पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
अय्यूब
1. फिर यहोवा ने अरयूब से यह भी कहो
2. क्या जो बकवास करता है वह सर्वशक्तिमान से झगड़ा करे? जो ईश्वर से विवाद करता है वह इसका उत्तर दे।
3. तब अरयूब ते यहोवा को उत्तर दियो
4. देख, मैं तो तुच्छ हूँ, मैं तुझे क्या उत्तर दूं? मैं अपनी अंगुली दांत तले दबाता हूँ।
5. एक बार तो मैं कह चुका, परन्तु और कुछ न कहूंगो हां दो बार भी मैं कह चुका, परन्तु अब कुछ और आगे न बढ़ूंगा।
6. तब यहोवा ने अरयूब को आँधी में से यह उत्तर दियो
7. पुरूष की नाई अपनी कमर बान्ध ले, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे बता।
8. क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निदष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?
9. क्या तेरा बाहुबल ईश्वर के तुल्य है? क्या तू उसके समान शब्द से गरज सकता है?
10. अब अपने को महिमा और प्रताप से संवार और ऐश्वरर्य और तेज के वस्त्रा पहिन ले।
11. अपने अति क्रोध की बाढ़ को बहा दे, और एक एक घमणडी को देखते ही उसे नीचा कर।
12. हर एक घमणडी को देखकर झुका दे, और दुष्ट लोगों को जहां खड़े हों वहां से गिरा दे।
13. उनको एक संग मिट्टी में मिला दे, और उस गुप्त स्थान में उनके मुंह बान्ध दे।
14. तब मैं भी तेरे विषय में मान लूंगा, कि तेरा ही दहिना हाथ तेरा उद्वार कर सकता है।
15. उस जलगज को देख, जिसको मैं ने तेरे साथ बनाया है, वह बैल की नाई घास खाता है।
16. देख उसकी कटि में बल है, और उसके पेट के पट्ठों में उसकी सामर्थ्य रहती है।
17. वह अपनी पूंछ को देवदार की नाई हिलाता है; उसकी जांधों की नसें एक दूसरे से मिली हुई हैं।
18. उसकी हटि्टयां मानो पीतल की नलियां हैं, उसकी पसुलियां मानो लोेहे के बेंड़े हैं।
19. वह ईश्वर का मुख्य कार्य है; जो उसका सिरजनहार हो उसके निकट तलवार लेकर आए !
20. निश्चय पहाड़ों पर उसका चारा मिलता है, जहां और सब वनपशु कालोल करते हैं।
21. वह छतनार वृक्षों के तले नरकटों की आड़ में और कीच पर लेटा करता है
22. छतनार वृक्ष उस पर छाया करते हैं, वह नाले के बेंत के वृक्षों से घिरा रहता है।
23. चाहे नदी की बाढ़ भी हो तौभी वह न घबराएगा, चाहे यरदन भी बढ़कर उसके मुंह तक आए परन्तु वह निर्भय रहेगा।
24. जब वह चौकस हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकेगा, वा फन्दे लगाकर उसको नाथ सकेगा?

Notes

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अय्यूब 40
1. फिर यहोवा ने अरयूब से यह भी कहो
2. क्या जो बकवास करता है वह सर्वशक्तिमान से झगड़ा करे? जो ईश्वर से विवाद करता है वह इसका उत्तर दे।
3. तब अरयूब ते यहोवा को उत्तर दियो
4. देख, मैं तो तुच्छ हूँ, मैं तुझे क्या उत्तर दूं? मैं अपनी अंगुली दांत तले दबाता हूँ।
5. एक बार तो मैं कह चुका, परन्तु और कुछ कहूंगो हां दो बार भी मैं कह चुका, परन्तु अब कुछ और आगे बढ़ूंगा।
6. तब यहोवा ने अरयूब को आँधी में से यह उत्तर दियो
7. पुरूष की नाई अपनी कमर बान्ध ले, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे बता।
8. क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निदष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?
9. क्या तेरा बाहुबल ईश्वर के तुल्य है? क्या तू उसके समान शब्द से गरज सकता है?
10. अब अपने को महिमा और प्रताप से संवार और ऐश्वरर्य और तेज के वस्त्रा पहिन ले।
11. अपने अति क्रोध की बाढ़ को बहा दे, और एक एक घमणडी को देखते ही उसे नीचा कर।
12. हर एक घमणडी को देखकर झुका दे, और दुष्ट लोगों को जहां खड़े हों वहां से गिरा दे।
13. उनको एक संग मिट्टी में मिला दे, और उस गुप्त स्थान में उनके मुंह बान्ध दे।
14. तब मैं भी तेरे विषय में मान लूंगा, कि तेरा ही दहिना हाथ तेरा उद्वार कर सकता है।
15. उस जलगज को देख, जिसको मैं ने तेरे साथ बनाया है, वह बैल की नाई घास खाता है।
16. देख उसकी कटि में बल है, और उसके पेट के पट्ठों में उसकी सामर्थ्य रहती है।
17. वह अपनी पूंछ को देवदार की नाई हिलाता है; उसकी जांधों की नसें एक दूसरे से मिली हुई हैं।
18. उसकी हटि्टयां मानो पीतल की नलियां हैं, उसकी पसुलियां मानो लोेहे के बेंड़े हैं।
19. वह ईश्वर का मुख्य कार्य है; जो उसका सिरजनहार हो उसके निकट तलवार लेकर आए !
20. निश्चय पहाड़ों पर उसका चारा मिलता है, जहां और सब वनपशु कालोल करते हैं।
21. वह छतनार वृक्षों के तले नरकटों की आड़ में और कीच पर लेटा करता है
22. छतनार वृक्ष उस पर छाया करते हैं, वह नाले के बेंत के वृक्षों से घिरा रहता है।
23. चाहे नदी की बाढ़ भी हो तौभी वह घबराएगा, चाहे यरदन भी बढ़कर उसके मुंह तक आए परन्तु वह निर्भय रहेगा।
24. जब वह चौकस हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकेगा, वा फन्दे लगाकर उसको नाथ सकेगा?
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