पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
2 राजा

2 राजा अध्याय 6

1 और भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से किसी ने एलीशा से कहा, यह स्थान जिस में हम तेरे साम्हने रहते हैं, वह हमारे लिये सकेत है। 2 इसलिये हम यरदन तक जाएं, और वहां से एक एक बल्ली ले कर, यहां अपने रहने के लिये एक स्थान बना लें; उसने कहा, अच्छा जाओ। 3 तब किसी ने कहा, अपने दासों के संग चलने को प्रसन्न हो, उसने कहा, चलता हूँ। 4 तो वह उनके संग चला और वे यरदन के तीर पहुंच कर लकड़ी काटने लगे। 5 परन्तु जब एक जन बल्ली काट रहा था, तो कुल्हाड़ी बेंट से निकल कर जल में गिर गई; सो वह चिल्ला कर कहने लगा, हाय! मेरे प्रभु, वह तो मंगनी की थी। 6 परमेश्वर के भक्त ने पूछा, वह कहां गिरी? जब उसने स्थान दिखाया, तब उसने एक लकड़ी काट कर वहां डाल दी, और वह लोहा पानी पर तैरने लगा। 7 उसने कहा, उसे उठा ले, तब उसने हाथ बढ़ा कर उसे ले लिया। 8 ओैर अराम का जाजा इस्राएल से युद्ध कर रहा था, और सम्मति कर के अपने कर्मचारियों से कहा, कि अमुक स्थान पर मेरी छावनी होगी। 9 तब परमेश्वर के भक्त ने इस्राएल के राजा के पास कहला भेजा, कि चौकसी कर और अमुक स्थान से हो कर न जाना क्योंकि वहां अरामी चढ़ाई करने वाले हैं। 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्थान को, जिसकी चर्चा कर के परमेश्वर के भक्त ने उसे चिताया था, भेज कर, अपनी रक्षा की; और उस प्रकार एक दो बार नहीं वरन बहुत बार हुआ। 11 इस कारण अराम के राजा का मन बहुत घबरा गया; सो उसने अपने कर्मचारियों को बुला कर उन से पूछा, क्या तुम मुझे न बताओगे कि हम लोगों में से कौन इस्राएल के राजा की ओर का है? उसके एक कर्मचारी ने कहा, हे मेरे प्रभु! हे राजा! ऐसा नहीं, 12 एलीशा जो इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है, वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है, जो तू शयन की कोठरी में बोलता है। 13 राजा ने कहा, जा कर देखो कि वह कहां है, तब मैं भेज कर उसे पकड़वा मंगाऊंगा। और उसको यह समाचार मिला कि वह दोतान में है। 14 तब उसने वहां घोड़ों और रथों समेत एक भारी दल भेजा, और उन्होंने रात को आकर नगर को घेर लिया। 15 भोर को परमेश्वर के भक्त का टहलुआ उठा और निकल कर क्या देखता है कि घोड़ों और रथों समेत एक दल नगर को घेरे हुए पड़ा है। और उसके सेवक ने उस से कहा, हाय! मेरे स्वामी, हम क्या करें? 16 उसने कहा, मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं। 17 तब एलीशा ने यह प्रार्थना की, हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आंखें खोल दीं, और जब वह देख सका, तब क्या देखा, कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ों और रथों से भरा हुआ है। 18 जब अरामी उसके पास आए, तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की कि इस दल को अन्धा कर डाल। एलीशा के इस वचन के अनुसार उसने उन्हें अन्धा कर दिया। 19 तब एलीशा ने उन से कहा, यह तो मार्ग नहीं है, और न यह नगर है, मेरे पीछे हो लो; मैं तुम्हें उस मनुष्य के पास जिसे तुम ढूंढ़ रहे हो पहुंचाऊंगा। तब उसने उन्हें शोमरोन को पहुंचा दिया। 20 जब वे शोमरोन में आ गए, तब एलीशा ने कहा, हे यहोवा, इन लोगों की आंखें खोल कि देख सकें। तब यहोवा ने उनकी आंखें खोलीं, और जब वे देखने लगे तब क्या देखा कि हम शोमरोन के मध्य में हैं। 21 उन को देखकर इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, हे मेरे पिता, क्या मैं इन को मार लूं? मैं उन को मार लूं? 22 उसने उत्तर दिया, मत मार। क्या तू उन को मार दिया करता है, जिन को तू तलवार और धनुष से बन्धुआ बना लेता है? तू उन को अन्न जल दे, कि खा पीकर अपने स्वामी के पास चले जाएं। 23 तब उसने उनके लिये बड़ी जेवनार की, और जब वे खा पी चुके, तब उसने उन्हें बिदा किया, और वे अपने स्वामी के पास चले गए। इसके बाद अराम के दल इस्राएल के देश में फिर न आए। 24 परन्तु इसके बाद अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी समस्त सेना इकट्ठी कर के, शोमरोन पर चढ़ाई कर दी और उसको घेर लिया। 25 तब शोमरोन में बड़ा अकाल पड़ा और वह ऐसा घिरा रहा, कि अन्त में एक गदहे का सिर चान्दी के अस्सी टुकड़ों में और कब की चौथाई भर कबूतर की बीट पांच टुकड़े चान्दी तक बिकने लगी। 26 और इस्राएल का राजा शहरपनाह पर टहल रहा था, कि एक स्त्री ने पुकार के उस से कहा, हे प्रभु, हे राजा, बचा। 27 उसने कहा, यदि यहोवा तुझे न बचाए, तो मैं कहां से तुझे बचाऊं? क्या खलिहान में से, वा दाखरस के कुण्ड में से? 28 फिर राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या हुआ? उसने उत्तर दिया, इस स्त्री ने मुझ से कहा था, मुझे अपना बेटा दे, कि हम आज उसे खा लें, फिर कल मैं अपना बेटा दूंगी, और हम उसे भी खाएंगी। 29 तब मेरे बेटे को पका कर हम ने खा लिया, फिर दूसरे दिन जब मैं ने इस से कहा कि अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें, तब इस ने अपने बेटे को छिपा रखा। 30 उस स्त्री की ये बातें सुनते ही, राजा ने अपने वस्त्र फाड़े ( वह तो शहरपनाह पर टहल रहा था ), जब लोगों ने देखा, तब उन को यह देख पड़ा कि वह भीतर अपनी देह पर टाट पहिने है। 31 तब वह बोल उठा, यदि मैं शापात के वुत्र एलीशा का सिर आज उसके धड़ पर रहने दूं, तो परमेश्वर मेरे साथ ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। 32 एलीशा अपने घर में बैठा हुआ था, और पुरनिये भी उसके संग बैठे थे। सो जब राजा ने अपने पास से एक जन भेजा, तब उस दूत के पहुंचने से पहिले उसने पुरनियों से कहा, देखो, इस खूनी के बेटे ने किसी को मेरा सिर काटने को भेजा है; इसलिये जब वह दूत आए, तब किवाड़ बन्द कर के रोके रहना। क्या उसके स्वामी के पांव की आहट उसके पीछे नहीं सुन पड़ती? 33 वह उन से यों बातें कर ही रहा था कि दूत उसके पास आ पहुंचा। और राजा कहने लगा, यह विपत्ति यहोवा की ओर से है, अब मैं आगे को यहोवा की बाट क्यों जोहता रहूं?
1 और भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से किसी ने एलीशा से कहा, यह स्थान जिस में हम तेरे साम्हने रहते हैं, वह हमारे लिये सकेत है। .::. 2 इसलिये हम यरदन तक जाएं, और वहां से एक एक बल्ली ले कर, यहां अपने रहने के लिये एक स्थान बना लें; उसने कहा, अच्छा जाओ। .::. 3 तब किसी ने कहा, अपने दासों के संग चलने को प्रसन्न हो, उसने कहा, चलता हूँ। .::. 4 तो वह उनके संग चला और वे यरदन के तीर पहुंच कर लकड़ी काटने लगे। .::. 5 परन्तु जब एक जन बल्ली काट रहा था, तो कुल्हाड़ी बेंट से निकल कर जल में गिर गई; सो वह चिल्ला कर कहने लगा, हाय! मेरे प्रभु, वह तो मंगनी की थी। .::. 6 परमेश्वर के भक्त ने पूछा, वह कहां गिरी? जब उसने स्थान दिखाया, तब उसने एक लकड़ी काट कर वहां डाल दी, और वह लोहा पानी पर तैरने लगा। .::. 7 उसने कहा, उसे उठा ले, तब उसने हाथ बढ़ा कर उसे ले लिया। .::. 8 ओैर अराम का जाजा इस्राएल से युद्ध कर रहा था, और सम्मति कर के अपने कर्मचारियों से कहा, कि अमुक स्थान पर मेरी छावनी होगी। .::. 9 तब परमेश्वर के भक्त ने इस्राएल के राजा के पास कहला भेजा, कि चौकसी कर और अमुक स्थान से हो कर न जाना क्योंकि वहां अरामी चढ़ाई करने वाले हैं। .::. 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्थान को, जिसकी चर्चा कर के परमेश्वर के भक्त ने उसे चिताया था, भेज कर, अपनी रक्षा की; और उस प्रकार एक दो बार नहीं वरन बहुत बार हुआ। .::. 11 इस कारण अराम के राजा का मन बहुत घबरा गया; सो उसने अपने कर्मचारियों को बुला कर उन से पूछा, क्या तुम मुझे न बताओगे कि हम लोगों में से कौन इस्राएल के राजा की ओर का है? उसके एक कर्मचारी ने कहा, हे मेरे प्रभु! हे राजा! ऐसा नहीं, .::. 12 एलीशा जो इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है, वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है, जो तू शयन की कोठरी में बोलता है। .::. 13 राजा ने कहा, जा कर देखो कि वह कहां है, तब मैं भेज कर उसे पकड़वा मंगाऊंगा। और उसको यह समाचार मिला कि वह दोतान में है। .::. 14 तब उसने वहां घोड़ों और रथों समेत एक भारी दल भेजा, और उन्होंने रात को आकर नगर को घेर लिया। .::. 15 भोर को परमेश्वर के भक्त का टहलुआ उठा और निकल कर क्या देखता है कि घोड़ों और रथों समेत एक दल नगर को घेरे हुए पड़ा है। और उसके सेवक ने उस से कहा, हाय! मेरे स्वामी, हम क्या करें? .::. 16 उसने कहा, मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं। .::. 17 तब एलीशा ने यह प्रार्थना की, हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आंखें खोल दीं, और जब वह देख सका, तब क्या देखा, कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ों और रथों से भरा हुआ है। .::. 18 जब अरामी उसके पास आए, तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की कि इस दल को अन्धा कर डाल। एलीशा के इस वचन के अनुसार उसने उन्हें अन्धा कर दिया। .::. 19 तब एलीशा ने उन से कहा, यह तो मार्ग नहीं है, और न यह नगर है, मेरे पीछे हो लो; मैं तुम्हें उस मनुष्य के पास जिसे तुम ढूंढ़ रहे हो पहुंचाऊंगा। तब उसने उन्हें शोमरोन को पहुंचा दिया। .::. 20 जब वे शोमरोन में आ गए, तब एलीशा ने कहा, हे यहोवा, इन लोगों की आंखें खोल कि देख सकें। तब यहोवा ने उनकी आंखें खोलीं, और जब वे देखने लगे तब क्या देखा कि हम शोमरोन के मध्य में हैं। .::. 21 उन को देखकर इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, हे मेरे पिता, क्या मैं इन को मार लूं? मैं उन को मार लूं? .::. 22 उसने उत्तर दिया, मत मार। क्या तू उन को मार दिया करता है, जिन को तू तलवार और धनुष से बन्धुआ बना लेता है? तू उन को अन्न जल दे, कि खा पीकर अपने स्वामी के पास चले जाएं। .::. 23 तब उसने उनके लिये बड़ी जेवनार की, और जब वे खा पी चुके, तब उसने उन्हें बिदा किया, और वे अपने स्वामी के पास चले गए। इसके बाद अराम के दल इस्राएल के देश में फिर न आए। .::. 24 परन्तु इसके बाद अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी समस्त सेना इकट्ठी कर के, शोमरोन पर चढ़ाई कर दी और उसको घेर लिया। .::. 25 तब शोमरोन में बड़ा अकाल पड़ा और वह ऐसा घिरा रहा, कि अन्त में एक गदहे का सिर चान्दी के अस्सी टुकड़ों में और कब की चौथाई भर कबूतर की बीट पांच टुकड़े चान्दी तक बिकने लगी। .::. 26 और इस्राएल का राजा शहरपनाह पर टहल रहा था, कि एक स्त्री ने पुकार के उस से कहा, हे प्रभु, हे राजा, बचा। .::. 27 उसने कहा, यदि यहोवा तुझे न बचाए, तो मैं कहां से तुझे बचाऊं? क्या खलिहान में से, वा दाखरस के कुण्ड में से? .::. 28 फिर राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या हुआ? उसने उत्तर दिया, इस स्त्री ने मुझ से कहा था, मुझे अपना बेटा दे, कि हम आज उसे खा लें, फिर कल मैं अपना बेटा दूंगी, और हम उसे भी खाएंगी। .::. 29 तब मेरे बेटे को पका कर हम ने खा लिया, फिर दूसरे दिन जब मैं ने इस से कहा कि अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें, तब इस ने अपने बेटे को छिपा रखा। .::. 30 उस स्त्री की ये बातें सुनते ही, राजा ने अपने वस्त्र फाड़े ( वह तो शहरपनाह पर टहल रहा था ), जब लोगों ने देखा, तब उन को यह देख पड़ा कि वह भीतर अपनी देह पर टाट पहिने है। .::. 31 तब वह बोल उठा, यदि मैं शापात के वुत्र एलीशा का सिर आज उसके धड़ पर रहने दूं, तो परमेश्वर मेरे साथ ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। .::. 32 एलीशा अपने घर में बैठा हुआ था, और पुरनिये भी उसके संग बैठे थे। सो जब राजा ने अपने पास से एक जन भेजा, तब उस दूत के पहुंचने से पहिले उसने पुरनियों से कहा, देखो, इस खूनी के बेटे ने किसी को मेरा सिर काटने को भेजा है; इसलिये जब वह दूत आए, तब किवाड़ बन्द कर के रोके रहना। क्या उसके स्वामी के पांव की आहट उसके पीछे नहीं सुन पड़ती? .::. 33 वह उन से यों बातें कर ही रहा था कि दूत उसके पास आ पहुंचा। और राजा कहने लगा, यह विपत्ति यहोवा की ओर से है, अब मैं आगे को यहोवा की बाट क्यों जोहता रहूं?
  • 2 राजा अध्याय 1  
  • 2 राजा अध्याय 2  
  • 2 राजा अध्याय 3  
  • 2 राजा अध्याय 4  
  • 2 राजा अध्याय 5  
  • 2 राजा अध्याय 6  
  • 2 राजा अध्याय 7  
  • 2 राजा अध्याय 8  
  • 2 राजा अध्याय 9  
  • 2 राजा अध्याय 10  
  • 2 राजा अध्याय 11  
  • 2 राजा अध्याय 12  
  • 2 राजा अध्याय 13  
  • 2 राजा अध्याय 14  
  • 2 राजा अध्याय 15  
  • 2 राजा अध्याय 16  
  • 2 राजा अध्याय 17  
  • 2 राजा अध्याय 18  
  • 2 राजा अध्याय 19  
  • 2 राजा अध्याय 20  
  • 2 राजा अध्याय 21  
  • 2 राजा अध्याय 22  
  • 2 राजा अध्याय 23  
  • 2 राजा अध्याय 24  
  • 2 राजा अध्याय 25  
×

Alert

×

Hindi Letters Keypad References