पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
उत्पत्ति
1. {वसीयत के झगड़े} [PS] जब इसहाक बूढ़ा हो गया तो उसकी आँखें अच्छी न रहीं। इसहाक साफ—साफ नहीं देख सकता था। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया। इसहाक ने कहा, “पुत्र।” [PE][PS] एसाव ने उत्तर दिया, “हाँ, पिताजी।” [PE][PS]
2. इसहाक ने कहा, “देखो, मैं बूढ़ा तो गया। हो सकता है मैं जल्दी ही मर जाऊँ।
3. अब तू अपना तरकश और धनुष लेकर, मेरे लिए शिकार पर जाओ। मेरे खाने के लिए एक जानवर मार लाओ।
4. मेरा प्रिय भोजन बनाओ। उसे मेरेपास लाओ, और मैं इसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।”
5. इसलिए एसाव शिकार करने गया। [PE][PS] रिबका ने वे बातें सुन ली थी, जो इसहाक ने अपने पुत्र एसाव से कही।
6. रिबका ने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुनो, मैंने तुम्हारे पिता को, तुम्हारे भाई से बातें करते सुना है।
7. तुम्हारे पिता ने कहा, ‘मेरे खाने के लिए एक जानवर मारो। मेरे लिए भोजन बनाओ और मैं उसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुमको आशीर्वाद दूँगा।’
8. इसलिए पुत्र सुनो। मैं जो कहती हूँ, करो।
9. पनी बकरियों के बीच जाओ और दो नई बकरियाँ लाओ। मैं उन्हें वैसा बनाऊँगी जैसा तुम्हारे पिता को प्रिय है।
10. तब तुम वह भोजन अपने पिता के पास ले जाओगे और वह मरने से पहले तुमको ही आशीर्वाद देंगे।” [PE][PS]
11. लेकिन याकूब ने अपनी माँ रिबका से कहा, “किन्तु मेरा भाई रोएदार हऐ और मैं उसकी तरह रोएदार नहीं हूँ।
12. यदि मेरे पिता मुझको छूते हैं, यो जान जाएंगे कि मैं एसाव नहीं हूँ। तब वे मुझे आशीर्वाद नहईं देंगे। वे मुझे शाप [*शाप यह माँगना कि किसी का बुरा हो।] देंगे क्योंकि मैंने उनके साथ चाल चलने का प्रयत्न किया।” [PE][PS]
13. इस पर रिबका ने उससे कहा, “यदि कोई परेशानी होगी तो मैं अपना दोष मान लूँगी। जो मैं कहती हूँ करो। जाओ, और मेरे लिए बकरियाँ लाओ।” [PE][PS]
14. इसलिए याकूब बाहर गया और उसने दो बकरियों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया।
15. तब रिबका ने उस पोशाक को उठाया जो उसका बड़ा पुत्र एसाव पहनना पसंद करता था। रिबका ने अपने छोटे पुत्र याकूब को वे कपड़े पहना दिए।
16. रिबका ने बकरियों के चमड़े को लिया और याकूब के हाथों और गले पर बांध दिया।
17. तब ररिबका ने अपना पकाया भोजन उठाया और उसे याकूब को दियआ। [PE][PS]
18. याकूब पिता के पास गया और बोला, “पिताजी।” [PE][PS] और उसके पिता ने पूछा, “हाँ पुत्र, तुम कौन हो?” [PE][PS]
19. याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं आपका बड़ा पुत्र एसाव हूँ। आपने जो कहा हऐ, मैंने कर दिया है। अब आप बैठें और उन जानवरों को खाएं जिनका शिकार मैंने आपके लिए किया है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।” [PE][PS]
20. लेकिन इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “तुमने इतनी जल्दी शिकार करके जानवरों को कैसे मारा हैं?” [PE][PS] याकूब ने उत्तर दिया, “क्योंकि आपके परमेश्वर यहोवा ने मुझे जल्दी ही जानवरों को प्राप्त करा दिया।” [PE][PS]
21. तब इसहाक ने याकूब से कहा, “मेरे पुत्र मेरे पास आओ जिससे मैं तुम्हें छू सकूँ। यदि मैं तुम्हें छू सकूँगा तो मैं यह जान जाऊँगा कि तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव ही हो।” [PE][PS]
22. याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, “तुम्हारी आवाज़ याकूब की आवाज़ जैसी है। लेकिन तुम्हारी बाहें एसाव की रोंएदार बाहों की तरह हैं।”
23. इसहाक यह नहीं जान पाया कि यह याकूब है क्योंकि उसकी बाहें एसाव की बाहों की तरह रोएंदार थी। इसलिए इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया। [PE][PS]
24. इसहाक ने कहा, “क्या सचमुच तुम मेरे पुत्र एसाव हो?” [PE][PS] याकूब ने उत्तर दिया, “हाँ, मैं हूँ।” याकूब के लिए “आशीर्वाद” [PS]
25. तब इसहाक ने कहा, “भोजन लाओ। मैं इसे खाऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए याकूब ने उसे भोजन दिया और उसने खाया। याकूब ने उसे दाखमधु दी, और उसने उसे पिया। [PE][PS]
26. तब इसहाक ने उससे कहा, “पुत्र, मेरे करीब आओ और मुझे चूमो।”
27. इसलिए याकूब अपने पिता के पास गया और उसे चूमा। इसहाक ने एसाव के कपड़ों की गन्ध पाई और उसको आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा, “अहा, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा से वरदान पाए [QBR2] खेतों की सुगन्ध की तरह है। [QBR]
28. यहोवा तुम्हें बहुत वर्षा दे। [QBR2] जिससे तुम्हें बहुत फसल और दाखमधु मिले। [QBR]
29. सभी लोग तुम्हारी सेवा करें। [QBR2] राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें। [QBR] तुम अपने भाईयों के ऊपर शासक होगे। [QBR2] तुम्हारी माँ के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे और तुम्हारी आज्ञा मानेंगे। [QBR] हर एक व्यक्ति जो तुम्हें शाप देगा, शाप पाएगा [QBR2] और हर एक व्यक्ति जो तुम्हें आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।” एसाव को “आशीर्वाद” [PS]
30. इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देना पूरा किया। तब ज्योंही याकूब अपने पिता इसहाक के पास से गया त्योंही एसाव शिकार करके अन्दर आया।
31. एसाव ने अपनेपिता की पसंद का विशेष भोजन बनाया। एसाव इसे अपने पिता के पास लाया। उसने अपने पिटा से कहा, “पिताजी, उठें और उस भोजन को खाएं जो आपके पुत्र ने आपके लिए मारा है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।” [PE][PS]
32. किन्तु इसहाक ने उससे कहा, “तुम कौन हो?” [PE][PS] उसने उत्तर दिया, “मैं आपका पहलौठा पुत्र एसाव हूँ।” [PE][PS]
33. तब इसहाक बहुत झल्ला गया और बोला, “तब तुम्हारे आने से पहले वह कौन था? जिसने भोजन पकाया और जो मेरे पास लाया। मैंने वह सब खाया और उसको आशीर्वाद दिया। अब अपने आशीर्वादों को लौटाने का समय निकल चुका है।” [PE][PS]
34. एसाव ने अपने पिता की बात सुनी। उसका मन बहुत गुस्से और कड़वाहट से भर गया। वह चीखा। वह अपने पिता से बोला, “पिताजी, तब मुझे भी आशीर्वाद दें।” [PE][PS]
35. इसहाक ने कहा, “तुम्हारे भाई ने मुझे धोखा दिया। वह आया और तुम्हारा आशीर्वाद लेकर गया।” [PE][PS]
36. एसाव ने कहा, “उसका नाम ही याकूब (चालबाज़) है। यह नाम उसके लिए ठीक ही है। उसका यह नाम बिल्कुल सही रखा गया है वह सचमुच में चालबाज़ हैम। उसने मुझे दो बार धोखा दिया। वह पहलौठा होने के मेरे अधिकार को ले ही चुका था और अब उसने मेरे हिस्से के आशीर्वाद को भी ले लिया। क्या आपने मेरे लिए कोई आशीर्वाद बचा रखा है?” [PE][PS]
37. इसहाक ने जवाब दिया, “नहीं, अब बहुत देर हो गई। मैंने याकूब को तुम्हारे ऊपर शासन करने का अधिकार दे दिया है। मैंने यह भी कह दिया कि सभी भाई उसके सेवक होंगे। मैंने उसे बहुत अधिक अन्न और दाखमधु का आशीर्वाद दिया है। पुत्र तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है।” [PE][PS]
38. किन्तु एसाव अपने पिता से माँगता रहा। “पिताजी, क्या आपके पास एक भी आशीर्वाद नहीं है? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दें।” यूँ एसाव रोने लगा। [PE][PS]
39. तब इसहाक ने उससे कहा, “तुम अच्छी भूमि पर नहीं रहोगे। [QBR2] तुम्हारे पास बहुत अन्न नहीं होगा। [QBR]
40. तुम्हें जीने के लिए संघर्ष करना होगा। [QBR2] और तुम अपने भाई के दास होगे। [QBR] किन्तु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे, [QBR2] और उसके शासन से आज़ाद हो जाओगे।” [PS]
41. इसके बाद इस आशीर्वाद के कारण एसाव याकूब से घृणा करता रहा। एसाव ने मन ही मन सोचा, “मेरा पिता जल्दी ही मरेगा और मैं उसका शोक मनाऊँगा। लेकिन उसके बाद मैं याकूब को मार डालूँगा।” [PE][PS]
42. रिबका ने एसाव द्वारा याकूब को मारने का षड़यन्त्र सुना। उसने याकूब को बुलाया और उससे कहा, “सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षडयन्त्र कर रहा है।
43. इसलिए पुत्र जो मैं कहती हूँ, करो। मेरा भाई लाबान हारान में रहता है। उसके पास जाओ और छिपे रहो।
44. उसके पास थोड़े समय तक ही रहो जब तक तुम्हारे भाई का गुस्सा नहीं उतरता।
45. थोड़े समय बाद तुम्हारा भाई भूल जाएगा कि तुमने उसके साथ क्या किया? तब मैं तुम्हें लौटाने के लिए एक नौकर को भेजूँगी। मैं एक ही दिन दोनों पुत्रों को खोना नहीं चाहती।” [PE][PS]
46. तब रिबका ने इसहाक से कहा, “तुम्हारे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। मैं इन स्त्रियों से परेशान हूँ क्योंकि ये हमारे लोगों में से नहीं हैं। यदि याकूब भी इन्हीं स्त्रियों में से किसी के साथ विवाह करता है तो मैं मर जाना चाहूँगी।” [PE]

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उत्पत्ति 27:59
1. {वसीयत के झगड़े} PS जब इसहाक बूढ़ा हो गया तो उसकी आँखें अच्छी रहीं। इसहाक साफ—साफ नहीं देख सकता था। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया। इसहाक ने कहा, “पुत्र।” PEPS एसाव ने उत्तर दिया, “हाँ, पिताजी।” PEPS
2. इसहाक ने कहा, “देखो, मैं बूढ़ा तो गया। हो सकता है मैं जल्दी ही मर जाऊँ।
3. अब तू अपना तरकश और धनुष लेकर, मेरे लिए शिकार पर जाओ। मेरे खाने के लिए एक जानवर मार लाओ।
4. मेरा प्रिय भोजन बनाओ। उसे मेरेपास लाओ, और मैं इसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।”
5. इसलिए एसाव शिकार करने गया। PEPS रिबका ने वे बातें सुन ली थी, जो इसहाक ने अपने पुत्र एसाव से कही।
6. रिबका ने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुनो, मैंने तुम्हारे पिता को, तुम्हारे भाई से बातें करते सुना है।
7. तुम्हारे पिता ने कहा, ‘मेरे खाने के लिए एक जानवर मारो। मेरे लिए भोजन बनाओ और मैं उसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुमको आशीर्वाद दूँगा।’
8. इसलिए पुत्र सुनो। मैं जो कहती हूँ, करो।
9. पनी बकरियों के बीच जाओ और दो नई बकरियाँ लाओ। मैं उन्हें वैसा बनाऊँगी जैसा तुम्हारे पिता को प्रिय है।
10. तब तुम वह भोजन अपने पिता के पास ले जाओगे और वह मरने से पहले तुमको ही आशीर्वाद देंगे।” PEPS
11. लेकिन याकूब ने अपनी माँ रिबका से कहा, “किन्तु मेरा भाई रोएदार हऐ और मैं उसकी तरह रोएदार नहीं हूँ।
12. यदि मेरे पिता मुझको छूते हैं, यो जान जाएंगे कि मैं एसाव नहीं हूँ। तब वे मुझे आशीर्वाद नहईं देंगे। वे मुझे शाप *शाप यह माँगना कि किसी का बुरा हो। देंगे क्योंकि मैंने उनके साथ चाल चलने का प्रयत्न किया।” PEPS
13. इस पर रिबका ने उससे कहा, “यदि कोई परेशानी होगी तो मैं अपना दोष मान लूँगी। जो मैं कहती हूँ करो। जाओ, और मेरे लिए बकरियाँ लाओ।” PEPS
14. इसलिए याकूब बाहर गया और उसने दो बकरियों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया।
15. तब रिबका ने उस पोशाक को उठाया जो उसका बड़ा पुत्र एसाव पहनना पसंद करता था। रिबका ने अपने छोटे पुत्र याकूब को वे कपड़े पहना दिए।
16. रिबका ने बकरियों के चमड़े को लिया और याकूब के हाथों और गले पर बांध दिया।
17. तब ररिबका ने अपना पकाया भोजन उठाया और उसे याकूब को दियआ। PEPS
18. याकूब पिता के पास गया और बोला, “पिताजी।” PEPS और उसके पिता ने पूछा, “हाँ पुत्र, तुम कौन हो?” PEPS
19. याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं आपका बड़ा पुत्र एसाव हूँ। आपने जो कहा हऐ, मैंने कर दिया है। अब आप बैठें और उन जानवरों को खाएं जिनका शिकार मैंने आपके लिए किया है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।” PEPS
20. लेकिन इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “तुमने इतनी जल्दी शिकार करके जानवरों को कैसे मारा हैं?” PEPS याकूब ने उत्तर दिया, “क्योंकि आपके परमेश्वर यहोवा ने मुझे जल्दी ही जानवरों को प्राप्त करा दिया।” PEPS
21. तब इसहाक ने याकूब से कहा, “मेरे पुत्र मेरे पास आओ जिससे मैं तुम्हें छू सकूँ। यदि मैं तुम्हें छू सकूँगा तो मैं यह जान जाऊँगा कि तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव ही हो।” PEPS
22. याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, “तुम्हारी आवाज़ याकूब की आवाज़ जैसी है। लेकिन तुम्हारी बाहें एसाव की रोंएदार बाहों की तरह हैं।”
23. इसहाक यह नहीं जान पाया कि यह याकूब है क्योंकि उसकी बाहें एसाव की बाहों की तरह रोएंदार थी। इसलिए इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया। PEPS
24. इसहाक ने कहा, “क्या सचमुच तुम मेरे पुत्र एसाव हो?” PEPS याकूब ने उत्तर दिया, “हाँ, मैं हूँ।” याकूब के लिए “आशीर्वाद” PS
25. तब इसहाक ने कहा, “भोजन लाओ। मैं इसे खाऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए याकूब ने उसे भोजन दिया और उसने खाया। याकूब ने उसे दाखमधु दी, और उसने उसे पिया। PEPS
26. तब इसहाक ने उससे कहा, “पुत्र, मेरे करीब आओ और मुझे चूमो।”
27. इसलिए याकूब अपने पिता के पास गया और उसे चूमा। इसहाक ने एसाव के कपड़ों की गन्ध पाई और उसको आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा, “अहा, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा से वरदान पाए
खेतों की सुगन्ध की तरह है।
28. यहोवा तुम्हें बहुत वर्षा दे।
जिससे तुम्हें बहुत फसल और दाखमधु मिले।
29. सभी लोग तुम्हारी सेवा करें।
राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें।
तुम अपने भाईयों के ऊपर शासक होगे।
तुम्हारी माँ के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे और तुम्हारी आज्ञा मानेंगे।
हर एक व्यक्ति जो तुम्हें शाप देगा, शाप पाएगा
और हर एक व्यक्ति जो तुम्हें आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।” एसाव को “आशीर्वाद” PS
30. इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देना पूरा किया। तब ज्योंही याकूब अपने पिता इसहाक के पास से गया त्योंही एसाव शिकार करके अन्दर आया।
31. एसाव ने अपनेपिता की पसंद का विशेष भोजन बनाया। एसाव इसे अपने पिता के पास लाया। उसने अपने पिटा से कहा, “पिताजी, उठें और उस भोजन को खाएं जो आपके पुत्र ने आपके लिए मारा है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।” PEPS
32. किन्तु इसहाक ने उससे कहा, “तुम कौन हो?” PEPS उसने उत्तर दिया, “मैं आपका पहलौठा पुत्र एसाव हूँ।” PEPS
33. तब इसहाक बहुत झल्ला गया और बोला, “तब तुम्हारे आने से पहले वह कौन था? जिसने भोजन पकाया और जो मेरे पास लाया। मैंने वह सब खाया और उसको आशीर्वाद दिया। अब अपने आशीर्वादों को लौटाने का समय निकल चुका है।” PEPS
34. एसाव ने अपने पिता की बात सुनी। उसका मन बहुत गुस्से और कड़वाहट से भर गया। वह चीखा। वह अपने पिता से बोला, “पिताजी, तब मुझे भी आशीर्वाद दें।” PEPS
35. इसहाक ने कहा, “तुम्हारे भाई ने मुझे धोखा दिया। वह आया और तुम्हारा आशीर्वाद लेकर गया।” PEPS
36. एसाव ने कहा, “उसका नाम ही याकूब (चालबाज़) है। यह नाम उसके लिए ठीक ही है। उसका यह नाम बिल्कुल सही रखा गया है वह सचमुच में चालबाज़ हैम। उसने मुझे दो बार धोखा दिया। वह पहलौठा होने के मेरे अधिकार को ले ही चुका था और अब उसने मेरे हिस्से के आशीर्वाद को भी ले लिया। क्या आपने मेरे लिए कोई आशीर्वाद बचा रखा है?” PEPS
37. इसहाक ने जवाब दिया, “नहीं, अब बहुत देर हो गई। मैंने याकूब को तुम्हारे ऊपर शासन करने का अधिकार दे दिया है। मैंने यह भी कह दिया कि सभी भाई उसके सेवक होंगे। मैंने उसे बहुत अधिक अन्न और दाखमधु का आशीर्वाद दिया है। पुत्र तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है।” PEPS
38. किन्तु एसाव अपने पिता से माँगता रहा। “पिताजी, क्या आपके पास एक भी आशीर्वाद नहीं है? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दें।” यूँ एसाव रोने लगा। PEPS
39. तब इसहाक ने उससे कहा, “तुम अच्छी भूमि पर नहीं रहोगे।
तुम्हारे पास बहुत अन्न नहीं होगा।
40. तुम्हें जीने के लिए संघर्ष करना होगा।
और तुम अपने भाई के दास होगे।
किन्तु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे,
और उसके शासन से आज़ाद हो जाओगे।” PS
41. इसके बाद इस आशीर्वाद के कारण एसाव याकूब से घृणा करता रहा। एसाव ने मन ही मन सोचा, “मेरा पिता जल्दी ही मरेगा और मैं उसका शोक मनाऊँगा। लेकिन उसके बाद मैं याकूब को मार डालूँगा।” PEPS
42. रिबका ने एसाव द्वारा याकूब को मारने का षड़यन्त्र सुना। उसने याकूब को बुलाया और उससे कहा, “सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षडयन्त्र कर रहा है।
43. इसलिए पुत्र जो मैं कहती हूँ, करो। मेरा भाई लाबान हारान में रहता है। उसके पास जाओ और छिपे रहो।
44. उसके पास थोड़े समय तक ही रहो जब तक तुम्हारे भाई का गुस्सा नहीं उतरता।
45. थोड़े समय बाद तुम्हारा भाई भूल जाएगा कि तुमने उसके साथ क्या किया? तब मैं तुम्हें लौटाने के लिए एक नौकर को भेजूँगी। मैं एक ही दिन दोनों पुत्रों को खोना नहीं चाहती।” PEPS
46. तब रिबका ने इसहाक से कहा, “तुम्हारे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। मैं इन स्त्रियों से परेशान हूँ क्योंकि ये हमारे लोगों में से नहीं हैं। यदि याकूब भी इन्हीं स्त्रियों में से किसी के साथ विवाह करता है तो मैं मर जाना चाहूँगी।” PE
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