1. जब इसहाक बूढ़ा हो गया तो उसकी आँखें अच्छी न रहीं। इसहाक साफ-साफ नहीं देख सकता था। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया। इसहाक ने कहा, “पुत्र।” एसाव ने उत्तर दिया, “हाँ, पिताजी।”
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4. मेरा प्रिय भोजन बनाओ। उसे मेरेपास लाओ, और मैं इसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।”
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6. रिबका ने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुनो, मैंने तुम्हारे पिता को, तुम्हारे भाई से बातें करते सुना है।
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7. तुम्हारे पिता ने कहा, ‘मेरे खाने के लिए एक जानवर मारो। मेरे लिए भोजन बनाओ और मैं उसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुमको आशीर्वाद दूँगा।’
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9. पनी बकरियों के बीच जाओ और दो नई बकरियाँ लाओ। मैं उन्हें वैसा बनाऊँगी जैसा तुम्हारे पिता को प्रिय है।
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11. लेकिन याकूब ने अपनी माँ रिबका से कहा, ‘किन्तु मेरा भाई रोएदार हऐ और मैं उसकी तरह रोएदार नहीं हूँ।
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12. यदि मेरे पिता मुझको छूते हैं, यो जान जाएंगे कि मैं एसाव नहीं हूँ। तब वे मुझे आशीर्वाद नहईं देंगे। वे मुझे शाप देंगे क्योंकि मैंने उनके साथ चाल चलने का प्रयत्न किया।”
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13. इस पर रिबका ने उससे कहा, “यदि कोई परेशानी होगी तो मैं अपना दोष मान लूँगी। जो मैं कहती हूँ करो। जाओ, और मेरे लिए बकरियाँ लाओ।”
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14. इसलिए याकूब बाहर गया और उसने दो बकरियों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया।
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15. तब रिबका ने उस पोशाक को उठाया जो उसका बड़ा पुत्र एसाव पहनना पसंद करता था। रिबका ने अपने छोटे पुत्र याकूब को वे कपड़े पहना दिए।
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19. याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं आपका बड़ा पुत्र एसाव हूँ। आपने जो कहा हऐ, मैंने कर दिया है। अब आप बैठें और उन जानवरों को खाएं जिनका शिकार मैंने आपके लिए किया है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।”
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20. लेकिन इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “तुमने इतनी जल्दी शिकार करके जानवरों को कैसे मारा हैं?” याकूब ने उत्तर दिया, “क्योंकि आपके परमेश्वर यहोवा ने मुझे जल्दी ही जानवरों को प्राप्त करा दिया।”
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21. तब इसहाक ने याकूब से कहा, “मेरे पुत्र मेरे पास आओ जिससे मैं तुम्हें छू सकूँ। यदि मैं तुम्हें छू सकूँगा तो मैं यह जान जाऊँगा कि तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव ही हो।”
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22. याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, “तुम्हारी आवाज़ याकूब की आवाज़ जैसी है। लेकिन तुम्हारी बाहें एसाव की रोंएदार बाहों की तरह हैं।”
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23. इसहाक यह नहीं जान पाया कि यह याकूब है क्योंकि उसकी बाहें एसाव की बाहों की तरह रोएंदार थी। इसलिए इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया।
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25. तब इसहाक ने कहा, “भोजन लाओ। मैं इसे खाऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए याकूब ने उसे भोजन दिया और उसने खाया। याकूब ने उसे दाखमधु दी, और उसने उसे पिया।
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27. इसलिए याकूब अपने पिता के पास गया और उसे चूमा। इसहाक ने एसाव के कपड़ों की गन्ध पाई और उसको आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा, “अहा, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा से वरदान पाए खेतों की सुगन्ध की तरह है।
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29. सभी लोग तुम्हारी सेवा करें। राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें। तुम अपने भाईयों के ऊपर शासक होगेे। तुम्हारी माँ के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे और तुम्हारी आज्ञा मानेंगे। हर एक व्यक्ति जो तुम्हें शाप देगा, शाप पाएगा और हर एक व्यक्ति जो तुम्हें आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।”
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30. इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देना पूरा किया। तब ज्योंही याकूब अपने पिता इसहाक के पास से गया त्योंही एसाव शिकार करके अन्दर आया।
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31. एसाव ने अपनेपिता की पसंद का विशेष भोजन बनाया। एसाव इसे अपने पिता के पास लाया। उसने अपने पिटा से कहा, “पिताजी, उठें और उस भोजन को खाएं जो आपके पुत्र ने आपके लिए मारा है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।”
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33. तब इसहाक बहुत झल्ला गया और बोला, “तब तुम्हारे आने से पहले वह कौन था? जिसने भोजन पकाया और जो मेरे पास लाया। मैंने वह सब खाया और उसको आशीर्वाद दिया। अब अपने आशीर्वादों को लौटाने का समय निकल चुका है।”
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34. एसाव ने अपने पिता की बात सुनी। उसका मन बहुत गुस्से और कड़वाहट से भर गया। वह चीखा। वह अपने पिता से बोला, “पिताजी, तब मुझे भी आशीर्वाद दें।”
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36. एसाव ने कहा, “उसका नाम ही याकूब (“चालबाज़”) है। यह नाम उसके लिए ठीक ही है। उसका यह नाम बिल्कुल सही रखा गया है वह सचमुच में चालबाज़ हैम। उसने मुझे दो बार धोखा दिया। वह पहलौठा होने के मेरे अधिकार को ले ही चुका था और अब उसने मेरे हिस्से के आशीर्वाद को भी ले लिया। क्या आपने मेरे लिए कोई आशीर्वाद बचा रखा है?”
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37. इसहाक ने जवाब दिया, “नहीं, अब बहुत देर हो गई। मैंने याकूब को तुम्हारे ऊपर शासन करने का अधिकार दे दिया है। मैंने यह भी कह दिया कि सभी भाई उसके सेवक होंगे। मैंने उसे बहुत अधिक अन्न और दाखमधु का आशीर्वाद दिया है। पुत्र तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है।”
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38. किन्तु एसाव अपने पिता से माँगता रहा। “पिताजी, क्या आपके पास एक भी आशीर्वाद नहीं है? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दें।” यूँ एसाव रोने लगा।
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40. तुम्हें जीने के लिए संघर्ष करना होगा। और तुम अपने भाई के दास होगे। किन्तु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे, और उसके शासन से आज़ाद हो जाओगे।”
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41. इसके बाद इस आशीर्वाद के कारण एसाव याकूब से घृणा करता रहा। एसाव ने मन ही मन सोचा, “मेरा पिता जल्दी ही मरेगा और मैं उसका शोक मनाऊँगा। लेकिन उसके बाद मैं याकूब को मार डालूँगा।”
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42. रिबका ने एसाव द्वारा याकूब को मारने का षड़यन्त्र सुना। उसने याकूब को बुलाया और उससे कहा, “सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षडयन्त्र कर रहा है।
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45. थोड़े समय बाद तुम्हारा भाई भूल जाएगा कि तुमने उसके साथ क्या किया? तब मैं तुम्हें लौटाने के लिए एक नौकर को भेजूँगी। मैं एक ही दिन दोनों पुत्रों को खोना नहीं चाहती।”
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46. तब रिबका ने इसहाक से कहा, “तुम्हारे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। मैं इन स्त्रियों से परेशान हूँ क्योंकि ये हमारे लोगों में से नहीं हैं। यदि याकूब भी इन्हीं स्त्रियों में से किसी के साथ विवाह करता है तो मैं मर जाना चाहूँगी।”
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