पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
2 शमूएल

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2 शमूएल अध्याय 1

1. शाऊल के मरने के बाद, जब दाऊद अमालेकियों को मारकर लौटा, और दाऊद को सिकलग में रहते हुए दो दिन हो गए, 2. तब तीसरे दिन ऐसा हुआ कि छावनी में से शाऊल के पास से एक पुरुष कपड़े फाड़े सिर पर धूली डाले हुए आया। और जब वह दाऊद के पास पहुंचा, तब भूमि पर गिरा और दण्डवत् किया। 3. दाऊद ने उस से पूछा, तू कहां से आया है? उसने उस से कहा, मैं इस्राएली छावनी में से बचकर आया हूं। 4. दाऊद ने उस से पूछा, वहां क्या बात हुई? मुझे बता। उसने कहा, यह, कि लोग रणभूमि छोड़कर भाग गए, और बहुत लोग मारे गए; और शाऊल और उसका पुत्र योनातन भी मारे गए हैं। 5. दाऊद ने उस समाचार देने वाले जवान से पूछा, कि तू कैसे जानता है कि शाऊल और उसका पुत्र योनातन मर गए? 6. समाचार देने वाले जवान ने कहा, संयोग से मैं गिलबो पहाड़ पर था; तो क्या देखा, कि शाऊल अपने भाले की टेक लगाए हुए है; फिर मैं ने यह भी देखा कि उसका पीछा किए हुए रथ और सवार बड़े वेग से दौड़े आ रहे हैं। 7. उसने पीछे फिरकर मुझे देखा, और मुझे पुकारा। मैं ने कहा,क्या आज्ञा? 8. उसने मुझ से पूछा, तू कौन है? मैं ने उस से कहा, मैं तो अमालेकी हूँ। 9. उसने मुझ से कहा, मेरे पास खड़ा हो कर मुझे मार डाल; क्योंकि मेरा सिर तो घुमा जाता है, परन्तु प्राण नहीं निकलता। 10. तब मैं ने यह निश्चय जान लिया, कि वह गिर जाने के पहचात् नहीं बच सकता, उसके पास खड़े हो कर उसे मार डाला; और मैं उसके सिर का मुकुट और उसके हाथ का कंगन ले कर यहां अपने प्रभु के पास आया हूँ। 11. तब दाऊद ने अपने कपड़े पकड़कर फाड़े; और जितने पुरुष उसके संग थे उन्होंने भी वैसा ही किया; 12. और वे शाऊल, और उसके पुत्र योनातन, और यहोवा की प्रजा, और इस्राएल के घराने के लिये छाती पीटने और रोने लगे, और सांझ तक कुछ न खाया, इस कारण कि वे तलवार से मारे गए थे। 13. फिर दाऊद ने उस समाचार देने वाले जवान से पूछा, तू कहां का है? उसने कहा, मैं तो परदेशी का बेटा अर्थात अमालेकी हूँ। 14. दाऊद ने उस से कहा, तू यहोवा के अभिषिक्त को नाश करने के लिये हाथ बढ़ाने से क्यों नहीं डरा? 15. तब दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, निकट जा कर उस पर प्रहार कर। तब उसने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया। 16. और दाऊद ने उस से कहा, तेरा खून तेरे ही सिर पर पड़े; क्योंकि तू ने यह कहकर कि मैं ही ने यहोवा के अभिषिक्त को मार डाला, अपने मुंह से अपने ही विरुद्ध साक्षी दी है। 17. (शाऊल और योनातन के लिये दाऊद का बनाया हुआ विलापगीत ) तब दाऊद ने शाऊल और उसके पुत्र योनातन के विषय यह विलापगीत बनाया, 18. और यहूदियों को यह धनुष नाम गीत सिखाने की आज्ञा दी; यह याशार नाम पुस्तक में लिखा हुआ है; 19. हे इस्राएल, तेरा शिरोमणि तेरे ऊंचे स्थान पर मारा गया। हाय, शूरवीर क्योंकर गिर पड़े हैं! 20. गत में यह न बताओ, और न अश्कलोन की सड़कों में प्रचार करना; न हो कि पलिश्ती स्त्रियाँ आनन्दित हों, न हो कि खतनारहित लोगों की बेटियां गर्व करने लगें। 21. हे गिलबो पहाड़ो, तुम पर न ओस पड़े, और न वर्षा हो, और न भेंट के योग्य उपज वाले खेत पाए जाएं! क्योंकि वहां शूरवीरों की ढालें अशुद्ध हो गई। और शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई। 22. जूझे हुओं के लोहू बहाने से, और शूरवीरों की चर्बी खाने से, योनातन का धनुष लौट न जाता था, और न शाऊल की तलवार छूछी फिर आती थी। 23. शाऊल और योनातन जीवनकाल में तो प्रिय और मनभाऊ थे, और अपनी मृत्यु के समय अलग न हुए; वे उकाब से भी वेग चलने वाले, और सिंह से भी अधिक पराक्रमी थे। 24. हे इस्राएली स्त्रियो, शाऊल के लिये रोओ, वह तो तुम्हें लाल रंग के वस्त्र पहिनाकर सुख देता, और तुम्हारे वस्त्रों के ऊपर सोने के गहने पहिनाता था। 25. हाय, युद्ध के बीच शूरवीर कैसे काम आए! हे योनातन, हे ऊंचे स्थानों पर जूझे हुए, 26. हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दु:खित हूँ; तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था; तेरा प्रेम मुझ पर अद्भुत, वरन स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था। 27. हाय, शूरवीर क्योंकर गिर गए, और युद्ध के हथियार कैसे नाश हो गए हैं!
1. शाऊल के मरने के बाद, जब दाऊद अमालेकियों को मारकर लौटा, और दाऊद को सिकलग में रहते हुए दो दिन हो गए, .::. 2. तब तीसरे दिन ऐसा हुआ कि छावनी में से शाऊल के पास से एक पुरुष कपड़े फाड़े सिर पर धूली डाले हुए आया। और जब वह दाऊद के पास पहुंचा, तब भूमि पर गिरा और दण्डवत् किया। .::. 3. दाऊद ने उस से पूछा, तू कहां से आया है? उसने उस से कहा, मैं इस्राएली छावनी में से बचकर आया हूं। .::. 4. दाऊद ने उस से पूछा, वहां क्या बात हुई? मुझे बता। उसने कहा, यह, कि लोग रणभूमि छोड़कर भाग गए, और बहुत लोग मारे गए; और शाऊल और उसका पुत्र योनातन भी मारे गए हैं। .::. 5. दाऊद ने उस समाचार देने वाले जवान से पूछा, कि तू कैसे जानता है कि शाऊल और उसका पुत्र योनातन मर गए? .::. 6. समाचार देने वाले जवान ने कहा, संयोग से मैं गिलबो पहाड़ पर था; तो क्या देखा, कि शाऊल अपने भाले की टेक लगाए हुए है; फिर मैं ने यह भी देखा कि उसका पीछा किए हुए रथ और सवार बड़े वेग से दौड़े आ रहे हैं। .::. 7. उसने पीछे फिरकर मुझे देखा, और मुझे पुकारा। मैं ने कहा,क्या आज्ञा? .::. 8. उसने मुझ से पूछा, तू कौन है? मैं ने उस से कहा, मैं तो अमालेकी हूँ। .::. 9. उसने मुझ से कहा, मेरे पास खड़ा हो कर मुझे मार डाल; क्योंकि मेरा सिर तो घुमा जाता है, परन्तु प्राण नहीं निकलता। .::. 10. तब मैं ने यह निश्चय जान लिया, कि वह गिर जाने के पहचात् नहीं बच सकता, उसके पास खड़े हो कर उसे मार डाला; और मैं उसके सिर का मुकुट और उसके हाथ का कंगन ले कर यहां अपने प्रभु के पास आया हूँ। .::. 11. तब दाऊद ने अपने कपड़े पकड़कर फाड़े; और जितने पुरुष उसके संग थे उन्होंने भी वैसा ही किया; .::. 12. और वे शाऊल, और उसके पुत्र योनातन, और यहोवा की प्रजा, और इस्राएल के घराने के लिये छाती पीटने और रोने लगे, और सांझ तक कुछ न खाया, इस कारण कि वे तलवार से मारे गए थे। .::. 13. फिर दाऊद ने उस समाचार देने वाले जवान से पूछा, तू कहां का है? उसने कहा, मैं तो परदेशी का बेटा अर्थात अमालेकी हूँ। .::. 14. दाऊद ने उस से कहा, तू यहोवा के अभिषिक्त को नाश करने के लिये हाथ बढ़ाने से क्यों नहीं डरा? .::. 15. तब दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, निकट जा कर उस पर प्रहार कर। तब उसने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया। .::. 16. और दाऊद ने उस से कहा, तेरा खून तेरे ही सिर पर पड़े; क्योंकि तू ने यह कहकर कि मैं ही ने यहोवा के अभिषिक्त को मार डाला, अपने मुंह से अपने ही विरुद्ध साक्षी दी है। .::. 17. (शाऊल और योनातन के लिये दाऊद का बनाया हुआ विलापगीत ) तब दाऊद ने शाऊल और उसके पुत्र योनातन के विषय यह विलापगीत बनाया, .::. 18. और यहूदियों को यह धनुष नाम गीत सिखाने की आज्ञा दी; यह याशार नाम पुस्तक में लिखा हुआ है; .::. 19. हे इस्राएल, तेरा शिरोमणि तेरे ऊंचे स्थान पर मारा गया। हाय, शूरवीर क्योंकर गिर पड़े हैं! .::. 20. गत में यह न बताओ, और न अश्कलोन की सड़कों में प्रचार करना; न हो कि पलिश्ती स्त्रियाँ आनन्दित हों, न हो कि खतनारहित लोगों की बेटियां गर्व करने लगें। .::. 21. हे गिलबो पहाड़ो, तुम पर न ओस पड़े, और न वर्षा हो, और न भेंट के योग्य उपज वाले खेत पाए जाएं! क्योंकि वहां शूरवीरों की ढालें अशुद्ध हो गई। और शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई। .::. 22. जूझे हुओं के लोहू बहाने से, और शूरवीरों की चर्बी खाने से, योनातन का धनुष लौट न जाता था, और न शाऊल की तलवार छूछी फिर आती थी। .::. 23. शाऊल और योनातन जीवनकाल में तो प्रिय और मनभाऊ थे, और अपनी मृत्यु के समय अलग न हुए; वे उकाब से भी वेग चलने वाले, और सिंह से भी अधिक पराक्रमी थे। .::. 24. हे इस्राएली स्त्रियो, शाऊल के लिये रोओ, वह तो तुम्हें लाल रंग के वस्त्र पहिनाकर सुख देता, और तुम्हारे वस्त्रों के ऊपर सोने के गहने पहिनाता था। .::. 25. हाय, युद्ध के बीच शूरवीर कैसे काम आए! हे योनातन, हे ऊंचे स्थानों पर जूझे हुए, .::. 26. हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दु:खित हूँ; तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था; तेरा प्रेम मुझ पर अद्भुत, वरन स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था। .::. 27. हाय, शूरवीर क्योंकर गिर गए, और युद्ध के हथियार कैसे नाश हो गए हैं!
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