1. {तीम अतिथि} [PS] बाद में यहोवा फिर इब्राहीम के सामने प्रकट हुआ। इब्राहीम मस्रे के बांज के पेड़ों के पास रहता था। एक दिन, दिन के सबसे गर्म पहर में इब्राहीम अपने तम्बू के दरवाज़े पर बैठा था।
2. इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा और अपने सामने तीन पुरुषों को खड़े पाया। जब इब्राहीम ने उनको देखा, वह उनके पास गया और उन्हें प्रणाम किया।
3. इब्राहीम ने कहा, “महोदयों, [*महोदय इस हिब्रू शब्द का अर्थ “सामन्त” या “यहोवा” हो सकता है। इससे पता चल सकता है कि वे साधारण पुरुष नहीं थे।] आप अपने इस सेवक के साथ ही थोड़ी देर ठहरें।
4. मैं आप लोगों के पैर धोने के लिए पानी लाता हूँ। आप पेड़ों के नीचे आराम करें।
5. मैं आप लोगों के लिए कुछ भोजन लाटा हूँ और आप लोग जितना चाहें खाए। इसके बाद आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।” [PE][PS] तीनों ने कहा, “यह बहुत अच्छा है। तुम जैसा कहते हो, करो।” [PE][PS]
6. इब्राहीम जल्दी से तम्बू में घुसा। इब्राहीम ने सारा से कहा, “जल्दी से तीन रोटियों के लिए आटा तैयार करो।”
7. तब इब्राहीम अपने मवेशियों की ओर दौड़ा। इब्राहीम ने सबसे अच्छा एक जवान बछड़ा लिया। इब्राहीम ने बछड़ा नौकर को दिया। इब्राहीम ने नौकर से कहा कि तुम जल्दी करो, इस बछड़े को मारो और भोजन के लिए तैयार करो।
8. इब्राहीम ने तीनों को भोजन के लिए माँस दिया। उसने दूध और मक्खन दिया। जब तक तीनों पुरुष खाते रहे तब तक इब्राहीम पेड़ के नीचे उनके पास खड़ा रहा। [PE][PS]
9. उन व्यक्तियों ने इब्राहीम से कहा, “तुम्हारी पत्नी सारा कहाँ है?” [PE][PS] इब्राहीम ने कहा, “वह तम्बू में है।” [PE][PS]
10. तब यहोवा ने कहा, “मैं बसन्त में फिर आऊँगा उस समय तुम्हारी पत्नी सारा एक पुत्र को जन्म देगी।” [PE][PS] सारा तम्बू में सुन रही थी और उसने इन बातों को सुना।
11. इब्राहीम और सारा दोनों बहुत बूढ़े थे। सारा प्रसव की उम्र को पार कर चुकी थी।
12. सारा मन ही मन मुस्करायी। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने अपने आप से कहा, “मैं और मेरे पति दोनों ही बूढे हैं। मैं बच्चा जनने के लिए काफी बूढ़ी हूँ।” [PE][PS]
13. तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, “सारा हंसी और बोली, ‘मैं इतनी बूढ़ी हूँ कि बच्चा जन नहीं सकती।’
14. क्या यहोवा के लिए कुछ भी असम्भव है? नही, मैं फिर बसन्त में अपने बताए समय पर आऊँगा और तुम्हारी पत्नी सारा पुत्र जनेगी।” [PE][PS]
15. लेकिन सारा ने कहा, “मैं हंसी नहीं।” (उसने ऐसा कहा, क्योंकि वह डरी हुई थी।) [PE][PS] लेकिन यहोवा ने कहा, “नहीं, मैं मानता हूँ कि तुम्हारा कहना सही नहीं है। तुम ज़रूर हँसी।” [PE][PS]
16. तब वे पुरुष जाने के लिए उठे। उन्होंने सदोम की ओर देखा और उसी ओर चल पड़े। इब्राहीम उनको विदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ गया। [PS]
17. {परमेश्वर के साथ इब्राहीम का सौदा} [PS] यहोवा ने मन में कहा, “क्या मैं इब्राहीम से वह कह दूँ जो मैं अभी करूँगा?
18. इब्राहीम एक बड़ा और शक्तिशाली राष्ट्र बन जाएगा। इसी के कारण पृथ्वी के सारे मनुष्य आशीर्वाद पायेंगे।
19. मैंने इब्राहीम के साथ खास वाचा की है। मैंने यह इसलिए किया है कि वह अपने बच्चे और अपने वंशज को उस तरह जीवन बिताने के लिए आज्ञा देगा जिस तरह का जीवन बिताना यहोवा चाहता है। मैंने यह इसलिए किया कि वे सच्चाई से रहेंगे और भले बनेंगे। तब मैं यहोवा प्रतिज्ञा की गई चीज़ों को दूँगा।” [PE][PS]
20. तब यहोवा ने कहा, “मैंने बार—बार सुना है कि सदोम और अमोरा के लोग बहुत बुरे हैं।
21. इसलिए मैं वहाँ जाऊँगा और देखूँगा कि क्या हालत उतनी ही खराब है जितनी मैंने सुनी है। तब मैं ठीक—ठीक जान लूँगा।” [PE][PS]
22. तब वे लोग मुड़े और सदोम की ओर चल पड़े। किन्तु इब्राहीम यहोवा के सामने खड़ा रहा।
23. तब इब्राहीम यहोवा से बोला, “हे यहोवा, क्या तू बुरे लोगों को नष्ट करने के साथ अच्छे लोगों को भी नष्ट करने की बात सोच रहा है?
24. यदि उस नगर में पचास अच्छे लोग हों तो क्या होगा? क्या तब भी तू नगर को नष्ट कर देगा? निश्चय ही तू वहाँ रहने वाले पचास अच्छे लोगों के लिए उस नगर को बचा लेगा।
25. निश्चय ही तू नगर को नष्ट नहीं करेगा। बुरे लोगों को मारने के लिए तू पचास अच्छे लोगों को नष्ट नहीं करेगा। अगर ऐसा हुआ तो अच्छे और बुरे लोग एक ही हो जाएँगे, दोनों को ही दण्ड मिलेगा। तू पूरी पृथ्वी को न्याय देने वाला हऐ। मैं जानता हूँ कि तू न्याय करेगा।” [PE][PS]
26. तब यहोवा ने कहा, “यदि मुझे सदोम नगर में पचास अच्छे लोग मिले तो मैं पूरे नगर को बचा लूँगा।” [PE][PS]
27. तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा, तेरी तुलना में, मैं केवल धूलि और राख हूँ। लेकिन तू मुझको फिर थोड़ा कष्ट देने का अवसर दे और मुझे यह पूछने दे कि
28. यदि पाँच अच्छे लोग कम हों तो क्या होगा? यददि नगर में पैंतालीस ही अच्छे लोग हो तो क्या होगा। क्या तू केवल पाँच लोगों के लिए पूरा नगर नष्ट करेगा?” [PE][PS] तब यहोवा ने कहा, “यदि मुझे वहाँ पैंतालीस अच्छे लोग मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।” [PE][PS]
29. इब्राहीम ने फिर यहोवा से कहा, “यदि तुझे वहाँ केवल चालीस अच्छे ओग मिले तो क्या तू नगर को नष्ट कर देगा?” [PE][PS] यहोवा ने कहा, “यदि मुझे चालीस अच्छे लोग वहाँ मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।” [PE][PS]
30. तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा कृपा करके मुझ पर नाराज़ न हो। मुझे यह पूछने दे कि यदि नगर में केवल तीस अच्छे लोग हो तो क्या तू नगर को नष्ट करेगा?” [PE][PS] यहोवा ने कहा, “यदि मुझे तीस अच्छे लोग वहाँ मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।” [PE][PS]
31. तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा, क्या मैं तुझे फिर कष्ट दूँ और पूछ लूँ कि यदि बीस ही अच्छे लोग वहाँ हुए तो?” [PE][PS] यहोवा ने उत्तर दिया, “अगर मुझे बीस अच्छे लोग मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।” [PE][PS]
32. तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा तू मुझसे नाराज़ न हो मुझे अन्तिम बार कष्ट देने का मौका दे। यदि तुझे वहाँ दस अच्छे लोग मिले तो तू क्या करेगा?” [PE][PS] यहोवा ने कहा, “यदि मुझे नगर में दस अच्छे लोग मिले तो भी मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।” [PE][PS]
33. यहोवा न इब्राहीम से बोलना बन्द कर दिया, इसलिए यहोवा चला गया और इब्राहीम अपने घर लौट आया। [PE]