पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
2 इतिहास
1. {यहोशापात युद्ध का सामना करता है} [PS] कुछ समय पश्चात मोआबी, अम्मोनी और कुछ मूनी लोग यहोशापात के साथ युद्ध आरम्भ करने आए।
2. कुछ लोग आए औऱ उन्हीने यहोशापात से कहा, “तुम्हारे विरुद्ध एदोम से एक विशाल सेना आ रही है। वे मृत सागर की दूसरी ओर से आ रहे हैं। वे हसासोन्तामार में पहले से ही है।” (हसासोन्तामार के एनगदी भी कहा जाता है)
3. यहोशापात डर गया और उसने यहोवा से यह पूछने का निश्चय किया कि मैं क्या करुँ उसने यहूदा में हर एक के लिये उपवास का समय घोषित किया।
4. यहूदा के लोग एक साथ यहोवा से सहायता माँगने आए। वे यहूदा के सभी नगरों से यहोवा की सहायता माँगने आए।
5. यहोशापात यहोवा के मन्दिर में नये आँगन के सामने था। वह यरूशलेम और यहूदा से आए लोगों की सभा में खड़ा हुआ।
6. उसने कहा, “हे हमारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर, तू स्वर्ग में परमेश्वर है! तू सभी राष्टों में सभी राज्यों पर शासन करता है! तू प्रभुता और शक्ति रखता है! कोई व्यक्ति तेरे विरुद्ध खड़ा नही हो सकता!
7. तू हमारा परमेश्वर है। तूने इस प्रदेश में रहने वालों को इसे छोड़ने को विवश किया। यह तूने अपने इस्राएली लोगों के सामने किया। तूने यह भूमि इब्राहाम के वंशजों को सदैव के लिये दे दी। इब्राहाम तेरा मित्र था।
8. इब्राहीम के वंशज इस देश में रहते थे और उन्होने एक मन्दिर तेरे नाम पर बनाया।
9. उन्होने कहा, ‘यदि हम लोगों पर आपत्ति आएगी जैसे तलवार, दण्ड, रोग या अकाल तो हम इस मन्दिर के सामने और तेरे सामने खड़े होगे। इस मन्दिर पर तेरा नाम है। जब हम लोगों पर विपत्ति आएगी तो हम लोग तुझको पुकारेंगे। तब तू हमारी सुनेगा और हमारी रक्षा करेगा।’
10. “किन्तु इस समय यही अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोग चढ़ आए हैं! तूने इस्राएल के लोगों को उस समय उनकी भूमि में नही जाने दिया जब इस्राएल के लोग मिस्र से आए। इसलिए इस्राएल के लोग मुड़ गए थे और उन लोगों ने उनको नष्ट नही किया था।
11. किन्तु देख कि वे लोग हमें उन्हें नष्ट न करने का किस प्रकार का पुरस्कार दे रहे हैं। वे हमें तेरी भूमि से बाहर होने के लिए विवश करने आए हैं। यह भूमि तूने हमें दी है।
12. हमारे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे! हम लोग उस विशाल सेना के विरुद्ध कोई शक्ति नही रखते जो हमारे विरुद्ध आ रही है! हम नहीं जानते कि क्या करें! यही कारण है कि हम तुझसे सहायता की आशा करते हैं।” [PS]
13. यहूदा के सभी लोग यहोवा के सामने अपने शिशुओं, पत्नियों और बच्चों के साथ खड़े थे।
14. तब यहोवा की आत्मा यहजीएल पर उतरी। यहजीएल जकर्याह का पुत्र था। (जकर्याह बनायाह का पुत्र था बनायाह यीएल का पुत्र था और यीएल मत्तन्याह का पुत्र था।) यहजीएल एक लेवीवंशी था और आसाप का वंशज था।
15. उस सभा के बीच यहजीएल ने कह “राजा यहशापात तथा यहूदा और यरूशलेम में रहने वाले लोगों, मेरी सुनों! यहोवा तुमसे यह कहता है: ‘इस विशाल सेना से न तो डरो, न हो परेशान होओ क्योंकि यह तुम्हारा युद्ध नही है। यह परमेश्वर का युद्ध है!
16. कल तुम वहाँ जाओ और उन लोगों से लड़ो। वे सीस के दर्रे से होकर आएँगे। तुम लोग उन्हें घाटी के अन्त में यरूएल मरुभूमि की दूसरी ओर पाओगे।
17. इस युद्ध में तुम्हें लड़ना नही पड़ेगा। अपने स्थानों पर दृढ़ता से खड़े रहो। तुम देखोगे कि यहोवा ने तुम्हें बचा लिया। यहूदा और यरूशलेम के लोगों, डरो नहो परेशान मत हो! यहोवा तुम्हारे साथ है अत: कल उन लोगों के विरुद्ध जाओ।’ ” [PE][PS]
18. यहोशापात अति नम्रता से झुका। उसका सिर भूमि को छू रहा था और यहूदा तथा यरूशलेम में रहने वाले सभी लोग यहोवा के सामने गिर गए और उन सभी ने यहोवा की उपासना की।
19. कहाती परिवार समूह के लेवीवंशी और कहाती लोग, इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की स्तुति के लिये खड़े हुए। उन्होने अत्यन्त उच्च स्वर में स्तुति की। [PE][PS]
20. यहोशापात की सेना तकोआ मरुभूमि में बहुत सवेरे गई। जब वे बढ़ना आरम्भ कर रहे थे, यहोशापात खड़ा हुआ और उसने कहा, “यहूदा और यरूशलेम के लोगों, मेरी सुनों। अपने यहोवा परमेश्वर में विश्वास रखो और तब तुम शक्ति के साथ खड़े रहोगे। यहोवा के नबियों में विश्वास रखो। तुम लोग सफल होगे!” [PE][PS]
21. यहोशापात ने लोगों का सुझाव सुना। तब उसने यहोवा के लिये गायक चुने। वे गायक यहोवा की स्तुति के लिये चुने गए थे क्योंकि वह पवित्र और अद्भुत है। वे सेना के सामने कदम मिलाते हुए बढ़े और उन्होने यहोवा की स्तुति की। इन गायकों ने गाया, “परमेश्वर को धन्यवाद दो [QBR2] क्योंकि उसका प्रेम सदैव रहता है!” [*परमेश्वर को … रहता है देखें भजन. 136]
22. ज्योंहो उन लोगों ने गाना गाकर यहोवा की स्तुति आरम्भ की, यहोवा ने अज्ञात गुप्त आक्रमण अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोगों पर कराया। ये वे लोग थे जो यहूदा पर आक्रमण करने आए थे। वे लोग पिट गए।
23. अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आये लोगों के विरुद्ध युद्ध आरम्भ किया। अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आए लोगों को मार डाला और नष्ट कर दिया। जब वे सेईर के लोगों को मार चुके तो उन्होने एक दूसरे को मार डाला। [PE][PS]
24. यहूदा के लोग मरुभूमि में सामना करने के बिन्दु पर आए। उन्होने शत्रु की विशाल सेना को देखा। किन्तु उन्होने केवल शवो को भूमि पर पड़े देखा। कोई व्यक्ति बचा न था।
25. यहोशापात और उसकी सेना शवों से बहुमूल्य चीजें लेने आई। उन्हें बहुत से जानवर, धन, वस्त्र और कीमती चीज़ें मिलीं। यहोशापात और उसकी सेना ने उन्हें अपने लिये ले लिया। चीज़ें उससे अधिक थीं जितना यहोशापात और उसकी सेना ले जा सकती थी। उनको शवों से कीमती चीज़ें इकट्ठी करने में तीन दिन लगे, क्योंकि वे बहुत अधिक थीं।
26. चौथे दिन यहोशापात और उसकी सेना बराका की घाटी में मिले। उन्होने उस स्थान पर यहोवा की स्तुति की। यही कारण है कि उस स्थान का नाम आज तक “बराका की घाटी” है। [PE][PS]
27. तब यहोशापात यहूदा और यरूशलेम के लोगों को यरूशलेम लौटा कर ले गया। यहोवा ने उन्हें अत्यन्त प्रसन्न किया क्योंकि उनके शत्रु पराजित हो गये थे।
28. वे यरूशलेम में वीणा सितार और तुरहियों के साथ आये और यहोवा के मन्दिर में गए। [PE][PS]
29. सभी देशों के सारे राज्य यहोवा से भयभीत थे क्योंकि उन्होने सुना कि यहोवा इस्राएल के शत्रुओं से लड़ा।
30. यही कारण है कि यहोशापात के राज्य में शान्ति रही। यहोशापात के परमेश्वर ने उसे चारों ओर से शान्ति दी। [PS]
31. {यहोशापात के शासन का अन्त} [PS] यहोशापात ने यहूदा देश पर शासन किया। यहोशापात ने जब शासन आरम्भ किया तो वह पैंतीस वर्ष का था। उसने पच्चीस वर्ष यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम अजूबा था। अजूबा शिल्ही की पुत्री थी।
32. यहोशापात सच्चे मार्ग पर अपने पिता आसा की तरह रहा। यहोशापात, आसा के मार्ग का अनुसरण करने से मुड़ा नही। यहोशापात ने यहोवा की दृष्टि में उचित किया।
33. किन्तु उच्च स्थान नही हटाये गये और लोगों ने अपना हृदय उस परमेश्वर का अनुसरण करने में नही लगाया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। [PE][PS]
34. यहोशापात ने आरम्भ से अन्त तक जो कुछ किया वह येहू की रचनाओं में लिखा है। येहू के पिता का नाम हनानी था। ये बातें इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखी हुई हैं। [PE][PS]
35. कुछ समय पश्चात यहूदा के राजा यहोशापात ने इस्राएल के राजा अहज्याह के साथ सन्धि की। अहज्याह ने बुरा किया।
36. यहोशापात ने अहज्याह का साथ तर्शीश नगर में जहज जाने देने में दिया। उन्होने जहाजों को एस्योन गेबेर नगर में बनाया।
37. तब एलीआजर ने यहोशापात के विरुद्ध कहा। एलीआजर के पिता का नाम दोदावाह था। एलीआजर मारेशा नगर का था। उसने कहा, “यहोशापात, तुम अहज्याह के साथ मिल गये हो, यही कारण है कि यहोवा तुम्हारे कार्य को नष्ट करेगा।” जहाज टूट गए, अत: यहोशापात और अहज्याह उन्हें तर्शीश नगर को न भेज सके। [PE]

Notes

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2 इतिहास 20:14
यहोशापात युद्ध का सामना करता है 1 कुछ समय पश्चात मोआबी, अम्मोनी और कुछ मूनी लोग यहोशापात के साथ युद्ध आरम्भ करने आए। 2 कुछ लोग आए औऱ उन्हीने यहोशापात से कहा, “तुम्हारे विरुद्ध एदोम से एक विशाल सेना आ रही है। वे मृत सागर की दूसरी ओर से आ रहे हैं। वे हसासोन्तामार में पहले से ही है।” (हसासोन्तामार के एनगदी भी कहा जाता है) 3 यहोशापात डर गया और उसने यहोवा से यह पूछने का निश्चय किया कि मैं क्या करुँ उसने यहूदा में हर एक के लिये उपवास का समय घोषित किया। 4 यहूदा के लोग एक साथ यहोवा से सहायता माँगने आए। वे यहूदा के सभी नगरों से यहोवा की सहायता माँगने आए। 5 यहोशापात यहोवा के मन्दिर में नये आँगन के सामने था। वह यरूशलेम और यहूदा से आए लोगों की सभा में खड़ा हुआ। 6 उसने कहा, “हे हमारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर, तू स्वर्ग में परमेश्वर है! तू सभी राष्टों में सभी राज्यों पर शासन करता है! तू प्रभुता और शक्ति रखता है! कोई व्यक्ति तेरे विरुद्ध खड़ा नही हो सकता! 7 तू हमारा परमेश्वर है। तूने इस प्रदेश में रहने वालों को इसे छोड़ने को विवश किया। यह तूने अपने इस्राएली लोगों के सामने किया। तूने यह भूमि इब्राहाम के वंशजों को सदैव के लिये दे दी। इब्राहाम तेरा मित्र था। 8 इब्राहीम के वंशज इस देश में रहते थे और उन्होने एक मन्दिर तेरे नाम पर बनाया। 9 उन्होने कहा, ‘यदि हम लोगों पर आपत्ति आएगी जैसे तलवार, दण्ड, रोग या अकाल तो हम इस मन्दिर के सामने और तेरे सामने खड़े होगे। इस मन्दिर पर तेरा नाम है। जब हम लोगों पर विपत्ति आएगी तो हम लोग तुझको पुकारेंगे। तब तू हमारी सुनेगा और हमारी रक्षा करेगा।’ 10 “किन्तु इस समय यही अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोग चढ़ आए हैं! तूने इस्राएल के लोगों को उस समय उनकी भूमि में नही जाने दिया जब इस्राएल के लोग मिस्र से आए। इसलिए इस्राएल के लोग मुड़ गए थे और उन लोगों ने उनको नष्ट नही किया था। 11 किन्तु देख कि वे लोग हमें उन्हें नष्ट न करने का किस प्रकार का पुरस्कार दे रहे हैं। वे हमें तेरी भूमि से बाहर होने के लिए विवश करने आए हैं। यह भूमि तूने हमें दी है। 12 हमारे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे! हम लोग उस विशाल सेना के विरुद्ध कोई शक्ति नही रखते जो हमारे विरुद्ध आ रही है! हम नहीं जानते कि क्या करें! यही कारण है कि हम तुझसे सहायता की आशा करते हैं।” 13 यहूदा के सभी लोग यहोवा के सामने अपने शिशुओं, पत्नियों और बच्चों के साथ खड़े थे। 14 तब यहोवा की आत्मा यहजीएल पर उतरी। यहजीएल जकर्याह का पुत्र था। (जकर्याह बनायाह का पुत्र था बनायाह यीएल का पुत्र था और यीएल मत्तन्याह का पुत्र था।) यहजीएल एक लेवीवंशी था और आसाप का वंशज था। 15 उस सभा के बीच यहजीएल ने कह “राजा यहशापात तथा यहूदा और यरूशलेम में रहने वाले लोगों, मेरी सुनों! यहोवा तुमसे यह कहता है: ‘इस विशाल सेना से न तो डरो, न हो परेशान होओ क्योंकि यह तुम्हारा युद्ध नही है। यह परमेश्वर का युद्ध है! 16 कल तुम वहाँ जाओ और उन लोगों से लड़ो। वे सीस के दर्रे से होकर आएँगे। तुम लोग उन्हें घाटी के अन्त में यरूएल मरुभूमि की दूसरी ओर पाओगे। 17 इस युद्ध में तुम्हें लड़ना नही पड़ेगा। अपने स्थानों पर दृढ़ता से खड़े रहो। तुम देखोगे कि यहोवा ने तुम्हें बचा लिया। यहूदा और यरूशलेम के लोगों, डरो नहो परेशान मत हो! यहोवा तुम्हारे साथ है अत: कल उन लोगों के विरुद्ध जाओ।’ ” 18 यहोशापात अति नम्रता से झुका। उसका सिर भूमि को छू रहा था और यहूदा तथा यरूशलेम में रहने वाले सभी लोग यहोवा के सामने गिर गए और उन सभी ने यहोवा की उपासना की। 19 कहाती परिवार समूह के लेवीवंशी और कहाती लोग, इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की स्तुति के लिये खड़े हुए। उन्होने अत्यन्त उच्च स्वर में स्तुति की। 20 यहोशापात की सेना तकोआ मरुभूमि में बहुत सवेरे गई। जब वे बढ़ना आरम्भ कर रहे थे, यहोशापात खड़ा हुआ और उसने कहा, “यहूदा और यरूशलेम के लोगों, मेरी सुनों। अपने यहोवा परमेश्वर में विश्वास रखो और तब तुम शक्ति के साथ खड़े रहोगे। यहोवा के नबियों में विश्वास रखो। तुम लोग सफल होगे!” 21 यहोशापात ने लोगों का सुझाव सुना। तब उसने यहोवा के लिये गायक चुने। वे गायक यहोवा की स्तुति के लिये चुने गए थे क्योंकि वह पवित्र और अद्भुत है। वे सेना के सामने कदम मिलाते हुए बढ़े और उन्होने यहोवा की स्तुति की। इन गायकों ने गाया, “परमेश्वर को धन्यवाद दो क्योंकि उसका प्रेम सदैव रहता है!” *परमेश्वर को … रहता है देखें भजन. 136 22 ज्योंहो उन लोगों ने गाना गाकर यहोवा की स्तुति आरम्भ की, यहोवा ने अज्ञात गुप्त आक्रमण अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोगों पर कराया। ये वे लोग थे जो यहूदा पर आक्रमण करने आए थे। वे लोग पिट गए। 23 अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आये लोगों के विरुद्ध युद्ध आरम्भ किया। अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आए लोगों को मार डाला और नष्ट कर दिया। जब वे सेईर के लोगों को मार चुके तो उन्होने एक दूसरे को मार डाला। 24 यहूदा के लोग मरुभूमि में सामना करने के बिन्दु पर आए। उन्होने शत्रु की विशाल सेना को देखा। किन्तु उन्होने केवल शवो को भूमि पर पड़े देखा। कोई व्यक्ति बचा न था। 25 यहोशापात और उसकी सेना शवों से बहुमूल्य चीजें लेने आई। उन्हें बहुत से जानवर, धन, वस्त्र और कीमती चीज़ें मिलीं। यहोशापात और उसकी सेना ने उन्हें अपने लिये ले लिया। चीज़ें उससे अधिक थीं जितना यहोशापात और उसकी सेना ले जा सकती थी। उनको शवों से कीमती चीज़ें इकट्ठी करने में तीन दिन लगे, क्योंकि वे बहुत अधिक थीं। 26 चौथे दिन यहोशापात और उसकी सेना बराका की घाटी में मिले। उन्होने उस स्थान पर यहोवा की स्तुति की। यही कारण है कि उस स्थान का नाम आज तक “बराका की घाटी” है। 27 तब यहोशापात यहूदा और यरूशलेम के लोगों को यरूशलेम लौटा कर ले गया। यहोवा ने उन्हें अत्यन्त प्रसन्न किया क्योंकि उनके शत्रु पराजित हो गये थे। 28 वे यरूशलेम में वीणा सितार और तुरहियों के साथ आये और यहोवा के मन्दिर में गए। 29 सभी देशों के सारे राज्य यहोवा से भयभीत थे क्योंकि उन्होने सुना कि यहोवा इस्राएल के शत्रुओं से लड़ा। 30 यही कारण है कि यहोशापात के राज्य में शान्ति रही। यहोशापात के परमेश्वर ने उसे चारों ओर से शान्ति दी। यहोशापात के शासन का अन्त 31 यहोशापात ने यहूदा देश पर शासन किया। यहोशापात ने जब शासन आरम्भ किया तो वह पैंतीस वर्ष का था। उसने पच्चीस वर्ष यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम अजूबा था। अजूबा शिल्ही की पुत्री थी। 32 यहोशापात सच्चे मार्ग पर अपने पिता आसा की तरह रहा। यहोशापात, आसा के मार्ग का अनुसरण करने से मुड़ा नही। यहोशापात ने यहोवा की दृष्टि में उचित किया। 33 किन्तु उच्च स्थान नही हटाये गये और लोगों ने अपना हृदय उस परमेश्वर का अनुसरण करने में नही लगाया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। 34 यहोशापात ने आरम्भ से अन्त तक जो कुछ किया वह येहू की रचनाओं में लिखा है। येहू के पिता का नाम हनानी था। ये बातें इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखी हुई हैं। 35 कुछ समय पश्चात यहूदा के राजा यहोशापात ने इस्राएल के राजा अहज्याह के साथ सन्धि की। अहज्याह ने बुरा किया। 36 यहोशापात ने अहज्याह का साथ तर्शीश नगर में जहज जाने देने में दिया। उन्होने जहाजों को एस्योन गेबेर नगर में बनाया। 37 तब एलीआजर ने यहोशापात के विरुद्ध कहा। एलीआजर के पिता का नाम दोदावाह था। एलीआजर मारेशा नगर का था। उसने कहा, “यहोशापात, तुम अहज्याह के साथ मिल गये हो, यही कारण है कि यहोवा तुम्हारे कार्य को नष्ट करेगा।” जहाज टूट गए, अत: यहोशापात और अहज्याह उन्हें तर्शीश नगर को न भेज सके।
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