1. सोर के विषय भारी वचन। हे तर्शीश के जहाजों हाय, हाय, करो; क्योंकि वह उजड़ गया; वहां न तो कोई घर और न कोई शरण का स्थान है! यह बात उनको कित्तियों के देश में से प्रगट की गई है।
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2. हे समुद्र के तीर के रहनेवालों, जिनको समुद्र के पार जानेवाले सीदोनी व्यापारियों ने धन से भर दिया है, चुप रहो!
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3. शीहोर का अन्न, और नील नदी के पास की उपज महासागर के मार्ग से उसको मिनती थी, क्योंकि वह और जातियों के लिये व्योपार का स्थान था।
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4. हे सीदोन, लज्जित हो, क्योंकि समुद्र ने अर्थात् समुद्र के दृढ़ सिाान ने यह कहा है, मैं ने न तो कभी जन्माने की पीड़ा जानी और न बालक को जन्म दिया, और न बेटों को पाला और न बेटियों को पोसा है।
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7. क्या यह तुम्हारी प्रसन्नता से भरी हुई नगरी है जो प्राचीनकाल से बसी थी, जिसके पांव उसे बसने को दूर ले जाते थे?
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8. सोर जो राजाओं की गद्दी पर बैठाती थी, जिसके व्योपारी हाकिम थे, और जिसके महाजन पृथ्वी भर में प्रतिष्ठित थे, उसके विरूद्ध किस ने ऐसी युक्ति की है?
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9. सेनाओं के यहोवा ही ने ऐसी युक्ति की है कि समस्त गौरव के घमण्ड को तुच्छ कर दे और पृथ्वी के प्रतिष्ठितों का अपमान करवाए।
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11. उस ने अपना हाथ समुद्र पर बढ़ाकर राज्यों को हिला दिया है; यहोवा ने कनान के दृढ़ किलों के नाश करने की आज्ञा दी है।
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12. और उस ने कहा है, हे सीदोन, हे भ्रष्ट की हुई कुमारी, तू फिर प्रसन्न होने की नहीं; उठ, पार होकर कित्तियों के पास जा, परन्तु वहां भी तुझे चैन न मिलेगा।।
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13. कसदियों के देश को देखो, वह जाति अब न रही; अश्शूर ने उस देश को जंगली जन्तुओं का स्थान बनाया। उन्हों ने अपने गुम्मट उठाए और राजभवनों को ढ़ा दिया, और उसको खण्डहर कर दिया।
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16. हे बिसरी हुई वेश्या, वीणा लेकर नगर में घूम, भली भांति बजा, बहुत गीत गा, जिस से लोग फिर तुझे याद करें।
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17. सत्तर वर्ष के बीतने पर यहोवा सोर की सुधि लेगा, और वह फिर छिनाले की कमाई पर मन लगाकर धरती भर के सब राज्यों के संग छिनाला करेंगी।
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18. उसके व्योपार की प्राप्ति, और उसके छिनाले की कमाई, यहोवा के लिये पवित्रा कि जाएगी; वह न भण्डार में रखी जाएगी न संचय की जाएगी, क्योंकि उसके व्योपार की प्राप्ति उन्हीं के काम में आएगी जो यहोवा के साम्हने रहा करेंगे, कि उनको भरपूर भोजन और चमकीला वस्त्रा मिले।।
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