इसलिए वे बुरा-भला कहते हैं। .::. 5 पर वे उसको जो जीवितों और मरे हुओं का न्याय करने को तैयार हैं, लेखा देंगे*। (2 तीमु. 4:1) .::. 6 क्योंकि मरे हुओं को भी सुसमाचार इसलिए सुनाया गया, कि शरीर में तो मनुष्यों के अनुसार उनका न्याय हुआ, पर आत्मा में वे परमेश्‍वर के अनुसार जीवित रहें। .::. 7 {परमेश्‍वर की महिमा के लिये सेवा } सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिए संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। (याकू. 5:8, इफि. 6:18) .::. 8 सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है*। (नीति. 10:12) .::. 9 बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो। .::. 10 जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। .::. 11 यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्‍वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्ति से करे जो परमेश्‍वर देता है; जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्‍वर की महिमा प्रगट हो। महिमा और सामर्थ्य युगानुयुग उसी की है। आमीन। .::. 12 {परमेश्‍वर की महिमा के लिये दुःख उठाना } हे प्रियों, जो दुःख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इससे यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है। .::. 13 पर जैसे-जैसे मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो*, जिससे उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्दित और मगन हो। .::. 14 फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य हो; क्योंकि महिमा की आत्मा, जो परमेश्‍वर की आत्मा है, तुम पर छाया करती है। (मत्ती 5:11-12) .::. 15 तुम में से कोई व्यक्ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुःख न पाए। .::. 16 पर यदि मसीही होने के कारण दुःख पाए, तो लज्जित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्‍वर की महिमा करे। .::. 17 क्योंकि वह समय आ पहुँचा है, कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उनका क्या अन्त होगा जो परमेश्‍वर के सुसमाचार को नहीं मानते? (इब्रा. 12:24-25, यिर्म. 25:29, यहे. 9:6) .::. 18 और “यदि धर्मी व्यक्ति ही कठिनता से उद्धार पाएगा, तो भक्तिहीन और पापी का क्या ठिकाना?” (नीति. 11:31) .::. 19 इसलिए जो परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार दुःख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने-अपने प्राण को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें।
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