पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
यहेजकेल

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यहेजकेल अध्याय 43

1. फिर वह मुझ को उस फाटक के पास ले गया जो पूर्वमुखी था। 2. तब इस्राएल के परमेश्वर का तेज पूर्व दिशा से आया; और उसकी वाणी बहुत से जल की घरघराहट सी हुई; और उसके तेज से पृथ्वी प्रकाशित हुई। 3. और यह दर्शन उस दर्शन के तुल्य था, जो मैं ने उसे नगर के नाश करने को आते समय देखा था; और उस दर्शन के समान, जो मैं ने कबार नदी के तीर पर देखा था; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा। 4. तब यहोवा का तेज उस फाटक से हो कर जो पूर्वमुखी था, भवन में आ गया। 5. तब आत्मा ने मुझे उठा कर भीतरी आंगन में पहुंचाया; और यहोवा का तेज भवन में भरा था। 6. तब मैं ने एक जन का शब्द सुना, जो भवन में से मुझ से बोल रहा था, और वह पुरुष मेरे पास खड़ा था। 7. उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यहोवा की यह वाणी है, यह तो मेरे सिंहासन का स्थान और मेरे पांव रखने की जगह है, जहां मैं इस्राएल के बीच सदा वास किए रहूंगा। और न तो इस्राएल का घराना, और न उसके राजा अपने व्यभिचार से, वा अपने ऊंचे स्थानों में अपने राजाओं की लोथों के द्वारा मेरा पवित्र नाम फिर अशुद्ध ठहराएंगे। 8. वे अपनी डेवढ़ी मेरी डेवढ़ी के पास, और अपने द्वार के खम्भे मेरे द्वार के खम्भों के निकट बनाते थे, और मेरे और उनके बीच केवल भीत ही थी, और उन्होंने अपने घिनौने कामों से मेरा पवित्र नाम अशुद्ध ठहराया था; इसलिये मैं ने कोप कर के उन्हें नाश किया। 9. अब वे अपना व्यभिचार और अपने राजाओं की लोथें मेरे सम्मुख से दूर कर दें, तब मैं उनके बीच सदा वास किए रहूंगा। 10. हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने को इस भवन का नमूना दिखा कि वे अपने अधर्म के कामों से लज्जित हो कर उस नमूने को मापें। 11. और यदि वे अपने सारे कामों से लज्जित हों, तो उन्हें इस भवन का आकार और स्वरूप, और इसके बाहर भीतर आने जाने के मार्ग, और इसके सब आकार और विधियां, और नियम बतलाना, और उनके साम्हने लिख रखना; जिस से वे इसका सब आकार और इसकी सब विधियां स्मरण कर के उनके अनुसार करें। 12. भवन का नियम यह है कि पहाड़ की चोटी के चारों ओर का सम्पूर्ण भाग परमपवित्र है। देख भवन का नियम यही है। 13. और ऐसे हाथ के माप से जो साधारण हाथ से चौवा भर अधिक हो, वेदी की माप यह है, अर्थात उसका आधार एक हाथ का, और उसकी चौड़ाई एक हाथ की, और उसके चारों ओर की छोर पर की पटरी एक चौवे की। और वेदी की ऊंचाई यह है: 14. भूमि पर धरे हुए आधार से ले कर निचली कुसीं तक दो हाथ की ऊंचाई रहे, और उसकी चौड़ाई हाथ भर की हो; और छोटी कुसीं से ले कर बड़ी कुसीं तक चार हाथ हों और उसकी चौड़ाई हाथ भर की हो; 15. और उपरला भाग चार हाथ ऊंचा हो; और वेदी पर जलाने के स्थान के चार सींग ऊपर की ओर निकले हों। 16. और वेदी पर जलाने का स्थान चौकोर अर्थात बारह हाथ लम्बा और बारह हाथ चौड़ा हो। 17. और निचली कुसीं चौदह हाथ लम्बी और चौदह चौड़ी हो, और उसके चारों ओर की पटरी आधे हाथ की हो, और उसका आधर चारों ओर हाथ भर का हो। उसकी सीढ़ी उसकी पूर्व ओर हो। 18. फिर उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, जिस दिन होमबलि चढ़ाने और लोहू छिड़कने के लिये वेदी बनाईं जाए, उस दिन की विधियां ये ठहरें: 19. अर्थात लेवीय याजक लोग, जो सादोक की सन्तान हैं, और मेरी सेवा टहल करने को मेरे समीप रहते हैं, उन्हें तू पापबलि के लिये एक बछड़ा देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है। 20. तब तू उसके लोहू में से कुछ ले कर वेदी के चारों सींगों और कुसीं के चारों कोनों और चारों ओर की पटरी पर लगाना; इस प्रकार से उसके लिये प्रायश्चित्त करने के द्वारा उसको पवित्र करना। 21. तब पापबलि के बछड़े को ले कर, भवन के पवित्रस्थान के बाहर ठहराए हुए स्थान में जला देना। 22. और दूसरे दिन एक निर्दोष बकरा पापबलि कर के चढ़ाना; और जैसे बछड़े के द्वारा वेदी पवित्र की जाए, वैसे ही वह इस बकरे के द्वारा भी पवित्र की जाएगी। 23. जब तू उसे पवित्र कर चूके, तब एक निर्दोष बछड़ा और एक निर्दोष मेढ़ा चढ़ाना। 24. तू उन्हें यहोवा के साम्हने ले आना, और याजक लोग उन पर लोन डाल कर उन्हें यहोवा को होमबलि कर के चढ़ाएं। 25. सात दिन तक तू प्रति दिन पापबलि के लिये एक बकरा तैयार करना, और निर्दोष बछड़ा और भेड़ों में से निर्दोष मेढ़ा भी तैयार किया जाए। 26. सात दिन तक याजक लोग वेदी के लिये प्रायश्चित्त कर के उसे शुद्ध करते रहें; इसी भांति उसका संस्कार हो। 27. और जब वे दिन समाप्त हों, तब आठवें दिन के बाद से याजक लोग तुम्हारे होमबलि और मेलबलि वेदी पर चढ़ाया करें; तब मैं तुम से प्रसन्न हूंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
1. फिर वह मुझ को उस फाटक के पास ले गया जो पूर्वमुखी था। .::. 2. तब इस्राएल के परमेश्वर का तेज पूर्व दिशा से आया; और उसकी वाणी बहुत से जल की घरघराहट सी हुई; और उसके तेज से पृथ्वी प्रकाशित हुई। .::. 3. और यह दर्शन उस दर्शन के तुल्य था, जो मैं ने उसे नगर के नाश करने को आते समय देखा था; और उस दर्शन के समान, जो मैं ने कबार नदी के तीर पर देखा था; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा। .::. 4. तब यहोवा का तेज उस फाटक से हो कर जो पूर्वमुखी था, भवन में आ गया। .::. 5. तब आत्मा ने मुझे उठा कर भीतरी आंगन में पहुंचाया; और यहोवा का तेज भवन में भरा था। .::. 6. तब मैं ने एक जन का शब्द सुना, जो भवन में से मुझ से बोल रहा था, और वह पुरुष मेरे पास खड़ा था। .::. 7. उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यहोवा की यह वाणी है, यह तो मेरे सिंहासन का स्थान और मेरे पांव रखने की जगह है, जहां मैं इस्राएल के बीच सदा वास किए रहूंगा। और न तो इस्राएल का घराना, और न उसके राजा अपने व्यभिचार से, वा अपने ऊंचे स्थानों में अपने राजाओं की लोथों के द्वारा मेरा पवित्र नाम फिर अशुद्ध ठहराएंगे। .::. 8. वे अपनी डेवढ़ी मेरी डेवढ़ी के पास, और अपने द्वार के खम्भे मेरे द्वार के खम्भों के निकट बनाते थे, और मेरे और उनके बीच केवल भीत ही थी, और उन्होंने अपने घिनौने कामों से मेरा पवित्र नाम अशुद्ध ठहराया था; इसलिये मैं ने कोप कर के उन्हें नाश किया। .::. 9. अब वे अपना व्यभिचार और अपने राजाओं की लोथें मेरे सम्मुख से दूर कर दें, तब मैं उनके बीच सदा वास किए रहूंगा। .::. 10. हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने को इस भवन का नमूना दिखा कि वे अपने अधर्म के कामों से लज्जित हो कर उस नमूने को मापें। .::. 11. और यदि वे अपने सारे कामों से लज्जित हों, तो उन्हें इस भवन का आकार और स्वरूप, और इसके बाहर भीतर आने जाने के मार्ग, और इसके सब आकार और विधियां, और नियम बतलाना, और उनके साम्हने लिख रखना; जिस से वे इसका सब आकार और इसकी सब विधियां स्मरण कर के उनके अनुसार करें। .::. 12. भवन का नियम यह है कि पहाड़ की चोटी के चारों ओर का सम्पूर्ण भाग परमपवित्र है। देख भवन का नियम यही है। .::. 13. और ऐसे हाथ के माप से जो साधारण हाथ से चौवा भर अधिक हो, वेदी की माप यह है, अर्थात उसका आधार एक हाथ का, और उसकी चौड़ाई एक हाथ की, और उसके चारों ओर की छोर पर की पटरी एक चौवे की। और वेदी की ऊंचाई यह है: .::. 14. भूमि पर धरे हुए आधार से ले कर निचली कुसीं तक दो हाथ की ऊंचाई रहे, और उसकी चौड़ाई हाथ भर की हो; और छोटी कुसीं से ले कर बड़ी कुसीं तक चार हाथ हों और उसकी चौड़ाई हाथ भर की हो; .::. 15. और उपरला भाग चार हाथ ऊंचा हो; और वेदी पर जलाने के स्थान के चार सींग ऊपर की ओर निकले हों। .::. 16. और वेदी पर जलाने का स्थान चौकोर अर्थात बारह हाथ लम्बा और बारह हाथ चौड़ा हो। .::. 17. और निचली कुसीं चौदह हाथ लम्बी और चौदह चौड़ी हो, और उसके चारों ओर की पटरी आधे हाथ की हो, और उसका आधर चारों ओर हाथ भर का हो। उसकी सीढ़ी उसकी पूर्व ओर हो। .::. 18. फिर उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, जिस दिन होमबलि चढ़ाने और लोहू छिड़कने के लिये वेदी बनाईं जाए, उस दिन की विधियां ये ठहरें: .::. 19. अर्थात लेवीय याजक लोग, जो सादोक की सन्तान हैं, और मेरी सेवा टहल करने को मेरे समीप रहते हैं, उन्हें तू पापबलि के लिये एक बछड़ा देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है। .::. 20. तब तू उसके लोहू में से कुछ ले कर वेदी के चारों सींगों और कुसीं के चारों कोनों और चारों ओर की पटरी पर लगाना; इस प्रकार से उसके लिये प्रायश्चित्त करने के द्वारा उसको पवित्र करना। .::. 21. तब पापबलि के बछड़े को ले कर, भवन के पवित्रस्थान के बाहर ठहराए हुए स्थान में जला देना। .::. 22. और दूसरे दिन एक निर्दोष बकरा पापबलि कर के चढ़ाना; और जैसे बछड़े के द्वारा वेदी पवित्र की जाए, वैसे ही वह इस बकरे के द्वारा भी पवित्र की जाएगी। .::. 23. जब तू उसे पवित्र कर चूके, तब एक निर्दोष बछड़ा और एक निर्दोष मेढ़ा चढ़ाना। .::. 24. तू उन्हें यहोवा के साम्हने ले आना, और याजक लोग उन पर लोन डाल कर उन्हें यहोवा को होमबलि कर के चढ़ाएं। .::. 25. सात दिन तक तू प्रति दिन पापबलि के लिये एक बकरा तैयार करना, और निर्दोष बछड़ा और भेड़ों में से निर्दोष मेढ़ा भी तैयार किया जाए। .::. 26. सात दिन तक याजक लोग वेदी के लिये प्रायश्चित्त कर के उसे शुद्ध करते रहें; इसी भांति उसका संस्कार हो। .::. 27. और जब वे दिन समाप्त हों, तब आठवें दिन के बाद से याजक लोग तुम्हारे होमबलि और मेलबलि वेदी पर चढ़ाया करें; तब मैं तुम से प्रसन्न हूंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
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