3. मैं सहायता पाने को परमेश्वर तक दौड़ूँगा। वह मेरी सुरक्षा-चट्टान है। परमेश्वर मेरी ढाल है। उसकी शक्ति मेरी रक्षक है। यहोवा मेरी ऊँचा गढ़ है, और मेरी सुरक्षा का स्थान है। मेरा रक्षक कष्टों से मेरी रक्षा करता है।
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4. उन्होंने मेरा उपहास किया। मैंने सहायता के लिये यहोवा को पुकारा, यहोवा ने मुझे मेरे शत्रुओं से बचाया!
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5. मेरे शत्रु मुझे मारना चाहते थे। मृत्यु-तरंगों ने मुझे लपेट लिया। विपत्तियाँ बाढ़-सी आई, उन्होंने मुझे भयभीत किया।
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7. मैं विपत्ति में था, किन्तु मैंने यहोवा को पुकारा। हाँ, मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा वह अपने उपासना गृह में था, उसने मेरी पुकार सुनी, मेरी सहायता की पुकार उसके कानों में पड़ी।
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8. तब धरती में कम्पन हुआ, धरती डोल उठी, आकाश के आधार स्तम्भ काँप उठे। क्यों? क्योंकि यहोवा क्रोधित था।
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16. धरती की नींव का आवरण हट गया, तब लोग सागर की गहराई देख सकते थे। वे हटे, क्योंकि यहोवा ने बातें की, उसकी अपनी नाक से तप्त वायु निकलने के कारण।
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18. उसने उन लोगों से बचाया, जो घृणा करते थे, मुझसे मेरे शत्रु मुझसे अधिक शक्तिशाली थे, अत: उसने मेरी रक्षा की।
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21. यहोवा मुझे पुरस्कार देता है, क्योंकि मैंने उचित किया। यहोवा मुझे पुरस्कार देता है, क्योंकि मेरे हाथ पाप रहित हैं।
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22. क्यों? क्योंकि मैंने यहोवा के नियमों का पालन किया। मैंने अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप नहीं किया।
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25. यही कारण है कि यहोवा मुझे पुरस्कार देता है, मैं न्यायोचित रहता हूँ। यहोवा देखता है, कि मैं स्वच्छ जीवन बिताता हूँ।
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26. यदि कोई व्यक्ति तुझसे प्रेम करेगा तो तू, अपनी प्रेमपूर्ण दया उस पर करोगा। यदि कोई तेरे प्रति सच्चा है, तब तू भी उसके प्रति सच्चा होगा!
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27. यदि कोई तेरे लिये अच्छा जीवन बिताता है, तब तू भी उसके लिये अच्छा बनेगा। किन्तु यदि कोई व्यक्ति तेरे विरुद्ध होता है, तब तू भी उसके विरुद्ध होगा।
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30. तू सैनिकों के दल को हराने में, मेरी सहायता करता है। परमेश्वर की शक्ति से मैं दीवर के ऊपर चढ़ सकता हूँ।
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31. परमेश्वर की शक्ति पूर्ण है। यहोवा के वचन की जाँच हो चुकी है। यहोवा रक्षा के लिये, अपने पास भागने वाले हर व्यक्ति की ढाल है।
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38. मैंने अपने शत्रुओं का पीछा किया, मैंने उन्हें नष्ट किया, मैं तब तक नहीं लौटा, जब तक शत्रु नष्ट न हुए।
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39. मैंने अपने शत्रुओं को नष्ट किया है, मैंने उन्हें पूरी तरह नष्ट किया है। वे फिर उठ नहीं सकते, हाँ मेरे शत्रु मेरे पैरों के तले गिरे।
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42. मेरे शत्रुओं ने सहायता चाही, किन्तु उनका रक्षक कोई नहीं था। उन्होंने यहोवा से सहायता माँगी, लेकिन उसने उत्तर नहीं दिया।
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43. मैं अपने शत्रुओं को कूटकर टुकड़े-टुकड़े करता हूँ, वे भूमि पर धूलि से हो जाते हैं। मैंने उन्हें सड़क की कीचड़ की तरह रौंद दिया।
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44. तूने तब भी मुझे बचाया है, जब मेरे लोगों ने मेरे विरुद्ध लड़ाई की। तूने मुझे राष्ट्रों का शासक बनाये रखा, वे लोग भी मेरी सेवा करेंगे, जिन्हें मैं नहीं जानता।
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45. अन्य देशों के लोग मेरी आज्ञा मानते हैं, जैसे ही सुनते हैं, तो शीघ्र ही मेरी आज्ञा स्वीकार करते हैं।
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47. यहोवा शाश्वत है, मेरी आश्रय चट्टान की स्तुति करो! परमेश्वर महान है! वह आश्रय-चट्टान है, जो मेरा रक्षक है।
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49. वह मुझे मेरे शत्रुओं से मुक्त करता है। हाँ, तूने मुझे मेरे शत्रुओं से ऊपर उठाया। तू मुझे, प्रहार करने के इच्छुकों से बचाता है।
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50. यहोव, इसी कारण, हे यहोवा मैंने राष्ट्रों के बीच में तुझ को धन्यवाद दिया, यही कारण है कि मैं तेरे नाम की महिमा गाता हूँ।
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51. यहोवा अपने राजा की सहायता, युद्ध में विजय पाने में करता है, योहवा अपने चुने हुये राजा से प्रेम दया करता है। वह दाऊद और उसकी सन्तान पर सदा दयालु रहेगा।
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