2. और बूजी बारकेल का पुत्रा एलीहू जो राम के कुल का था, उसका क्रोध भड़क उठा। अरयूब पर उसका क्रोध इसलिये भड़क उठा, कि उस ने परमेश्वर को नहीं, अपने ही को निदष ठहराया।
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3. फिर अरयूब के तीनों मित्रों के विरूद्ध भी उसका क्रोध इस कारण भड़का, कि वे अरयूब को उत्तर न दे सके, तौभी उसको दोषी ठहराया।
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6. तब बूजी बारकेल का पुत्रा एलीहू कहने लगा, कि मैं तो जवान हूँ, और तुम बहुत बूढ़े हो; इस कारण मैं रूका रहा, और अपना विचार तुम को बताने से डरता था।
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7. मैं सोचता था, कि जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुध्दि सिखाएं।
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8. परन्तु मनुष्य में आत्मा तो है ही, और सर्वशक्तिमान अपनी दी हुई सांस से उन्हें समझने की शक्ति देता है।
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11. मैं तो तुम्हारी बातें सुनने को ठहरा रहा, मैं तुम्हारे प्रमाण सुनने के लिये ठहरा रहा; जब कि तुम कहने के लिये शब्द ढूढ़ते रहे।
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12. मैं चित्त लगाकर तुम्हारी सुनता रहा। परन्तु किसी ने अरयूब के पक्ष का खणडन नहीं किया, और न उसकी बातों का उत्तर दिया।
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14. जो बातें उस ने कहीं वह मेरे विरूद्ध तो नहीं कहीं, और न मैं तुम्हारी सी बातों से उसको उत्तर दूंगा।
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