पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
2 इतिहास
1. {यहूदा का राजा योशिय्याह} [PS] योशिय्याह जब राजा बना, आठ वर्ष का था। वह यरूशलेम में इकतिस वर्ष तक राजा रहा।
2. योशिय्याह ने वही किया जो उचित था। उसने वही किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। उसने अपने पूर्वज दाऊद की तरह अच्छे काम किये। योशिय्याह उचित काम करने से नहीं हटा।
3. जब योशिय्याह आठ वर्ष तक राजा रह चुका तो वह अपने पूर्वज दाऊद के अनुसार परमेश्वर का अनुसरण करने लगा। योशिय्याह बच्चा ही था जब उसने परमेश्वर की आज्ञा माननी आरम्भ की। जब योशिय्याह राजा के रूप में बारह वर्ष का हुआ, उसने उच्च स्थानों, अशेरा—स्तम्भों पर खुदी मूर्तियों औऱ यहूदा और यरूशलेम में ढली मूर्तियों को नष्ट करना आरम्भ कर दिया।
4. लोगों ने बाल देवताओं की वेदियाँ तोड़ दीं। उन्होंने यह योशिय्याह के सामने किया। तब योशिय्याह ने सुगन्धि के लिये बनी उन वेदियों को नष्ट कर डाला जो लोगों से भी बहुत ऊँची उठी थीं। उसने खुदी मूर्तियों तथा ढली मूर्तियों को तोड़ डाला। उसने उन मूर्तियों को पीटकर चूर्ण बना दिया। तब योशिय्याह ने उस चूर्ण को उन लोगों की कब्रों पर डाला जो बाल देवताओं को बलि चढ़ाते थे।
5. योशिय्याह ने उन याजकों की हड्डियों तक को जलाया जिन्होंने अपनी वेदियों पर बाल—देवताओं की सेवा की थी। इस प्रकार योशिय्याह ने मूर्तियों और मूर्ति पूजा को यहूदा और यरूशलेम से नष्ट किया।
6. योशिय्याह ने यही काम मनश्शे, एप्रैम, शिमोन और नप्ताली तक के राज्यों के नगरों में किया। उसने वही उन सब नगरों के पास के खंडहरों के साथ किया।
7. योशिय्याह ने वेदियों और अशेरा—स्तम्भों को तोड़ दिया। उसने मूर्तियों को पीटकर चूर्ण बना दिया। उसने पूरे इस्राएल देश में उन सुगन्धि—वेदियों को काट डाला जो बाल की पूजा में काम आती थीं। तब योशिय्याह यरूशलेम लौट गया। [PE][PS]
8. जब योशिय्याह यहूदा के राजा के रूप में अपने अट्ठारहवें वर्ष में था, उसने शापान, मासेयाह और योआह को अपने यहोवा परमेश्वर के मन्दिर की मरम्मत करने के लिये भेजा। शापान के पिता का नाम असल्याह था। मासेयाह नगर प्रमुख था और योआह के पिता का नाम योआहाज था। योआह वह व्यक्ति था जिसने जो कुछ हुआ उसे लिखा। (वह लेखक था)। [PE][PS] योशिय्याह ने मन्दिर को स्थापित करने का आदेश दिया जिससे वह यहूदा और मन्दिर दोनों को स्वच्छ रख सके।
9. वे लोग महा याजक हिल्किय्याह के पास आए। उन्होंने वह धन उसे दिया जो लोगों ने परमेश्वर के मन्दिर के लिये दिया था। लेवीवंशी द्वारपालों ने यह धन मनश्शे, एप्रैम और बचे सभी इस्राएलियों से इकट्ठा किया। उन्होंने यह धन सारे यहूदा, बिन्यामीन और यरूशलेम में रहने वाले सभी लोगों से भी इकट्ठा किया।
10. तब लेवीवंशियों ने उन व्यक्तियों को यह धन दिया जो यहोवा के मन्दिर के काम की देख—रेख कर रहे थे और निरीक्षकों ने उन मज़दूरों को यह धन दिया जो यहोवा के मन्दिर को फिर बना कर स्थापित कर रहे थे।
11. उन्होंने बढ़ईयों और राजगीरों को पहले से कटी बड़ी चट्टानों को खरीदने के लिये और लकड़ी खरीदने के लिये धन दिया। लकड़ी का उपयोग भवनों को फिर से बनाने और भवन के शहतीरों के लिये किया गया। भूतकाल में यहूदा के राजा मन्दिरों की देखभाल नहीं करते थे। वे भवन पुराने और खंडहर हो गए थे।
12. (12-13) लोगों ने विश्वासपूर्वक काम किया। उनके निरीक्षक यहत और ओबद्याह थे। यहत और ओबद्याह लेवीवंशी थे और वे मरारी के वंशज थे। अन्य निरीक्षक जकर्याह और मशुल्लाम थे। वे कहात के वंशज थे। जो लेवीवंशी संगीत—वाद्या बजाने में कुशल थे, वे भी चिज़ों को ढोने वाले तथा अन्य मज़दूरों का निरीक्षण करते थे। कुछ लेवीवंशी सचिव, अधिकारी और द्वारपाल का काम करते थे। [PS]
13. {व्यवस्था की पुस्तक मिली} [PS] लेवीवंशियों ने उस धन को निकाला जो यहोवा के मन्दिर में था। उस समय याजक हिल्किय्याह ने यहोवा के व्यवस्था की वह पुस्तक प्राप्त की जो मूसा द्वारा दी गई थी।
14. हिल्किय्याह ने सचिव शापान से कहा, “मैंने यहोवा के मन्दिर में व्यवस्था की पुस्तक पाई है!” हिल्कय्याह ने शापान को पुस्तक दी।
15. शापान उस पुस्तक को राजा योशिय्याह के पास लाया। शापान ने राजा को सूचना दी, “तुम्हारे सेवक हर काम कर रहे हैं जो तुमने करने को कहा है।
16. उन्होंने यहोवा के मन्दिर से धन को निकाला और उसे निरीक्षकों एवं मज़दूरों को दे रहे हैं।”
17. तब शापान ने राजा योशिय्याह से कहा, “याजक हिल्किय्याह ने मुझे एक पुस्तक दी है।” तब शापान ने पुस्तक से पढ़ा। जब वह पढ़ रहा था, तब वह राजा के सामने था।
18. जब राजा योशिय्याह ने नियमों को पढ़े जाते हुए सुना, उसने अपने वस्त्र फाड़ लिये।
19. तब राजा ने हिल्किय्याह शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, सचिव शापान और सेवक असायाह को आदेश दिया।
20. राजा ने कहा, “जाओ, मेरे लिये तथा इस्राएल और यहूदा में जो लोग बचे हैं उनके लिये यहोवा से याचना करो। जो पुस्तक मिली है उसके कथनों के बारे में पूछो। यहोवा हम लोगों पर बहुत क्रोधित है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने यहोवा के कथनों का पालन नहीं किया। उन्होंने वे सब काम नहीं किये जो यह पुस्तक करने को कहती है!” [PE][PS]
21. हिल्किय्याह और राजा के सेवक नबिया हुल्दा के पास गए, हुल्दा शल्लूम की पत्नी थी। शल्लूम तोखत का पुत्र था। तोखत हस्रा का पुत्र था। हस्रा राजा के वस्त्रों की देखरेख करता था। हुल्दा यरूशलेम के नये भाग में रहती थी। हिल्किय्याह और राजा के सेवकों ने हुल्दा को सब कुछ बताया जो हो चुका था।
22. हुल्दा ने उनसे कहा, “हस्राएल का परमेश्वर यहोवा जो कहता है वह यह है: राजा योशिय्याह से कहो:
23. यहोवा जो कहता है वह यह है, ‘मैं इस स्थान और यहाँ के निवासियों पर विपत्ति डालूँगा। मैं सभी भंयकर विपत्तियों को जो यहूदा के राजा के सामने पढ़ी पुस्तक में लिखी गई हैं, लाऊँगा।
24. मैं यह इसलिये करूँगा कि लोगों ने मुझे छोड़ा और अन्य देवताओं के लिये सुगन्धि जलाई। उन लोगों ने मुझे क्रोधित किया क्योंकि उन्होंने सभी बुरी बातें की हैं। इसलिये मैं अपना क्रोध इस स्थान पर उतारुँगा। मेरा क्रोध तप्त अग्निज्वाला की तरह बुझाया नहीं जा सकता!’ [PE][PS]
25. “किन्तु यहूदा के राजा योशिय्याह से कहो। उसने यहोवा से पूछने के लिये तुम्हें भेजा। इस्राएल का यहोवा परमेश्वर, ‘जिन कथनों को तुमने कुछ समय पहले सुना है, उनके विषय में कहता है:
26. योशिय्याह तुमने पश्चाताप किया और तुमने अपने को विनम्र किया और अपने वस्त्रों को फाड़ा, तथा तुम मेरे सामने चिल्लाए। अत: क्योंकि तुम्हारा हृदय कोमल है।
27. मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के पास ले जाऊँगा। तुम अपनी कब्र में शान्तिपूर्वक जाओगे। तुम्हें उन विपत्तियों में से कोई भी नहीं देखनी पड़ेंगी जिन्हें मैं इस स्थान और यहाँ रहने वाले लोगों पर लाऊँगा।’ ” हिल्किय्याह और राजा के सेवक योशिय्याह के पास यह सन्देश लेकर लौटे। [PE][PS]
28. राजा योशिय्याह ने यहूदा औऱ यरूशलेम के सभी अग्रजों को अपने पास आने और मिलने के लिये बुलाया।
29. राजा, यहोवा के मन्दिर में गया। यहूदा के सभी लोग, यरूशलेम में रहने वाले लोग, याजक, लेवीवंशी और सभी साधारण व असाधारण लोग योशिय्याह के साथ थे। योशिय्याह ने उन सबके सामने साक्षी की पुस्तक के कथन पढ़े। वह पुस्तक यहोवा के मन्दिर में मिली थी।
30. तब राजा अपने स्थान पर खड़ा हुआ। उसने यहोवा के साथ वाचा की। उसने यहोवा का अनुसरण करने की और यहोवा के आदेशों, विधियों और नियमों का पालन करने की वाचा की। योशिय्याह पूरे हृदय और आत्मा से आज्ञा पालन करने को सहमत हुआ। वह पुस्तक में लिखे वाचा के कथनों का पालन करने को सहमत हुआ।
31. तब योशिय्याह ने यरूशलेम और बिन्यामीन के सभी लोगों से वाचा को स्वीकार करने की प्रतिज्ञा कराई। यरूशलेम में लोगों ने परमेश्वर की वाचा का पालन किया, उस परमेश्वर की वाचा का जिसकी आज्ञा का पालन उनके पूर्वर्जों ने किया था।
32. योशिय्याह ने उन सभी स्थानों से मूर्तियों को फेंक दिया जो स्थान इस्राएल के लोगों के थे। यहोवा उन मूर्तियों से घृणा करता है। योशिय्याह ने इस्राएल के हर एक व्यक्ति को अपने यहोवा परमेश्वर की सेवा में पहुँचाया। जब तक योशिय्याह जीवित रहा, लोगों ने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना बन्द नहीं किया। [PE]
33.

Notes

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Total 36 अध्याय, Selected अध्याय 34 / 36
2 इतिहास 34:1
यहूदा का राजा योशिय्याह 1 योशिय्याह जब राजा बना, आठ वर्ष का था। वह यरूशलेम में इकतिस वर्ष तक राजा रहा। 2 योशिय्याह ने वही किया जो उचित था। उसने वही किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। उसने अपने पूर्वज दाऊद की तरह अच्छे काम किये। योशिय्याह उचित काम करने से नहीं हटा। 3 जब योशिय्याह आठ वर्ष तक राजा रह चुका तो वह अपने पूर्वज दाऊद के अनुसार परमेश्वर का अनुसरण करने लगा। योशिय्याह बच्चा ही था जब उसने परमेश्वर की आज्ञा माननी आरम्भ की। जब योशिय्याह राजा के रूप में बारह वर्ष का हुआ, उसने उच्च स्थानों, अशेरा—स्तम्भों पर खुदी मूर्तियों औऱ यहूदा और यरूशलेम में ढली मूर्तियों को नष्ट करना आरम्भ कर दिया। 4 लोगों ने बाल देवताओं की वेदियाँ तोड़ दीं। उन्होंने यह योशिय्याह के सामने किया। तब योशिय्याह ने सुगन्धि के लिये बनी उन वेदियों को नष्ट कर डाला जो लोगों से भी बहुत ऊँची उठी थीं। उसने खुदी मूर्तियों तथा ढली मूर्तियों को तोड़ डाला। उसने उन मूर्तियों को पीटकर चूर्ण बना दिया। तब योशिय्याह ने उस चूर्ण को उन लोगों की कब्रों पर डाला जो बाल देवताओं को बलि चढ़ाते थे। 5 योशिय्याह ने उन याजकों की हड्डियों तक को जलाया जिन्होंने अपनी वेदियों पर बाल—देवताओं की सेवा की थी। इस प्रकार योशिय्याह ने मूर्तियों और मूर्ति पूजा को यहूदा और यरूशलेम से नष्ट किया। 6 योशिय्याह ने यही काम मनश्शे, एप्रैम, शिमोन और नप्ताली तक के राज्यों के नगरों में किया। उसने वही उन सब नगरों के पास के खंडहरों के साथ किया। 7 योशिय्याह ने वेदियों और अशेरा—स्तम्भों को तोड़ दिया। उसने मूर्तियों को पीटकर चूर्ण बना दिया। उसने पूरे इस्राएल देश में उन सुगन्धि—वेदियों को काट डाला जो बाल की पूजा में काम आती थीं। तब योशिय्याह यरूशलेम लौट गया। 8 जब योशिय्याह यहूदा के राजा के रूप में अपने अट्ठारहवें वर्ष में था, उसने शापान, मासेयाह और योआह को अपने यहोवा परमेश्वर के मन्दिर की मरम्मत करने के लिये भेजा। शापान के पिता का नाम असल्याह था। मासेयाह नगर प्रमुख था और योआह के पिता का नाम योआहाज था। योआह वह व्यक्ति था जिसने जो कुछ हुआ उसे लिखा। (वह लेखक था)। योशिय्याह ने मन्दिर को स्थापित करने का आदेश दिया जिससे वह यहूदा और मन्दिर दोनों को स्वच्छ रख सके। 9 वे लोग महा याजक हिल्किय्याह के पास आए। उन्होंने वह धन उसे दिया जो लोगों ने परमेश्वर के मन्दिर के लिये दिया था। लेवीवंशी द्वारपालों ने यह धन मनश्शे, एप्रैम और बचे सभी इस्राएलियों से इकट्ठा किया। उन्होंने यह धन सारे यहूदा, बिन्यामीन और यरूशलेम में रहने वाले सभी लोगों से भी इकट्ठा किया। 10 तब लेवीवंशियों ने उन व्यक्तियों को यह धन दिया जो यहोवा के मन्दिर के काम की देख—रेख कर रहे थे और निरीक्षकों ने उन मज़दूरों को यह धन दिया जो यहोवा के मन्दिर को फिर बना कर स्थापित कर रहे थे। 11 उन्होंने बढ़ईयों और राजगीरों को पहले से कटी बड़ी चट्टानों को खरीदने के लिये और लकड़ी खरीदने के लिये धन दिया। लकड़ी का उपयोग भवनों को फिर से बनाने और भवन के शहतीरों के लिये किया गया। भूतकाल में यहूदा के राजा मन्दिरों की देखभाल नहीं करते थे। वे भवन पुराने और खंडहर हो गए थे। 12 (12-13) लोगों ने विश्वासपूर्वक काम किया। उनके निरीक्षक यहत और ओबद्याह थे। यहत और ओबद्याह लेवीवंशी थे और वे मरारी के वंशज थे। अन्य निरीक्षक जकर्याह और मशुल्लाम थे। वे कहात के वंशज थे। जो लेवीवंशी संगीत—वाद्या बजाने में कुशल थे, वे भी चिज़ों को ढोने वाले तथा अन्य मज़दूरों का निरीक्षण करते थे। कुछ लेवीवंशी सचिव, अधिकारी और द्वारपाल का काम करते थे। व्यवस्था की पुस्तक मिली 13 लेवीवंशियों ने उस धन को निकाला जो यहोवा के मन्दिर में था। उस समय याजक हिल्किय्याह ने यहोवा के व्यवस्था की वह पुस्तक प्राप्त की जो मूसा द्वारा दी गई थी। 14 हिल्किय्याह ने सचिव शापान से कहा, “मैंने यहोवा के मन्दिर में व्यवस्था की पुस्तक पाई है!” हिल्कय्याह ने शापान को पुस्तक दी। 15 शापान उस पुस्तक को राजा योशिय्याह के पास लाया। शापान ने राजा को सूचना दी, “तुम्हारे सेवक हर काम कर रहे हैं जो तुमने करने को कहा है। 16 उन्होंने यहोवा के मन्दिर से धन को निकाला और उसे निरीक्षकों एवं मज़दूरों को दे रहे हैं।” 17 तब शापान ने राजा योशिय्याह से कहा, “याजक हिल्किय्याह ने मुझे एक पुस्तक दी है।” तब शापान ने पुस्तक से पढ़ा। जब वह पढ़ रहा था, तब वह राजा के सामने था। 18 जब राजा योशिय्याह ने नियमों को पढ़े जाते हुए सुना, उसने अपने वस्त्र फाड़ लिये। 19 तब राजा ने हिल्किय्याह शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, सचिव शापान और सेवक असायाह को आदेश दिया। 20 राजा ने कहा, “जाओ, मेरे लिये तथा इस्राएल और यहूदा में जो लोग बचे हैं उनके लिये यहोवा से याचना करो। जो पुस्तक मिली है उसके कथनों के बारे में पूछो। यहोवा हम लोगों पर बहुत क्रोधित है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने यहोवा के कथनों का पालन नहीं किया। उन्होंने वे सब काम नहीं किये जो यह पुस्तक करने को कहती है!” 21 हिल्किय्याह और राजा के सेवक नबिया हुल्दा के पास गए, हुल्दा शल्लूम की पत्नी थी। शल्लूम तोखत का पुत्र था। तोखत हस्रा का पुत्र था। हस्रा राजा के वस्त्रों की देखरेख करता था। हुल्दा यरूशलेम के नये भाग में रहती थी। हिल्किय्याह और राजा के सेवकों ने हुल्दा को सब कुछ बताया जो हो चुका था। 22 हुल्दा ने उनसे कहा, “हस्राएल का परमेश्वर यहोवा जो कहता है वह यह है: राजा योशिय्याह से कहो: 23 यहोवा जो कहता है वह यह है, ‘मैं इस स्थान और यहाँ के निवासियों पर विपत्ति डालूँगा। मैं सभी भंयकर विपत्तियों को जो यहूदा के राजा के सामने पढ़ी पुस्तक में लिखी गई हैं, लाऊँगा। 24 मैं यह इसलिये करूँगा कि लोगों ने मुझे छोड़ा और अन्य देवताओं के लिये सुगन्धि जलाई। उन लोगों ने मुझे क्रोधित किया क्योंकि उन्होंने सभी बुरी बातें की हैं। इसलिये मैं अपना क्रोध इस स्थान पर उतारुँगा। मेरा क्रोध तप्त अग्निज्वाला की तरह बुझाया नहीं जा सकता!’ 25 “किन्तु यहूदा के राजा योशिय्याह से कहो। उसने यहोवा से पूछने के लिये तुम्हें भेजा। इस्राएल का यहोवा परमेश्वर, ‘जिन कथनों को तुमने कुछ समय पहले सुना है, उनके विषय में कहता है: 26 योशिय्याह तुमने पश्चाताप किया और तुमने अपने को विनम्र किया और अपने वस्त्रों को फाड़ा, तथा तुम मेरे सामने चिल्लाए। अत: क्योंकि तुम्हारा हृदय कोमल है। 27 मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के पास ले जाऊँगा। तुम अपनी कब्र में शान्तिपूर्वक जाओगे। तुम्हें उन विपत्तियों में से कोई भी नहीं देखनी पड़ेंगी जिन्हें मैं इस स्थान और यहाँ रहने वाले लोगों पर लाऊँगा।’ ” हिल्किय्याह और राजा के सेवक योशिय्याह के पास यह सन्देश लेकर लौटे। 28 राजा योशिय्याह ने यहूदा औऱ यरूशलेम के सभी अग्रजों को अपने पास आने और मिलने के लिये बुलाया। 29 राजा, यहोवा के मन्दिर में गया। यहूदा के सभी लोग, यरूशलेम में रहने वाले लोग, याजक, लेवीवंशी और सभी साधारण व असाधारण लोग योशिय्याह के साथ थे। योशिय्याह ने उन सबके सामने साक्षी की पुस्तक के कथन पढ़े। वह पुस्तक यहोवा के मन्दिर में मिली थी। 30 तब राजा अपने स्थान पर खड़ा हुआ। उसने यहोवा के साथ वाचा की। उसने यहोवा का अनुसरण करने की और यहोवा के आदेशों, विधियों और नियमों का पालन करने की वाचा की। योशिय्याह पूरे हृदय और आत्मा से आज्ञा पालन करने को सहमत हुआ। वह पुस्तक में लिखे वाचा के कथनों का पालन करने को सहमत हुआ। 31 तब योशिय्याह ने यरूशलेम और बिन्यामीन के सभी लोगों से वाचा को स्वीकार करने की प्रतिज्ञा कराई। यरूशलेम में लोगों ने परमेश्वर की वाचा का पालन किया, उस परमेश्वर की वाचा का जिसकी आज्ञा का पालन उनके पूर्वर्जों ने किया था। 32 योशिय्याह ने उन सभी स्थानों से मूर्तियों को फेंक दिया जो स्थान इस्राएल के लोगों के थे। यहोवा उन मूर्तियों से घृणा करता है। योशिय्याह ने इस्राएल के हर एक व्यक्ति को अपने यहोवा परमेश्वर की सेवा में पहुँचाया। जब तक योशिय्याह जीवित रहा, लोगों ने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना बन्द नहीं किया। 33
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